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नाटक

नाटकों के स्तंभ में प्रस्तुत है डा प्रेम जनेजय का प्रहसन 
'सीता अपहरण केस'


अंक 1    दृश्य - 1

(मंच पर अंधेरा। प्रकाश का एक गोल घेरा कुरसी पर बैठे रौबीले थानेदार पर आता है। उसका हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा हुआ है जिसमें डंडा पकड़ा हुआ है। दो–तीन फटे हाल ग़रीब जिनकी पीठ पर 'भारतीय जनता' लिखा हुआ है आरती का सामान लिए है। नेपथ्य से आरती का स्वर आता है।)

ओम जै पुलिस हरे, स्वामी जै पुलिस हरे
भ्रष्ट जनों के संकट, पल में दूर करे
(गुंडेजनों के संकट) पल में दूर करे। 
ॐ जै . . .
जो चढ़ावा चढ़ावे सब, कष्ट मिटे उसका
संपति घर की जावे, जब संग मिले इनका।  
ॐ जै . . .
तुम भ्रष्टाचार–सागर, तुम बदमाशी करता
तुमरे आसीरवाद बिना, डाका नहीं डलता।  
ॐ जै . . .
तुम बिन हत्या न होती, अपहरण न हो पाता
तुम भ्रष्टाचार शिरोमणी, मंत्रियों के अन्नदाता।
ॐ जै . . . 


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