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                     | आधी रात, थका हुआ नगर, आधे सपने 
                    देखता सो रहा है - जैसे युद्ध विराम हो। शीत चुपचाप आक्रमण कर 
                    रही है। सड़क के लैंपपोस्ट के प्रकाश में जो बर्फ़ बरस रही है, 
                    दिखाई भी नहीं देती। पूरी सड़क खाली है। प्रश्न चिह्न की तरह 
                    झुकी कमर से जवाबों को छूकर उठाते झाडू... बिना माँ बाप की 
                    नन्हीं मुर्गियाँ दानों की तलाश में जब कच्ची ज़मीन पर झुकती 
                    हैं तब उनके फड़फड़ाते डैनों से आवाज़ के साथ जिस तरह धूल उठती 
                    है उसी तरह नगर के कूड़े को झाड़ते झुके हुए ये लगभग तीस लोग 
                    हैं। सुजाता को इस काम 
                    की आदत नहीं है। ज़ोर से साँस लेती है, एक बार झुकती है और फिर 
                    सीधी खड़ी होकर अंगड़ाई लेती है। उस की उम्र लगभग बीस साल 
                    होगी। हाल ही में अपने मर्द के साथ शहर आई है। दसवीं पास 
                    सुजाता को काम दिलाने के लिए यहाँ लाया था उसका मर्द। तब उसे 
                    क्या मालूम  था कि काम क्या है। पहले दिन जब उसने कहा कि उसे 
                    सड़क पर झाडू लगाने का काम नहीं करना है तो उसका मर्द नरसिंह 
                    बहुत नाराज़ होकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा था, झाडू लगाना भी 
                    नहीं आता तो कैसी औरत हो? फिर बोला, ''देख, तुझे और तेरे बच्चे 
                    का पोषण करना मेरी ताकत की बात नहीं है। अगर तुझे पढ़ाई करने 
                    का मन था, तो बीच में क्यों छोड़ दी? खूब पढ़
                    के एक मुंशी से शादी करनी थी।'' ऐसी बातें वह सुजाता से 
                    पहले भी कर चुका है। इसी तरह अकसर तंग करता रहता है। |