पुरवाई
            के संपादक एवं कवि व कथाकार डा  पद्मेश
            गुप्त के अनुसार, "तेजेन्द्र जी की कहानियों में पात्रों का
            आपस में संवाद जिस सहजता एवं वास्तविक्ता के साथ चलता
            है, उसी सहजता और गहराई के साथ लेखक जो कहना चाहता है
            उसका संवाद पाठक के साथ भी चलता रहता है। शायद यही कारण है
            कि मैं पाठक के रूप में उतनी देर के लिए वही जीवन जीने लगता
            हूं। तेजेन्द्र शर्मा की कहानी एक ही रंग के अंत की विशेष प्रशंसा
            करते हुए उन्होंने कहा कि अंत बहुत ही प्रभावशाली है जो कि
            कहानी को संवेदना को पूरी तरह से उभारने में सफल रहता है।
                            
            
                            
डा 
            गौतम सचदेव का कहना था कि कलाकार गीता गुहा ने तो अपने
            अभिनय के माध्यम से अपनी आंखों में आंसू भी ला दिए। आज
            यह पहला अवसर है कि किसी एक कहानीकार पर इस तरह से चर्चा की
            जा रही है और उसकी कहानियों के सर्वांगीण विवेचन का
            सूत्रपात किया जा रहा है। तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों की
            विवेचना करते हुए डा। गौतम सचदेव ने कहानियों के उद्घाटन, विकास, भाषा
            और विषयों पर गंभीर टिप्पणियां कीं। लेखक के तौर पर
            उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा की सीमाओं की ओर ध्यान दिलाया। फिर
            भी उन्होंने कहा कि, "तेजेन्द्र शर्मा के पात्र हमारे आसपास
            के जीवन के पात्र हैं, जिनमें उनकी विशेष करूणा की पात्र बनी
            हैं गृहस्थ नारियां। इनका चरित्रचित्रण करते समय तेजेन्द्र मुख्य
            रूप से संवेदनशीलता और व्यावहारिक क्रियाशीलता तथा गौण
            रूप से व्यावहारिक मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं। तेजेन्द्र
            शर्मा का उद्देश्य मध्य वर्ग के भ्रष्ट और खोखले समाज का चित्रण
            करना है।"
                            
            
                            बरमिंघम
            से पधारे गीतांजलि
            बहुभाषी समुदाय के अध्यक्ष डा
             कृष्ण कुमार ने तेजेन्द्र शर्मा की एक
            कहानीकार के रूप में और कथा 
            (यू
            के
            ) की गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि तेजेन्द्र की
            कहानियां समाज का सटीक चित्रण करती हैं और तेजेन्द्र शर्मा
            ब्रिटेन के एक महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं। डा
            कृष्ण
            कुमार का यह भी मानना है कि जिस प्रकार कहानी में विकास
            हुआ है ठीक उसी प्रकार कहानी की समीक्षा और आलोचना में भी
            समय के हिसाब से बदलाव ज़रूरी है।
            
                            
कार्यक्रम
            में कश्मीरी नाटक एवं साहित्य की महत्वपूर्ण हस्ती श्री मोती
            लाल क्येमू भी उपस्थित थे। उन्होंने सभी श्रोताओं के
            दिलों को यह कह कह द्रवित कर दिया कि हम कश्मीरी पंडित तो अपने
            ही देश में निर्वासित हो गये हैं। उन्होंने कथा (यू
            के
            ) एवं संस्कार भारती को कार्यक्रम के लिए बधाई दी। कथा (यू
             के) की उपाध्यक्षा श्रीमती
            नैना शर्मा ने भेंट दे कर श्री क्येमू का अभिनंदन किया।
            
                            
कार्यक्रम
            का गरिमामय संचालन किया सनराईज़ रेडियो के श्री रवि
            शर्मा ने। उन्होंने श्रोताओं को जानकारी दी कि वे पिछले एक
            दशक से भी अधिक समय से तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों की
            प्रस्तुति गीतों भरी कहानी के तौर पर सनराइज़ रेडियो पर करते
            रहे हैं और उन्हें श्रोताओं के बधाई भरे संदेश प्राप्त होते
            रहे हैं। उन्होंने स्वादिष्ट भोजन के लिए कुसुम मिस्त्री, स्मिता
            पटेल, जयश्री गांधी, एवं चंद्रिका शाह को धन्यवाद दिया।
            
                            धन्यवाद
            ज्ञापन दिया संस्कार भारती के श्री नरेश भारतीय ने।
            
                            वक्ताओं
            एवं श्रोताओं के अतिरिक्त कार्यक्रम को गरिमा प्रदान करने के
            लिए श्री कैलाश बुधवार, दिव्या माथुर, चित्रा कुमार
            (बरमिंघम), नॉटिंघम से श्री मती जय वर्मा, श्रीमती मोहिन्द्रा एवं
            श्रीमती जैन, श्रीमती विरेन्द्र संधु, श्री पद्माकर जी, दयाल
            शर्मा, श्री तिवारी, श्री सिंह, श्री योगेश शर्मा, संजीव,
            नीरव, विकी रेजर, भरत पारेख आदि मौजूद थे।
                            
                             सौरभ पारिजात