हाथी
स्थल का सबसे बड़ा और
भारी-भरकम पशु हाथी है। वह धार्मिक उत्सवों और शोभा-यात्राओं
में चार चाँद लगा देता है। अकेला हाथी पचास मनुष्यों के
बराबर बोझा खींच लेता है, लेकिन उसकी विशेषता उसकी असाधारण
शक्ति नहीं है, वरन उसकी शिक्षा ग्रहण करने की प्रवृत्ति
होती है। अपने उपयोग के लिए मनुष्य को वयस्क हाथियों को जंगल
से पकड़ कर लाना पड़ता है, लेकिन कुछ ही महीने बाद वह
बुद्धिमान पशु मनुष्य के इशारों पर चलने लगता है।
हाथी की सूँड, उसकी नाक और
हाथ दोनों का काम करती है। साधारण व्यक्ति समझते हैं कि हाथी
सूँड़ से पानी पीता है। यह विचार भ्रामक है। वह सूँड़ में
पानी भरता है, और फिर उसे मुँह में डालता है। शत्रु के निकट
आने पर उसकी पहली चिंता अपनी सूँड़ की रक्षा करने की होती
है। वह उसे लपेटकर मुँह के अन्दर डाल लेता है।
गजदंत हाथी के शरीर का सबसे
दर्शनीय और कीमती भाग है। प्राय: हाथी का वध केवल गजदंत के
लिए होता है, जिनसे नाना प्रकार की दर्शनीय वस्तुएँ तराश कर
बनाई जाती हैं।
हाथी पेटू ही नहीं होता,
वरन चाटू भी होता है। उसे सुस्वादु भोजन भी बहुत प्रिय है।
उसे भली-भांति मालूम रहता है कि किस मौसम में, किस भाग में,
कौन कन्द, मूल, फल अधिक रसीले होते हैं। इनका रसास्वादन करने
के लिए वह प्रति वर्ष स्थान-परिवर्तन करता है और लम्बी
यात्राएँ भी करता है।
हाथी समाजप्रिय पशु है। वे
हमेशा झुंड में रहते हैं। झुंड के सब सदस्य नेता की आज्ञा का
पालन करते हैं। अपराधी हाथी को दल से निकाल दिया जाता है।
उसे एकाकी जीवन बिताना पड़ता है। वह भी एकल बंदर और सुअर की
भांति दुष्ट स्वभाव का हो जाता है।
हाथियों के सम्पर्क में आने
वाले मनुष्य इन पशुओं की बुद्धिमानी तथा दयालु स्वभाव की
सराहना करते हैं। अच्छे महावत और उसके हाथी में घनिष्ठ
मित्रता होती है। अंकुश तो केवल महावत के विशेष अधिकार का
प्रतीक मात्र होता है।
१ जनवरी २००४ |