|  क्या 
                    करुँ, क्या करुँ, जपता हुआ वह अपनी कोठी के लॉन में टहलने लगा। 
                    भीतर से उसकी बीवी ने उसे इस तरह से बेचैन देखा तो उसे अच्छा 
                    लगा। रात की मालिश असर दिखा रही थी। थोड़ी देर इसी तरह बेचैनी 
                    में टहलने के बाद वह सीधे टेलीफोन की तरफ लपका। उधर बड़े के साथ सुबह से यही कुछ हो रहा था। वह भी उसी समय 
                    टेलीफोन की तरफ लपका था। जब तक पहुंचता, फोन घनघनाने लगा।
 ''बड़े नमस्कार। मैं छोटा बोल रहा हूं।''
 ''नमस्ते। बोल छोटे। सुबह-सुबह! रात ठीक से पहुंच गए थे?'' 
                    बड़े ने सोचा, पहले छोटे की ही सुन ली जाए।
 ''बाकी तो ठीक है बड़े लेकिन मेरे साथ ज्यादती हो गई है। कुछ 
                    भी तो नहीं दिया है तुमने मुझे।''
 ''क्या बकवास है? इधर मैंने हिसाब लगाया है कि जब से तू 
                    पार्टनरशिप में आया है, हम दोनों ने मिलकर भी इतना नहीं कमाया 
                    है, जितना तू अकेले बटोर कर ले जा रहा है।''
 ''रहने दे बड़े, मेरे पास भी सारा हिसाब है...।''
 ''क्या हिसाब है? चार साल पहले जब तू नौकरी छोड़कर दुकान पर 
                    आया था, तो घर समेत तेरी कुल पूंजी चार लाख भी नहीं थी। डेढ़ 
                    लाख तूने नकद लगाए थे और ढाई लाख का तेरा घर था। अब सिर्फ चार 
                    साल में तुझे चार के बीस लाख मिल रहे हैं। चार साल में पांच 
                    गुना! और क्या चाहता है?'' बड़े को ताव आ रहा है।
 ''कहां बीस लाख बड़े। मुश्किल से दस-ग्यारह, जबकि तुम्हारे पास 
                    कम-से-कम एक करोड़ की प्रॉपर्टी निकलती है। नकद अलग।''
 ''देख छोटे,'' बड़ा गुर्राया, ''सुबह-सुबह तू अगर यह हिसाब 
                    लगाने बैठा है कि मेरे पास क्या बच रहा है तो कान खोलकर सुन 
                    ले। तुझे हिस्सेदार बनाने से पहले भी मेरे पास बहुत कुछ था। 
                    तुझसे दस गुना। अब तू उस पर तो अपना हक जमा नहीं सकता।'' बड़ा 
                    थोड़ा रुका। फिर टोन बदली, ''तुझे मैंने तेरे हक से कहीं 
                    ज्यादा पहले ही दे दिया है। मैं कह ही चुका हूं, इन चार-पांच 
                    सालों में हमने चार-पांच गुना तो कतई नहीं कमाया। रही एक करोड़ 
                    की बात, तो यह बिलकुल गलत है। बच्चू, मैं इस लाइन में कब से 
                    एड़ियाँ घिस रहा हूं। तब जाकर आज चालीस-पचास लाख के आस-पास 
                    हूं। एक करोड़ तो कतई नहीं।''
 ''नहीं बड़े।''
 ''नहीं छोटे।''
 ''नहीं बड़े।''
 ''नहीं छोटे।''
 ''तो 
                    सुन लो बड़े। मैं ज्ञानचंद नहीं हूं, जिसे तुम यूं ही टरका 
                    दोगे। मैंने भी उसी मां का दूध पिया है। इन चार सालों में हमने 
                    जितनी डील्स की है, सबकी फोटो कॉपी मेरे पास है। मुझे उन सब 
                    में पूरा हिस्सा चाहिए, चाहे दस बनता हो या पचास। मैं पूरा 
                    लिये बिना नहीं मानूँ गा।'' छोटे ने इस धमकी के साथ ही फोन काट 
                    दिया। जब तक बड़े और छोटे फोन से 
                    निपटते, ताजे समाचार जानने की नीयत से उनकी बीवियों गरम चाय 
                    लेकर हाजिर हो गईं। बड़े की बीवी ने खूबसूरत बोन चाइना के 
                    प्याले में उन्हें चाय थमाते हुए भोलेपन से पूछा, ''किसका फोन 
                    था?''''उसी का था। धमकी देता है, मेरा हिस्सा पचास लाख का बनता 
                    है।'' उसने मुंह बिचकाया, ''एक करोड़ का नहीं बनता। अपना भाई 
                    है, अच्छी हालत में नहीं है, यही सोचकर मैंने इसे पार्टनर बना 
                    लिया था। इसी के चक्कर में ज्ञानचंद जैसे काम के आदमी को अलग 
                    किया। उस पर झूठी तोहमत लगाई।'' बड़े की बीवी ध्यान से सुन रही 
                    है, ''अगर मैं इसे न रखता तो ज्ञानचंद अभी भी चार-पांच हजार 
                    में काम करता रहता। अब जो छोटा पंद्रह-बीस लाख की चपत लगाने के 
                    बाद भी उचक-उचक कर बोलियाँ लगा रहा है, वे तो बचते।''
 बड़े की बीवी ने तुरंत कुरेदा, ''तो अब क्या करोगे? ज्ञानचंद 
                    को फिर बुलाओगे क्या? अकेले कैसे सँभालोगे दुकान की इतनी 
                    भाग-दौड़?''
