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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू.एस.ए. से
सुषम बेदी की कहानी— 'चट्टान के ऊपर, चट्टान के नीचे'


डोरा जानसन ने कैशियर को पैसे चुका कर सामान के थैलों की और देखा तो आँखों से ही बोझ का अनुमान करने लगी। सामान कुछ ज़्यादा ही ले लिया था। उठाने में थोड़ा बोझ लगा ही था कि कैश रजिस्टर पर खड़ी लड़की ने अपने पीछे खड़े एक काले लड़के की ओर इशारा कर कहा कि मदद चाहिए तो यह लड़का आपके साथ चला जाएगा। एक दो डालर टिप कर देना। लड़की ने बताया कि ये लड़के इन्हीं कामों के लिए आ जाते हैं और थोड़ी-सी टिप लेकर जैसी मदद चाहिए हो कर देते हैं। चट्टान वाली सड़क समतल नहीं थी। थोड़ी चढ़ाई चलनी पड़ती थी। डोरा ने शुक्र मनाया कि चलो मदद हो जाएगी और यह लड़का भी कुछ कमा लेगा। वह उसे अच्छी टिप दे देगी।
रास्ता चलते-चलते वह उनसे बात करने लगी। उसका एक दोस्त भी साथ चल रहा था।
डोरा ने पूछा, ''कितने साल के हो?''
''१४ साल।''
''पढ़ते हो?''
''हाँ यहीं पब्लिक स्कूल में।''
''कौन-सी क्लास में?''
''नवीं।''
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