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साहित्य संगम

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है यू. आर अनंतमूर्ति की कन्नड़ कहानी का हिंदी रूपांतर कामरूपी। रूपांतर किया है बी. आर. नारायण ने।


हेलन अभी कच्ची उमर की ही है। शीशे के सामने अठखेलियाँ करती नाच रही है। सड़क के आवारा छोकरों को देखकर डांस के सीखे स्टैप्स करते हुए उसे अपने शरीर की थिरकन निहारना सुखद लगता है; वह निर्लज्ज-सी सोच रही है कि उसकी ओर कोई क्यों नहीं देखता। वह एक-चौथाई बच्ची भले ही हो, पर तीन हिस्से तो स्त्री ही है। नाज़-नखरों और अदाओंवाली इस लड़की की एकाग्रता को भंग न करें। आगे वह एक पूरी नागरिकता को ही भस्म कर डालने की शिक्षा पा रही है। यह येट्स का कथन है। मेरे सामने से गुज़रा एक कामरूपी मुझे लिखने को विवश कर रहा है।

उस व्यक्ति ने एकाएक भीतर घुसकर चारों ओर नज़र दौड़ाई। भटकती नज़र एक सोफे से दूसरे तक दौड़ती रही। सामने के आदमकद शीशे के सामने उसने अपनी मूँछे करीने से ऊँची कीं और बालों को सँवारा। मेरा ध्यान खींचने के लिए अपने को ठीक-ठाक किया। भौंहों के नीचे अपनी आँखों को पूरी तरह खोलकर दिखाने का व्यर्थ प्रयास किया। फिर से बाएँ घूमकर हठात सामने घूमा। हँसी से भरे पोपले मुँहवाली गांधी जी की फोटो के नीचे, चौकोर काँच की मेज पर रखे सफेद रंग के फोन पर हम दोनों की नजर पड़ी : कहीं से अचानक भीतर घुस आए उस झींगुर की तरह, जो दिशाहीन होकर कहीं से कहीं उड़ता हुआ जहाँ-तहाँ टकराता धप्प से आ गिरे। फोन और गांधी के सामने खड़े होकर उसने अपना ब्रीफकेस लाल सोफे पर फेंककर मेरी ओर देखा। इस प्रकार हम लोगों की बातचीत शुरू हुई।

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