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कहानियाँ  

आप्रवासी भारतीय लेखकों की कहानियों क संग्रह वतन से दूर में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी— 'वापसी'।


अँधेरे में ही सबकुछ देखना, देखने की कोशिश करते रहना। एक आम बात है यहाँ पर। लंदन सोता नहीं, पर चन्द सोए लोग जगें, इसके पहले ही हेमंत उठ जाता है... ताजी, अनछुई हवा को सीने में समेटे... उस ठंडी सिहरन से होठ और गाल सहलाता हुआ। और फिर उस कुहासे में दौड़ते हुए ही पूरे दिन की रूप–रेखा बना लेता है... स्पष्ट और साफ–साफ। अँधेरे से तो वह कभी नहीं डरा। वैसे भी यहाँ अगर ज्यादा सूरज निकल आए तो आँखें चुँधिया जाती है। काले–चश्मे की जरूरत पड़ जाती है।

खुद को छूती गरमी से ही हेमंत जान लेता है कि सूरज कब और कहाँ निकलने वाला है... निकलेगा भी या नहीं? गुरबख्श सिंह लाम्बा भी ऐसा ही दूरदर्शी और समझदार है, बस हेमंत सा भावुक नहीं है। उसका व्यक्तित्व अपने नाम सा कँटीला और रोबदार है। खरा और रूखा–रूखा, नफे–नुकसान के तराजू में तुला हुआ। रेतसी फिसलती जिन्दगी को कसकर मुठ्ठी में जकड़े–पकड़े हुए। रोज ही
मिलते हैं वे दोनों, इसी सड़क पर।

दो अलग–अलग व्यक्तित्व, पर आपस में कहीं गहरे जुड़े हुए। एक ही डाल पर खिलते फूल और काँटे जैसे। धन माया की तरह बच्चे भी गुरबख्श की जिन्दगी में आए और उसकी उपलब्धियों से जुड़ गए।

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