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मैं उसकी बात पर हँस नहीं सकी। वह सचमुच बदल चुकी थी। वह अपने बारे में इतनी गंभीर थी कि मेरा उसे पुरानी दोस्ती की ज़मीन पर लाना असंभव दीख रहा था। यों वह अपनी पूरी दोस्ती जता रही थी। स्नेह भरी बातें कर रही थी। अकेले में मिलने का मौका इसी बूते ही तो दिया था। पर फिर भी एक बात के लिए खुद को रोक नहीं पाई। पुरानी दोस्ती और आत्मीयता के नाम पर ही...
तेरे मियाँ को कोई ऑबजेक्शन नहीं कि तू इस तरह अकेली घूमती है। अब वह इजाज़त दे देता है।
उसके चेहरे पर ढेर सारी मुस्कुराहट बिखर गई, लगभग हँस ही पड़ी वह। उसका तो काया पलट हो गया है। एकदम। नाम हो गया है न मेरा तो उसको भी ज़्यादा लोग पूछते हैं अब। उसको तो आराम से क्लायंट्स मिल जाते हैं अब। उसका जिस किसी से काम होता है उसे इलाज का लालच देकर फाँसता है। मैं तो ख़ैर सभी का इलाज करती ही हूँ पर यह बड़ा अहसान जताकर लाता है उनको मेरे पास ताकि उसका काम बनता रहे। आइ डोंट केयर फॉर हिम। बहुत मीन आदमी है वह। हर जगह अपने बिज़नेस का मतलब ही रहता है उसे। मुझे अपनी अलग गाड़ी, ड्राइवर और अलाउंस दिया हुआ है ताकि अपनी सहूलियत से आ जा सकूँ। पर उससे क्या! माई नीड्स आर मेट एनीवे। कोई ज़माना था कि खुद तो ऐश करता था और मुझे घर से बाँधकर रखा था। अब मैंने बोल दिया है जब मैं बाहर रहूँ तो छोटे का ख़याल उसी को रखना होगा। वैसे तो अब वह काफी आत्मनिर्भर हो गया है फिर भी ध्यान रखना होता ही है न। पुअर चाईल्ड! ही विल ऑलवेज़ नीड सम सुपरविजन। अब तो उसकी छोटू से दोस्ती सी हो गई है। पहले तो कभी बाप का धर्म निभाया ही नहीं था।

मैं भी मुस्कुरा पड़ी थी। मन को बड़ी तसल्ली-सी हुई। हाँ तो अब उसके भक्त उसके पति के क्लायंट्स बन गए हैं। या कहिए कि पत्नी किसी न किसी तरह सबको संतुष्ट तो कर ही देती है। पति खुश और पासा पलट गया है। अब वह रौब से रहती है।
वह बहुत तेज़ लड़की थी। बहुत होनहार। कॉलेज में हम साथ ही तो थे। पर वही कि बी.ए. मुश्किल से पास नहीं की कि माँबाप ने शादी कर दी। पति अमीर तो खूब था पर देखने में घोंचू। ऊपर से सुंदर पत्नी पाकर हीनताग्रंथि का ही शिकार बना रहता। परिणाम यह कि राजी को इस तरह कसकर रखता कि बेचारी साँस लेने को तरस जाती। जहाँ जाना होता साथ ही ले जाता, न तो नौकरी करने देता।

वही राजी इलाज करने के नाम पर अब कहीं भी जा सकती थी। दूसरे शहरों में, दूसरे देशों में। कभी सिंगापुर तो कभी लंदन। कभी न्यूयार्क तो कभी कैनेडा।
किसी से भी मिल सकती थी। अब पुरुषों से भी मित्रता स्वीकार थी पति को। क्योकि उसे भी तो लाभ ही था। इन पुरुषों से उसके भी काम निकलते थे और बिना अहसान में दबे। यों भी वह सोचता कि सारे मर्द अब उसकी पत्नी को माँ की तरह पूजते हैं।

