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					 सुनाते 
					इस तरह हैं जैसे स्वप्न में नहीं बल्कि पूरे होशहवास में 
					उन्हें शिवजी मिल गए हों। उन्होंने लोगों को विश्वास दिला दिया 
					है कि यह नंदी भगवान शिव की कृपा से शहर में प्रकट हए हैं और 
					पूर्व जन्म के पुण्य से ही यह जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है। 
 नंदी के साथ दो लोग हैं। पहले का हुलिया अजीब किस्म का है। सिर 
					पर भगुए रंग की बंदर टोपी है। टोपी के नीचे से आगे-पीछे 
					लम्बी-लम्बी जटाएँ लटक रही है। माथे पर चंदन और सिंदूर का 
					मिलाजुला त्रिशूल का निषान बना है जिसके बीच कई जगह फूल और 
					चावल के दाने फँसे हैं। कान में सोने जैसी दिखने वाली गोल नकली 
					बालियाँ हैं। कान चंदन से पुते हुए हैं। बाएँ कंधे पर एक लम्बा 
					झोला नीचे तक लटका रहता है। नाक लम्बी है पर नुकीली नहीं। आगे 
					से चपटी दिखती है। बेतरतीब सी दाढ़ी है। दुबला-पतला दिखने वाला 
					यह आदमी तीस बरस से ज्यादा नहीं लगता। उसने मैरून रंग का खादी 
					का कुर्ता पहल रखा है और धोती अजीब तरीके से बाँध रखी है, जैसे 
					ड्राइवर लोग अक्सर रात को सोते हुए एक चादर लपेट लेते हैं। पैर 
					में लम्बी-लम्बी खड़ावें हैं जिनकी बेसुरी टकटकाहट दूर-दूर तक 
					सुनी जा सकती है।
 
 दूसरा आदमी चालीस के पार का लगता है। वह शहर वासियों का जाना 
					पहचाना चेहरा है। उसे शहर में होने वाले शादी-ब्याह या दूसरी 
					साहित्यिक गोष्ठियों में कहीं भी देखा जा सकता है। कई बार वह 
					माल और लोअर माल पर इतनी तेजी से चलता है कि उस जैसा व्यस्त 
					आदमी कोई नहीं होगा। कभी वह किसी पुरानी बिल्डिंग या बैंच पर 
					गंभीर मुद्रा में ऐसे खड़ा मिलेगा जैसे पूरे देश की चिंताएँ इसी 
					को खाए जा रही है। कभी कभार लोग उसे गुनगुनी धूप का आनन्द लेते 
					सड़क की किसी बैंच घण्टों बैठे भी देख लेते हैं। वहाँ वह अजीब 
					तरीके से ऊँघता रहता है मानो पूरे सप्ताह रामलीला देखता रहा 
					होगा। मन्दिरों में भी वह सुबह शाम दिखता है। कई साल पहले जब 
					गणेश जी की मूर्तियों ने दूध पीना शुरू किया था तो उसने पूरे 
					शहर में जगह-जगह जाकर ढिंढोरा पीटा था। इतना ही नहीं वह कहीं 
					भी किसी भी पार्टी या संस्था के जुलूस का झण्डा लेकर भी सबसे 
					आगे चलता मिलेगा।
 
 उसके माथे पर कई तरह के तिलक लगे होते हैं। वह ढीला कुरता और 
					बदरंगी जीन पहनता है। लेकिन नंदी के साथ रहते हुए उसने राम-नाम 
					वाली पीली चादर ओढ़ ली है। नंदी को किस दिशा में हाँकना है यह 
					वही तय करता रहता है। उसके सिर पर एक टोकरा भी है जिस में लोग 
					फल और मिठाइयाँ फेंकते चलते हैं। जब टोकरा भर जाता है तो अचानक 
					दो-तीन लड़के, जिनके माथे में लम्बे लम्बे तिलक लगे होते हैं और 
					गले में रामनाली दुपट्टा ओढ़ा रहता है, अचानक भीड़ से निकल कर 
					नया टोकरा उस आदमी के सिर पर रख कर भरा हुआ ले जाते हैं। ऐसा 
					ही झोले वाले के साथ भी होता है। जब उसका झोला चढ़त के पैसों 
					से भर जाता है तो दो छोकरे अचानक भीड़ में से प्रकट होकर झोला 
					ले जाते हैं और नया उसे थमा देते हैं।
 
