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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से पावन की कहानी— फेसबुक मित्र


दिल्ली एयरपोर्ट। सुबह आठ बजकर पचास मिनट।
मैं ठीक समय पर पहुँच गया था। एयरपोर्ट के डिपार्चर लाउन्ज में खड़ा उसे आसपास तलाश कर रहा था। मुझे विश्वास था कि मैं उसे पहचान जाऊंगा। मैंने उसे कभी नहीं देखा था सिर्फ फेसबुक में लगी तस्वीर देखी थी। जब वह कहीं नहीं दिखाई दी तो मैंने मोबाइल फोन पर उसका नम्बर मिलाया। दूसरी तरफ तुरन्त घण्टी बजी मानों उसका मोबाइल मेरे ही नम्बर की प्रतीक्षा कर रहा हो।
‘हैलो?’, उसका परेशान और व्याकुल स्वर मेरे कानों में पड़ा।
क्या आप अभी पहुँची नहीं? मैं आ चुका हूँ।’, मैंने हिचकते हुए धीमे स्वर में कहा।

‘मैं रास्ते में हूँ। ड्राइवर बता रहा था कि बस पहुँचने ही वाले हैं।’
‘ठीक है।’, मैंने कहा और फोन काट दिया।
एकाएक मुझे कुछ याद आया। मैं लिफ्ट से नीचे एराइवल लाउन्ज में आया जहाँ एक गिफ्ट शॉप से मैंने उसके लिए एक ‘लॉफिंग बुद्धा’ खरीदा। पहली बार मिलने जा रहा हूँ उससे, कुछ तो देना ही पड़ेगा। गिफ्ट शॉप भी शायद अभी खुली थी क्योंकि सेल्समैन की आँखों का उनींदापन मेरी आँखों में उतरने लगा था।

आज तेरह अप्रैल दो हजार ग्यारह है। मैं फेसबुक नियमित प्रयोग नहीं करता हूँ।

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