हाँ चाहे उनका मुखौटा गुरु भक्त का ही रहता। मज़ेदार बात तो यह है कि बहुत से पुरुष राजी को अपनी प्रेम भावना भी जता गए हैं। बार-बार आ जाते हैं। वह भी भक्ति के रूप में प्रेम स्वीकार लेती है। मुझसे बोली इसी को तुम्हारे साहित्य में रहस्यवाद कहते हैं न। बुलाते तो सब माँ ही है न उसे। अब कोई भक्त आकर कहे कि सारी रात सो न सका। आपका चेहरा ही आँखों पर छाया रहा तो राजी क्या उसे डाँट लगाएगी!
उसके भीतर की औरत, माँ, भगिनी सभी एकदम तृप्त है।
क्या खूब है राजी! मैंने मन ही मन उसको दाद दी! कहाँ तो पति के मन में तनिक भी इज़्ज़त नहीं थी। न तो राजी के लिए न राजी के परिवार के लिए। राजी भी जानती थी कि अपने मायके लौटना उसके परेशानियों, मुसीबतों का हल नहीं है। तो इससे अच्छा हल और क्या हो सकता था कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

मैं सोच रही थी कि क्या यही उसका उसके पति से प्रतिरोध है? क्या ले पाई है वह उस सारे अनाचार का बदला।
लोगों से घिरी यह गुरुमाई कहाँ घर की चहारदीवारी में अकेली सड़ती थी, अब पति भी इसका भक्त हो गया है। पति का फैलता हुआ व्यापार भी अब राजी के कंधों पर। क्या यही है राजी का बदला?

उसने मेरे चेहरे की ओर ग़ौर से देखते हुए आवाज़ में बहुत संजीदगी लाकर कहा, ''सुन मैं देख रही हूँ कि अगले तीन साल में तेरे साथ कुछ दुर्घटना होनेवाली है। तुझे मंत्र दूँगी। यहाँ आई हुई हूँ मैं तो कर दूँगी तेरा भी काम। फिर उसने किसी मशहूर अभिनेता का नाम ले बतलाया कि उसकी भी आसन्न आपत्ति को उसके चेहरे से ही बतला पाई थी। तब बेचारे को बचाने का उपक्रम भी किया। वह तो इतना मानता है न अब मुझे कि फ़िल्म इंडस्ट्री का कोई न कोई आता ही रहता है हमारे पास।

यानि कि वह मुझे भी यही विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही थी कि जो कुछ मैं देख रही हूँ वह ढोंग नहीं, सच है। वह सच में विशेष शक्तियों की मालिक है। खाली उसको पहले पता नहीं था। लेकिन अब पता है। वाह खूब! कहीं उसे यह डर तो नहीं कि मैं उसकी पुरानी सहेली होने के नाते यह ढिंढोरा पीट दूँगी कि यह तो आम औरत है, अपने पति की सताई जो अपने बेटे के इलाज के लिए इधर-उधर भटकती रहती है। इतनी ही शक्तियाँ हैं तो बेटे का ही इलाज क्यों नहीं कर लेती।
पर न तो मैं ऐसा कुछ कह सकी न ही उसका चेहरा देख मेरी हिम्मत ही हुई कि उसे सुनने को तैयार कर सकूँ। जो मोहजाल, जो संसार उसने अपने इर्दगिर्द गढ़ा था, उससे उसे बाहर निकालने में मैं आखिर किसका भला कर रही थी? मैंने सिर्फ़ खुद को ही समझाया...
तो यह सब एक खिलवाड़ नहीं है... राजी बेहद सीरियस है।
मैं उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश करती रही। लेकिन कुछ स्पष्ट नहीं हुआ।
बस सोचती रही कि क्या यह उसका पति से प्रतिशोध या... या एक और रणनीति। ऐसी रणनीति जो कभी अचूक नहीं होती!

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१८ मई २००९

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