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					पीली नदी की सभ्यता 
					
					-डॉ. गुणशेखर (चीन से) 
					 
                    चीन आने के 
					कुछ ही दिनों बाद पता चल गया था कि मुझे चीन के बारे मे कुछ भी 
					पता नहीं है। ५,४६४किमी लंबी और आज भी अपने पूरे वजूद के साथ 
					मौजूद चीन की 'पीली नदी' की भी कोई सभ्यता थी, यह भी नहीं 
					जानता था। यह नदी चीनी सभ्यता का उद्गम स्थल कही जाती है। 
					प्राचीन काल में दक्षिणी चीन की समृद्धि का कारण भी इसे ही 
					माना जाता था। भारत में रहते हुए चीन में इतनी चर्चित इस 'पीली 
					नदी' की जैसी प्राचीनतम सभ्यता को जानना तो दूर इसका नाम तक 
					नहीं सुना था। हाँ, इस नदी का दूसरा चर्चित नाम 'ह्वांग हो' 
					हमारे कानों में जरूर पड़ा था। शायद उन दिनों कक्षा छठी के 
					भूगोल के एक प्रश्न में मैंने रटा था कि 'ह्वाङ्ग हो' को चीन 
					का शोक कहते हैं। खैर! अब तो ऐसे प्रश्न अप्रासंगिक हो गए हैं 
					क्योंकि चीनी सरकार के प्रयासों से यह शोक के बजाय सुखदायी हो 
					गई है।  
					 
					यह तो जानकारी भूगोल में भी आसानी से मिल जाएगी कि यह नौ 
					प्रान्तों से होकर बहती है और इसका कुल बेसिन भूभाग ७५२,४४३ 
					वर्ग किमी है। लेकिन यह जानकारी कम ही मिल पाएगी कि इस नदी के 
					किनारे विकसित सभ्यता का इतिहास कितना पुराना है। पश्चिमी 
					विद्वानों की राय से मैं वाकिफ़ नहीं हूँ पर चीनी पुरातत्त्व 
					विदों के अनुसार यह सभ्यता उत्तर पाषाण युग जितनी प्राचीन है। 
					हेनान प्रांत के शिञ्झेंग काउंटी के आज के फेलीगोंग गाँव में 
					पनपी लगभग ७,००० से ८,००० साल पुरानी उस समय की संस्कृति को 
					'फेइ ली काँग' और उसके बाद यानि मध्यकाल में विकसित हुई 
					संस्कृति को 'यांगशाओ' के नाम से जाना जाता है, जिसके संरक्षण 
					में अन्य आंचलिक संस्कृतियाँ भी अस्तित्त्व में आईं। इस दृष्टि 
					से यह अपनी समकालीन संस्कृतियों की प्रतिनिधि संस्कृति सिद्ध 
					होती है। इसके उपरांत यानि ताम्रयुग में इसी नदी के बेसिन में 
					ही 'लोङ्ग्शान' संस्कृति का विकास हुआ। इस तरह यह नदी कालांतर 
					में जिसके किनारे शीआ, शांग और चाऊ सभ्यताएँ पनपीं, एक फ्यूजन 
					संस्कृति की जन्मदात्री है। इन्हीं संस्कृतियों के फ्यूजन का 
					सौंदर्य समेटे इस नदी के प्रवाह ने यहीं से फैलते हुए सारे 
					पूर्वी एशिया में सांस्कृतिक हरियाली पहुँचाई। इस तरह यह समूचे 
					चीन समेत पूर्व एशियाई देशों की संस्कृतियों की जननी भी कही जा 
					सकती है।  
					 
					'फेइ ली काँग' संस्कृति विशेषकर अपनी वृत्ताकार और चतुर्थांश 
					वृत्ताकार खड़ी गुफाओं की वास्तु के लिए जानी जाती है। इसके 
					साथ-साथ-साथ यह संस्कृति मैदानी कृषि, चमचमाते लाल-भूरे रंग 
					वाले मिट्टी के बर्तनों और पालिश किए गए नुकीले और चमकदार 
					पत्थर के औज़ारों के लिए भी मशहूर है।  
					 