 नंदी भगवान देखने लायक है। इस तरह का बैल शहर के लोगों ने पहली 
					बार देखा है। वह बहुत तगड़ा और लम्बे कद का है। उसकी चूड़ें खूब 
					लम्बी है। कूखें भरी हुई हैं। हल्के सफेद रंग के सींग बहुत भले 
					लगते हैं। वे उसके माथे के बिल्कुल ऊपर गोलाई में पीछे की तरफ 
					मुड़े हैं। पीठ ऊपर से हल्की सपाट है। मुँह काफी मोटा और भारी 
					भरकम नथूने। पूँछ जमीन को छूती हुई है। लोगों ने उसके सींगों 
					और पूँछ में कई लाल रंग की चुनरियाँ बाँध दी है। इसलिए वह अब 
					पूँछ हिलाने में भी दिक्कत महसूस करने लगा है। उसकी आँखों में 
					झांके तो मन पसीज जाता है। पानी की धार दोनों आखों से टपक रही 
					है। आँखों में खून तैर रहा है। कोई बीच से कारण पूछता है तो 
					झोले वाला उपदेश की भाषा में लोगों को समझाने लगता है कि 
					पृथ्वी पर घोर संकट आ गया है। पाप बढ़ रहा है। बेईमानी का 
					बोलबाला है, इसलिए नंदी भगवान गुस्से में हैं।
 
 दो-तीन दिनों के बाद नंदी का चलना बंद हो गया है। उसकी चाल और 
					हाव-भाव से लगता है कि वह थक गया है। पर भक्तजनों को शिवली के 
					इस गण का थकना केसे गवारा हो सकता है। अब उसे शहर की एक खुली 
					जगह में खड़ा कर दिया है। यह जगह राजनीतिक पाटियों की रैलियाँ 
					करने की है। उस मैदान में अभी तक चारों तरफ पक्ष और विपक्षी 
					पार्टियों के फटे-कटे बैनर और पोस्टर झूल रहे हैं। मैदान में 
					भारी भीड़ जमा हो रही है। औरतों की कई टोलियाँ भजन कीर्तन में 
					मस्त है। जगराता करने वाली दो पार्टियों ने सुबह से ही फिल्मी 
					गानों की तर्ज पर भजन गाकर धमाल मचा रखा है। माइकों में उनकी 
					चीखें दूर-दूर तक सुनाई दे रही है। शहर के कुछ दानी 
					व्यापारियों ने बैठने का इन्तजाम कर लिया है। कीर्तन वालों के 
					लिए माइक के प्रबन्ध भी किए गए हैं। एक सिमैंन्ट फैक्ट्री का 
					मालिक अतरिक्त रूप से व्यस्त दिखता है। उसने नंदी के लिए 
					सुन्दर मंच बनवाया है जैसे उस पर बैठ कर नंदी नहीं बल्कि 
					स्वामी राम देव योग के गुरू सिखाएँगे। कई मोबाइल कम्पनियाँ भी 
					अपनी तरफ से कुछ न कुछ योगदान दे रही है। कई बैनर नंदी के 
					सम्मान में लगाए हैं। शहर की एक मशहूर स्वयं सेवी संस्था जो 
					जानवरों की रक्षा के लिए काम करती है वह भी नंदी की सेवा में 
					सबसे आगे हैं। उसने अपनी संस्था के नाम से नंदी पर एक लम्बी 
					चादर ओढ़ा दी है। उस चादर के कई स्पोंसर्स हैं। उनके विज्ञापन 
					चादर के छोरों पर प्रमुखता से देखे जा सकते हैं। शहर कुछ दिनों 
					पहले चुनाव की रैलियों के शोर-नारों से बहरा हो गया था अब 
					बेसुरे भजन-कीर्तन की चीखों से परेशान है। लेकिन यह परेशानी 
					भगवान के नाम पर उन्हें अच्छी लग रही है।
 
 अब लोगों को नंदी भगवान का प्रसाद दिया जा रहा है। दो लोगों के 
					पास प्लास्टिक की बाल्टियाँ है।
 
 प्रदेश में नई सरकार बनी है। उसके सत्ता संभालते ही नंदी का 
					प्रकट होना राज्य की सुख स्मृद्धि और सरकार की लम्बी पारी के 
					लिए शुभ माना जा रहा है। मीडिया बढ़ चढ़ कर इसका बखान कर रहा है। 
					कई चैनलों ने भगवान शिव और नंदी की कथाएँ बतानी शुरू कर दी है। 
					बैल को भगवान शिव के गण और एक नए अवतार के रूप में दिखाया जा 
					रहा है। उसी मैदान में शिव पुराण भी शुरू हो गया है। नई सरकार 
					बने और उसके नेता न आए यह कैसे हो सकता है। इसलिए आज मुख्य 
					मंत्री महोदय दर्शनों के लिए पधार रहे हैं। मीडिया सारे 
					कार्यक्रम को ’लाइव’ दिखा रहा है।
 
 मुख्यमंत्री के साथ कई मन्त्री और विधायक भी हैं। शहर के 
					मन्दिरों से दो पंडितों को विशेष पूजा के लिए बुलाया गया है। 
					नंदी को मंच पर धकेल कर खड़ा कर दिया गया है। पार्टी के 
					कार्यकर्ता अब नंदी के कम मुख्यमंत्री जिंदाबाद के नारे अधिक 
					लगा रहे हैं। जिला प्रशासन की नाक में दम हो गया है। हजारों 
					पुलिस वाले पहुँच गए हैं पर फिर भी भीड़ को संभाला मुश्किल हो 
					रहा है।
 
