कलम गही नहिं हाथ
देसी होली विदेशी सुगंध
पिछले दिनों दुबई एअरपोर्ट पर खरीदारी करते
मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं जब मैंने केंज़ो अमोर की शेल्फ़ पर हिंदी
में नाम लिखी परफ्यूम की एक बोतल देखी। न मुझे केन्ज़ो का मतलब मालूम है
न अमोर का। मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि हाउस ऑफ केंज़ो सुगंध के क्षेत्र
में एक जाना-माना फ्रांसीसी ब्रांड है, जिसकी शेल्फों पर फैशनेबल महिलाएँ
अक्सर जमी ही रहती हैं। मुझे ऐसी चीज़ों में आमतौर पर दिलचस्पी नहीं
महसूस होती लेकिन फ्रांसीसियों के हिंदी प्रेम ने मुझे उनके इस होलियाना
उत्पाद की ओर आकर्षित कर ही लिया।
वहाँ उपस्थित सेल्स गर्ल बड़ी ही ज्ञानवती
निकली। उसने बताया कि हाउस ऑफ़ केंज़ो की स्थापना पेरिस में केंजो तकाडा
नामक जापानी डिजायनर ने की थी। वे फैशन डिप्लोमा के लिए फ्रांस आए थे
लेकिन डिप्लोमा लेने के बाद वहीं बस गए। 'इंडियन होली' इसी हाउस ऑफ केंज़ो
द्वारा २००६ में केंज़ो अमोर नाम से जारी सुंगंध-शृंखला में से एक
सुगंध है जिस पर हिंदी में-
होली है! - ये शब्द सुनहरे रंग में अंकित किए
गए हैं। डिज़ायनर करीम राशिद द्वारा डिज़ाइन की गई बोतलों में पैक
इस सुगंध को विशेष रूप से महिलाओं के लिए जारी किया गया है। उसने हाउस ऑफ़
कैंज़ो में सुगंध तैयार करने वाले लोगों के कुछ और नाम भी लिए जो विदेशी
होने के कारण मुझे ठीक से याद नहीं रह सके।
सुगंध के विषय में उससे कुछ और रोचक
जानकारी मिली- उसने बताया कि होली भारत में रंगों का त्योहार है (जैसे
मुझे तो मालूम ही नहीं है।) इसी के नाम पर आधारित इस परफ्यूम की
सुगंध बारह घंटों तक एक सी बनी रहती है। कस्तूरी और फूलों की महक से शुरू
होने वाली यह सुगंध गुलाब और लाल बेरी (मालूम नहीं यह क्या होता है और
इसकी सुगंध कैसी होती है।) में बदलती है और जब इसकी धुंध छँटती है तो
विनम्र चावल (जेंटेल राइस शब्द का अर्थ कहीं मिला नहीं शायद यह कोई फूल
हो।) चेरी ब्लॉसम (निश्चय ही पॉलिश नहीं) , चंदन और भी कई चीज़ें (जिसमें
से मुझे सिर्फ वेनीला याद रह गया) में बदल जाती है। हे भगवान!
मुझे तो अपनी अज्ञानता पर सच ही दया हो आई थी। क्या परफ्यूमें भी
उगते डूबते सूरज वाले आसमान की तरह रंग बदलती हैं
कि कभी ये तो कभी वो?
खैर इसको सूँघना मुफ्त था सो उसने मेरी कलाई पर एक फुहार दी। मुझे समझ
में सिर्फ इतना आया कि यह काफ़ी तीखी है और मेरी पसंद की नहीं। उसने
दुबारा मुझे आगाह किया कि यह लिमिटेड एडीशन परफ्यूम है यानि एक बार सारा
माल बिक गया तो दुबारा नहीं बनाया जाएगा। दूसरे शब्दों में, खरीदना हो तो
खरीद लो वर्ना बाद में पछताओगे। पछतावा मुझे सुगंध न खरीदने का नहीं हुआ
सिर्फ इस बात का हुआ कि हम भारतीय जहाँ के तहाँ रह गए और परफ्यूम पर
स्वर्ण अक्षरों में हिंदी लिखने का श्रेय विदेशी लूट ले गए।
अब पाठक ये न समझ लें कि इस सुगंध की तारीफ
या बुराई के मुझे पैसे मिले हैं। यह तो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर
बिकनेवाली एक अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड की परफ्यूम का हुरियारा अनुभव था
जिसे आपके साथ बाँट लिया। सच पूछिए तो ऊपर की फोटो भी चुराई हुई है। मुझे
लगा कि इतनी बड़ी कंपनी को मेरे जैसे छोटे-मोटे जीव की इस छोटी मोटी चोरी
से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता है। फिर भी अगर उन्हें तकलीफ़ हुई तो इसे हटा
देंगे। पर तबतक आप इसकी एक हुरियारी झलक लेने से न चूकें। चाहें तो
तस्वीर पर क्लिक कर के बड़ा आकार देखें और अंतर्राष्ट्रीय होती हिंदी का
आनंद लें।
पूर्णिमा वर्मन
१ मार्च २०१०
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