इस अंक में-
१.मेला-
ममता कालिया
.सोहबतिया
बाग से संगम जाने वाले मार्ग पर भगवे रंग की एम्बैसडर गाडियां दौड रहीं
थीं। पाँच सितारा आध्यात्म पेश करने वाले विशाल जटाजूट धारण किये साधू
संतÊ फकीर रंग बिरंगे यात्रियों के रेले में अलग नजर आ रहे थे।
*
२ .
गंवार — साबिर हुसैन
वह
गीली लकड़ियों से जूझ रही थी जो उसके रोने में सहायक बन रही थीं।
रघु अभी नहा धो कर बाहर गये हैं। वह चाय बना रही है। खौलते पानी की
तरह उसके अंतस में भी कुछ खुदबुदा रहा है। भविष्य की आशंका से उसकी
आंखें लगातार बरस रही हैं। लकड़ियों का धुआं उसके अंतर की कड़वाहट से
कहीं कम है।
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३ .
शुकराना
— उषा राजे
"मैने
इस छोटी सी उम्र में दुनियां की गज़ालत देखी है, युद्ध की विभीषिका
देखी है। इन्सान को दरिंदा होते देखा है। कान फाड़ने वाले तोप गोले,
बंदूकें, लाशें, खून से रंगी धरती, बलात्कार, घृणा–प्रेम, जन्म–मरण
सब एक साथ देखे हैं।" उसकी चमकती हुई हरी आंखें अचानक यादों के
काले साये में स्याह सी हो गयीं।
*
४.
ज़हर और दवा
— अभिमन्यु अनत शबनम
सोफिया
को लेकर हमारे घर में कभी काफी झमेला खड़ा हुआ था।मेरी मां के पास
इस बात का कोई प्रमाण नहीं था फिर भी वह सोफिया को मेरे पिता की
रखैल मानती थी।नौबत यहां तक आ गयी थी कि मेरी मां ने गठरी संभालते
हुए मेरे पिता से कह दिया था कि दो में से एक वहां रहेगी।
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होली विशेषांक में
हिन्दी के प्रख्यात
लेखकों द्वारा रचित सात बेमिसाल कहानियों की रंग भरी बौछार
*
५ .
आद्रा — मोहन राकेश
इस
लड़के की वजह से ही वह परदेस में पड़ी हुई थी, जहां न कोई उसकी जबान समझता
था, न वह किसी की जबान समझती थी। एक इरावती थी, जिससे वह टूटी–फूटी हिन्दी
बोल लेती थी, हालांकि उसकी पंजाबी हिन्दी और इरावती की कोंकणी हिन्दी में
जमीन–आसमान का अन्तर था। जब इरावती भी उसकी सीधे–सादे शब्दों में कही हुई
साधारण–सी बात को न समझ पाती, तो वह बुरी तरह अपनी विवशता के खेद से दब
जाती थी
*
६ .
वापसी
— उषा प्रियंवदा
पत्नी
के पास अन्दर एक छोटा कमरा अवश्य था, पर वह एक ओर अचारों के मर्तबान, दाल,
चावल के कनस्तर और घी के डिब्बों से घिरा थाऌ दूसरी ओर पुरानी रजाइयां,
दरियों में लिपटी और रस्सी से बांध रखी थीऌ उनके पास एक बड़े से टीन के बक्स
में घर–भर के गरम कपड़े थे। बींच में एक अलगनी बंधी हुई थी, जिस पर प्रायः
बसन्ती के कपड़े लापरवाही से पड़े रहते थे।
*
७ .
लाल हवेली — शिवानी
ताहिरा
ने एकान्त कमरे में आकर बुर्का फेंक दिया। बन्द खिड़की को खोला तो कलेजा धक
हो गया। सामने लाल हवेली खड़ी थी। चटपट खिड़की बंद कर तख्त पर गिरती–पड़ती बैठ
गई, "खुदाया – तू मुझे क्यों सता रहा हैं?" वह मुंह ढांपकर सिसक उठी। पर
क्यों दोष दे वह किसी को। वह तो जान गई थी कि हिन्दुस्तान के जिस शहर में
उसे जाना है, वहां का एक–एक कंकड़ उस पर पहाड़–सा टूटकर बरसेगा।
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पिछले
अंक से-
उपहार में
होली के अवसर पर एक और जावा आलेख हिन्दी कविता के साथ
होली है भई होली है
*
कविताओं में
हास्य–व्यंग्य के रंगों से सजी
अनुभूति
हर रोज़ एक नयी कविता के साथ
*
घर परिवार में
एक और रंग रंगोली के अंतर्गत रंगोली के दो मनमोहक नमूनों के साथ रंगोली
का इतिहास
*
कला दीर्घा में
भारतीय लोककलाओं से परिचय की श्रृंखला में मधुबनी के बारे में रोचक
जानकारी
*
स्वाद और स्वस्थ्य में
एक टहनी टमाटर के अंतर्गत टमाटर के गुणों की चर्चा
*
रसोईघर में
चेरी टमाटर तिरंगी चटनी
के साथ
*
पर्व परिचय में
मार्च माह के पर्व, मेले और उत्सव के विषय में रोचक जानकारी
*
फुलवारी में
कहानी
...और चांद फूट गया
और
कविता
चिंटू मेरा दोस्त
*
प्रेरक प्रसंग में
पे्ररणाप्रद प्रसंगों के ख़ज़ाने का एक और मोती
बच्चे की सीख
*
हास्य व्यंग्य में
यश मालवीय की रचना
लेट गाड़ी और मुरझाता हार
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