चित्रलेख

    

बादलों में
भर गया
स्वर्णिम उजास
रौशनी का तूफ्रन
छाने लगा हर ओर
किरणों में फूट पड़े
सतरंगी झरने
ये किसने उड़ेले
हल्दी के ऐपन
कि क्षितिज के फलक पर
समय रचने लगा अमूर्त अल्पनाएँ
दिशाओं में गूँजने लगा
दिवस का नाद

 

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