 उस चादर को अब नंदी के सींगों पर आगे डाल दिया गया है ताकि 
					उसका मुँह ढक जाए। इसका अनावरण मुख्यमन्त्री से करवाया जाना 
					है। यह ’आइडिया’ जिला के कलैक्टर महोदय ने सुझाया है। जैसे ही 
					पूजा शुरू होती है और मुख्यमंत्री को मंच पर नंदी के अनावरण के 
					लिए ले जाया जाता है, भीड़ में पीछे की तरफ शोर सुनाई देता है। 
					कुछ पुलिस वाले एक ग्रामीण को आगे आने से रोक रहे हैं। वह 
					ग्रामीण फिर भी आगे निकलने का भरसक प्रयास कर रहा है। वह छः 
					फुट से भी कुछ लम्बा और तगड़ा अधेड़ है। सिर पर मैली सी चादर का 
					साफा बाँध रखा है। कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ हैं। 
					माथा चौड़ा और मुँह भरा हुआ है। लम्बी-लम्बी मूँछे और छोटी छोटी 
					दाढ़ी है। ठोडी नीचे की तरफ काफी लम्बी दिखती है। लम्बा कुरता 
					पहना है और फेरीदार पायजामा। कंधे पर एक चादर बागे पीछे लटक 
					रही है। पाँव में लम्बी पंजाबी सी दिखने वाली जूतियाँ हैं। एक 
					हाथ में लगभग आठ फीट का बाँस का डंडा है। दूसरे हाथ में एक 
					मुड़ा-तुड़ा अखबार है। यह वही समाचार पत्र है जिससे उस गंवई को 
					नंदी के शहर में होने का समाचार मिला था। अखबार में छपे नंदी 
					के चित्र देखकर वह पगला गया था और शहर की और चला आया था। नंदी 
					को मिलने और देखने की ललक उसमें सबसे ज्यादा थी।
 
 पुलिस वाले उसे रोकने का भरसक प्रयास कर रहे हैं पर वह आगे 
					बढ़ता चला आ रहा है। उसकी निगाहें मंच पर नंदी पर टिकी है। जब 
					वह रुकता नहीं तो पुलिस वाले बतमीजी पर उतर आते हैं। इस अपमान 
					से वह तैश में आ जाता है। उसके गुस्से का पारावार नहीं रहता। 
					उन्हें जोर का घक्का देकर नीचे गिरा देता है और गजब की फुर्ति 
					के साथ मंच पर पहुँचते ही नंदी के ऊपर की चादर खींचते ही हाँक 
					मारता है,
 ’अरे ओए बग्गेया। यार तेरे को कहाँ कहाँ नी ढूँढेया बे। तू 
					कहाँ फँस गया रे इन पापियों के चक्कर में।’
 
 ग्रामीण की आवाज पहचानते ही नंदी बैल की जान में जान आ जाती 
					है। बैल गर्दन हिलाता है तो एक मन्त्री को सींग लग जाता है और 
					वह औंधे मुँह मंच से नीचे गिर पड़ता है। झोले वाला आदमी नंदी के 
					सामने आकर उसे अपने होने का एहसास करवाना चाहता है पर सींग की 
					टक्कर से वह भी दूर गिर पड़ता है। इस भागमभाग में मुख्यमन्त्री 
					के हाथ से पूजा की थाली गिर जाती है। भीड़ में एक पल के लिए 
					सन्नाटा पसर जाता है। ग्रामीण झटपट बैल के शरीर में जगह-जगह 
					बँधी लाल चुनरियाँ खींच कर नीचे फैंकता है और कन्धे पर से अपनी 
					चादर निकाल कर उसके सींग, माथा, मुँह और पीठ पोंछने लगता है। 
					दोनों की आँखों में आँसू है। उसकी इस हरकत को देख कर कई 
					सुरक्षा कर्मी मंच पर उसे पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं। 
					मुख्यमंत्री के एक-दो कमांडो उस पर अपनी गने तान लेते हैं तो 
					वह जोर से दहाड़ता है,
 
 ’अरे वो आँखों वाले अंधेओ ! ये कोई नंदी-वंदी नी है। मेरा 
					नीहला बैल है, जिसे ये लफँगे-चोर जबरदस्ती गाड़ी-वाड़ी में उठा 
					कर ले आए हैं। एक हफ्ते से ढूँढ रहा हूँ इसको। अखबार में खबर 
					नी छपती तो मर जाता मेरा बग्गा।’
 
 यह कहते हुए ग्रामीण गुस्से में जोर से जमीन पर डंडा पटकता है 
					जिसकी धूल पास खड़े मुख्यमंत्री, नेताओं और अन्य लोगों मुँह और 
					आँखों में घुस जाती है। इस अप्रत्याशित घटना को देख कर सभी 
					अचम्भित हैं। आँखे मलते हुए वे देखते हैं कि ग्रामीण और बैल 
					दोनों सड़क से नीचे उतर रहे हैं।
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