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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से जयनंदन की कहानी— बदरी मैया


रात जब अपना अंचरा ओढ़ा देती है धरती को तो नैका धान की पहली गमक से सगरी घर-दुआर एकाएक गमगमा जाता है। आज महीनों बाद बदरी मैया को लगता है कि रात लोरी गा रही है और एक गमक लुटा रही है। जबकि रोज ऐसा लगता था कि रात सिसक-सिसककर विलाप कर रही है और मुर्दा जलाने जैसी बदबू फैला रही है।

बगल की खाट में बबनी और उसके बेटे सोनू को बेखबर सोया देख मैया का हर गम गलत हो जाता है। आज शाम ही बबनी आयी है। मैया अपनी खाट छोड़कर जगह न रहने पर भी बबनी की बगल में तंगी से लेट जाती है। उसका मुँह अपनी ओर करके उसे छाती से चिपटा लेती है, जैसे वह कोई दूधमुँही बच्ची हो। फिर उसके बदन को अपने हाथ से सहलाने लगती है।

उसे महसूस होता है कि बबनी की देह बहुत खुरदरी हो गयी है। लगता है बेचारी को तेल भी मयस्सर नहीं होता। वह उठकर मलिया में तेल लाती है और उसके गोड़ आदि में लगाने लगती है। बबनी की नींद उचट जाती है। वह आँखें मल-मलकर भौंचक देखती है कि एक साठ बरस की बूढ़ी मैया अपनी छब्बीस बरस की जवान बेटी को तेल लगा रही है।
हड़बड़ाकर उठ बैठती है बबनी, ’’तू ई का कर रही है मैया ?’’

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