|  | हाथ में काँच की रंग-बिरंगी 
                    गोलियाँ उछालता रघु चारों ओर घेर कर खड़े बच्चों को चीख-चीख कर 
                    हिदायतें दे रहा था। छूना मत। हाथ मत लगाना। अबके धंईया मेरी। 
                    निशाना न लगे तो कहना। जबरदस्त खेल चल रहा था। पूरी बारह गोलियाँ दाँव पर लगी थीं। 
                    मजाक बात थी क्या। सुकना ने उलाहना दिया, ''हाँ-हाँ बहुत देखे 
                    हैं धंईया जीतने वाले। पहले कन्चे फेंक तो सही।''
 ''फेंकता हूँ, पर देख सुकना। सबको गुच्चक पर से हटा दे।''
 ''हटो रे'' कहता सुकना किसी कांस्टेबिल की तरह उत्सुकता से आगे 
                    बढ़ आए बच्चों को पीछे धकेलने लगा।
 
                    सब बच्चे दम साधे खड़े थे। देखों 
                    क्या होता हैं? कौन जीतेगा इत्ते सारे कन्चे? सुकना या रघु, 
                    रघु या सुकना। सब अटकलें लगा रहे थे। और रघु कन्चे खनकाता चीखे 
                    जा रहा था, ''पीछे हटो सब, और पीछे हटो।''''अरे सब हट तो गए, अब फेंक ना।'' सुकना ने कहा।
 रघु गुच्चक की ओर कन्चे लुढ़काने के लिए झुका। सब बच्चों की 
                    साँसें रुक गईं। समय जैसे थम गया हो। पर एकबरागी कन्चे 
                    फेंकता-फेंकता रघु रुक गया।
 ''अब क्या हुआ?'' सुकना ने बिगड़ कर पूछा।
 ''गुच्चक के आगे एक मिट्टी का ढेला पड़ा है, उसे हटा दे।''
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