					६००० ईसा पूर्व से ५००० ईसा पूर्व के कालखंड में इसी नदी के 
					किनारे पनपी 'लाओ कुआन थाए' संस्कृति का शांसी प्रांत के शिन 
					हुआ काउंटी के अवशेषों से (प्राप्त जानकारी के आधार पर) पता 
					चला है। यहाँ पत्थर के औजारों का मिलना बताता है कि इस सभ्यता 
					में मानव अभी सभ्य नहीं हुआ था। वह सभ्य बनने की कोशिश में था 
					और लगभग आदिम जीवन ही जीता था। खेती और शिकार आदि में इन्हीं 
					पत्थर के औजारों का उपयोग करता था। मिट्टी के बर्तनों को बनाना 
					और उनका उपयोग वे जानते थे। इस सभ्यता के लोग आवास गोल बनाते 
					थे। वस्तुओं का संग्रह करते थे। उसके लिए गड्ढे बनाते थे। उसी 
					में वस्तुएँ संकलित करते थे। मृत व्यक्ति को आयताकार कब्र 
					बनाकर दफनाते थे। २१० बीसी में चीन के सर्व प्रथम सम्राट छिन 
					ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसकी मृत्यु पर उसके साथ सैनिक 
					भी स्वर्ग जाने चाहिए ताकि वह वहाँ पर भी सुरक्षित रूप से 
					सत्ता सँभाल सके। उसकी इच्छा की पूर्ति के लिए उसके 
					उत्तराधिकारियों ने उसके शव को टेराकोटा के पैदल और घुड़सवार 
					सैनिकों साथ दफनाया था जिनके अवशेष शियान शहर के पास सन् १९७४ 
					में खुदाई में मिले हैं। यही नहीं इसके अलावा यहाँ अन्य अनेक 
					स्थलों की खुदाई में भी पूर्वजों को मिट्टी के बर्तनों के साथ 
					दफनाने के प्रमाण मिले हैं।  
					 
					इसी की समकालीन हपेई प्रांत के वुआन काउंटी की 'शिशान' और 
					शेंतोंग प्रांत की 'पेईशीन' संस्कृतियाँ भी अपनी विशिष्ट पहचान 
					छोड़ती हुई मिलती हैं। शिशान की सभ्यता में कृषि उत्पादन में 
					हँसिये, कुल्हाड़ी और बेलचे आदि यंत्र पत्थर के ही होते थे। 
					इन्होंने अनाज पीसने के लिए चक्की के जिन पाटों का इस्तेमाल 
					किया था वे आज भी पत्थर के ही हैं और बदस्तूर काम कर रहे हैं। 
					इनके पशुधन में कुत्ते और सूअर मुख्य थे। कृषि, पशुपालन के 
					साथ-साथ ये शिकार और मछली पकड़ने में भी विशेष रुचि रखते थे। 
					चीन में आज भी हर तालाब पर कुलीन और अकुलीन, गरीब और अमीर सभी 
					एक साथ मछली पकड़ते हुए देखे जाते हैं। शिशान भगिनी-संस्कृति 
					पेईशीन की अर्द्ध प्रच्छन्न गुफाएँ, लंबवत स्तूप वाले आयताकार 
					गड्ढे, सींग, दाँत, पत्थर के औज़ार, कुंभकारी और पीसने की कला 
					के प्रयोग इस सभ्यता के बेहतर होने के प्रमाण देते हैं।  
					 
					निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि पीली नदी की सभ्यता विश्व की 
					प्राचीनतम संस्कृतियों में, जिसमें जल की वही प्रतिष्ठा है, जो 
					सिंधु संस्कृति में मिलती है, वही यहाँ भी है। मृद्भांड भी 
					यहाँ पर्याप्त मात्रा में मिले हैं। इस तरह इस सभ्यता की जीवन 
					शैली और बहुत सारी स्थितियाँ और परिस्थितियाँ सिंधु सभ्यता से 
					मेल खाती हैं। इसलिए यह सभ्यता विश्व की अन्य सभ्यताओं और 
					संस्कृतियों की अपेक्षा अपनी सिंधु सभ्यता और संस्कृति के अधिक 
					निकट है।   |