सभागार में तिलभर
            स्थान नहीं था जहां कुछ अतिरिक्त श्रोताओं को समायोजित
            किया जा सके। जितनी भीड़ अंदर थी, लगभग उतनी ही बाहर
            थी। बाहर खड़े श्रोताओं के लिये एल सी डी प्रोजेक्टर पर
            कविसम्मेलन का सीधा प्रसारण किया जा रहा था। आठ बजे
            प्रारम्भ हुआ यह कवि सम्मेलन रात्रि तीन बजे तक चला। कार्यक्रम
            के प्रारम्भ में अशोक चक्रधर द्वारा लिखित और उस्ताद अमजद अली
            खां द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ गीत हिन्दी अकादमी की संगीत मंडली
            ने प्रस्तुत किया 
            
                              "गूंजे गगन
            में, महके पवन में, हर एक मन में सद्भावना, 
            मौसम की बाहें, दिशा और राहें, सब हमसे चाहें
            सद्भावना। "
            
                              कवि सम्मेलन की
            अध्यक्षता पद्मश्री गोपालदास नीरज ने की और संचालन
            बालकवि बैरागी ने।
            
                              कवि सम्मेलन में
            सत्ताईस कवियों की लम्बी सूची थी जिसका संचालन
            बालकवि बैरागी ने कभी डांट कर, कभी मनोहार के साथ और
            कभी अपनी चुटिली उक्तियों से सफलता पूर्वक किया। आसकरण
            अटल की हास्यकविता 'अमेरिका में दलिया' प्रदीप चौबे की 'युद्धं
            शरणं गच्छामि' और महेन्द्र अजनबी की 'भूलने की आदत'
            कविताओं ने जनता को हंसतेहंसते लोटपोट कर दिया। वहीं
            राजगोपाल सिंग, कुंवर बेचैन और विनय विश्वास की
            कविताओं ने सामाजिक सोच की गज़लें एवं कविताएं प्रस्तुत
            की। इस कवि सम्मेलन में एक पुलिस अधिकारी कवि पवन जैन
            ने कहा कि वे धारा के विपरीत एक कविता सुना रहे हैं। और
            उन्होंने पुलिस के पक्ष में कविता सुनाई जिसे सराहा गया।
            उन्होंने बताया अपनी कविता में कि सेना के जितने शहीद होते
            हैं उससे कई गुना पुलिसकर्मी अंतरंग दंगों में,
            मुठभेड़ों में मारे जाते हैं। सेना की ओर से प्रतिनिधित्व
            करने वाले कवि कर्नल वी पी सिंह ने अपनी कविता में
            सैनिकों के दुखदर्द और भावलोक पर प्रकाश डाला। यह भी एक
            सकारात्मक कविता थी। इस कवि सम्मेलन में नीरज जी ने
            तन्मय हो कर काव्यपाठ किया और एक क्षण ऐसा आया जब नीरज
            जी की नयी पुरानी कविताओं से अभिभूत हो कर सारे सभागार
            के समस्त श्रोता उनके सम्मान में खड़े हो गये और देर तक इस
            अस्सी वर्षीय कवि के लिये तालियां बजाते रहे, दीर्घायु की
            कामना करते रहे। विष्णु सक्सेना, कीर्ति काले
                              व कुमार विश्वास ने श्रृंगारप्रधान गीत सुनाये, विनीत
            चौहान ने ओजस्वी कविता से पड़ोसी देश के हर पल बदलते
            स्वर को रेखांकित किया। अशोक चक्रधर ने अपनी निजी विशिष्ट
            शैली में व्यंग्य की कवितायें सुनायीं लेकिन उन्हें अपनी
            बारी के लिये अंत तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। यह एक अजब संयोग
            था कि कवि सम्मेलन का प्रारंभ उनके द्वारा रचित गीत 'गूंजे
            गगन' से हुआ था और कवि सम्मेलन का समापन भी उनकी
            कविताओं से हुआ। श्रोता अंत तक कविसम्मेलन में जमे रहे।
            स्टेडियम के बाहर यद्यपि भारी ठण्ड थी लेकिन सभागार में
            कविताओं की उष्मा के साथ मानवजन्मी उष्मा भी इतनी बढ़
            गयी थी कि लोगों को अपने कोट और स्वेटर उतारते हुए देखा
            जा सकता था।
                              
                               
                              
            मंच पर बाएं से :जनार्दन द्विवेदी, नीरज, सुरेन्द्र शर्मा,
            अशोक चक्रधर, कुंवर बेचैन, विष्णु सक्सेना 
                              (फोटो व आलेख : राम
            विलास)