कलम गही नहिं हाथ
गर्म देश में बर्फ़ गिरी
मुश्किल से दिल्ली जितना देश, जुलाई अगस्त
में जिसका पारा ५५डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं उतरना चाहता सर्दियों में
बेहद लुभावना हो उठता है। दिसंबर जनवरी और फरवरी के महीने वसंत की तरह
ऐसे मोहक होते हैं कि सारा दिन धूप के कालीन पर मज़े से कटता है। जी चाहे
साफ़ सुथरी सड़कों पर घूमो या फूलों से लदे पार्कों में दिन बिताओ या फिर
हरे समुंदर के रेतीले तट पर...
हम कहते नहीं थकते थे कि सर्दियाँ हों तो इमारात जैसी।
पिछले हफ़्ते मैंने कहा था ना कि इस बार
इमारात की सर्दी ने एक नया नियम पकड़ा है? बस
उस नियम के चलते कल फिर तेज़ बारिश हुई बिलकुल ठंडी बारिश जैसे हल्द्वानी
की सर्दियों में होती है और अब हाल यह है कि ८० किलो मीटर दूर बसे शहर रस-अल-ख़ैमा के
पठारी हिस्सों पर भारी हिमपात की खबर आई है। सालों साल जबसे हमें या
हमारे पड़ोसियों को याद है इमारात में कभी बर्फ़ नहीं गिरी। हाँ सुनामी
की रात बहुत थोड़ा सा हिमपात हुआ था। जिसको देखने पूरा इमारात दौड़ पड़ा
था पर इस बार की बर्फ़ का तो जवाब नहीं।
ऊपर का चित्र देख रहे हैं? यह हिमालय
पर्वत का चित्र नहीं है। यह है रस-अल-ख़ैमा स्थित ५,७०० फुट की ऊँचाई पर
स्थित जबल-जैस जो २४
जनवरी की दोपहर के हिमपात में दस सेंटी मीटर गहरी बर्फ से ढँक गया। २५ की
सुबह तक बर्फ़ की परत बीस सेंटी मीटर मोटी हो चुकी थी। सुना है अब
सूने पड़े इस शहर को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की योजनाओं
पर अरबी घोड़े दौड़ पड़े हैं और इमाराती
अमीर यूरोप यात्रा के सपने त्यागकर अपना लावलश्कर रस-अल-खैमा में ही
जमाने वाले हैं, जबकि दूसरी ओर पर्यावरण वैज्ञानिक इसको ग्लोबल वार्मिंग
की गंभीर चेतावनी के रूप में देख रहे हैं। (बर्फ़ की और तस्वीरे देखना चाहें तो
यहाँ क्लिक करें और समचार के साथ दिये गए १८ चित्र देखें।)
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पूर्णिमा वर्मन
२६ जनवरी २००९
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