 ''बुलाने को तो बुला लूँ। अब भी बेचारा खाली ही घूम रहा है। 
                    कभी एक बेटे के पास जाता है तो कभी दूसरे के पास, लेकिन पता 
                    नहीं अब सिर्फ सैलरी पर आएगा या नहीं। एक बार तो उसे धोखे में 
                    रखा। हर बार थोड़े ही झाँसे में आएगा?''
 ''क्यों, उसे एक फ्लैट दिया तो था, सरिता विहार वाला?'' बीवी 
                    ने अपनी याददाश्त का सहारा लिया।
 बड़ा हँसने लगा, ''वह तो मुक़दमेबाज़ी वाला फ्लैट था। बेचारा 
                    ज्ञानचंद आज तक तारीख़ें भुगत रहा है। सुना है डीडीए में 
                    पंद्रह हजार खिलाए भी थे उसने कि फ्लैट उसके नाम रिलीज हो जाए। 
                    वे भी डूब गए।''
 ''तो कोई नया आदमी रखोगे क्या?''
 ''रखना तो पड़ेगा, लेकिन ज्ञानचंद जैसा मेहनती और ईमानदार आदमी 
                    आजकल मिलता कहां है। सच बताऊँ, आज जो हमारे ये ठाठ-बाट हैं, सब 
                    उसी की प्लैनिंग और मेहनत का नतीजा है। उसी की खरीदी हुई कई 
                    प्रॉपर्टीज हमने बाद में बेचकर कम-से-कम पचास लाख कमाए 
                    होंगे।''
 ''एक काम क्यों नहीं करते। उदिता की शादी के लिए उसे बुलाओगे 
                    ही न? तब बात कर लेना।''
 ''वो तो ठीक है। फोन करने पर आज ही चला आएगा, लेकिन दिक्कत यही 
                    है कि यही छोटा उसकी सिफारिश लाया था। इसी छोटे ने उसे 
                    निकलवाया और अब इसी की वजह से उसे फिर बुलवाना पड़ेगा।''
 ''अब तो जो भी करना है, सोच-समझकर करना।'' बड़े की बीवी ने चाय 
                    के खाली प्याले उठाए।
 
 अगले दिन जब छोटा अपना हिस्सा लेने गया तो बड़े ने उतना भी 
                    देने से इनकार कर दिया, जितने की बात हुई थी। छोटे ने बहुत 
                    हाय-तौबा की। चीख़ा-चिल्लाया, जब कोई भी तरकीब बड़े को डिगा न 
                    सकी तो मिन्नतें करने लगा - चलो जितना देते हो, दे दो। आखिर 
                    दो-एक रिश्तेदारों को बीच में डालकर ही छोटा अपना हिस्सा निकाल 
                    पाया। इतना पाकर उसे बिलकुल भी चैन नहीं है। उसके प्राण तो 
                    बड़े की तिजोरी में अटके पड़े हैं। अभी उसे कोई ढंग की दुकान 
                    नहीं मिली है, इसलिए कोठी के बाहर ही `प्रॉपर्टी डीलर'' का 
                    बोर्ड टँगवा कर उसने घर पर ही ऑफिस खोल लिया है। भाग-दौड़ कर 
                    रहा है। अभी कोई सौदा नहीं हुआ है, लेकिन उसे उम्मीद है, जल्द 
                    ही उसके भाग जागेंगे और वह भी करोड़ों में खेलने लगेगा।
 
 उदिता की शादी का न्यौता देने बड़ा, उसकी बीवी और उदिता खुद 
                    आये। उदिता की इच्छा है, दादी कुछ दिन उन्हीं के पास रहे। 
                    चाचा-चाची भी पापा से अपना झगड़ा भूलकर भतीजी की शादी के दिनों 
                    में वहीं रहें, अपना फर्ज निभाएँ। उदिता की शादी को एक विशेष 
                    मामला मानते हुए छोटे ने कुछ दिनों के लिए बिज्जी को बड़े के 
                    घर पर भेज दिया है। खुद भी दोनों हर रोज वहां जाने लगे हैं। 
                    छोटे ने उस दिन नशे में बड़े से किया वादा निभाया है और उदिता 
                    की शादी की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। बिज्जी और 
                    बाउजी को अच्छा लगा है कि छोटा मनमुटाव भुला कर बड़े के साथ 
                    कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
 शादी बहुत अच्छी हो गई है। 
                    ''सब कर्मों का फल'' कहते हुए सबने ऊपर वाले के आगे हाथ जोड़े 
                    हैं। शादी में बड़े ने छोटे को एक पैसा भी खर्च नहीं करने दिया 
                    है। कहा, ''अभी तो तेरे पास काम भी नहीं है, यह क्या कम है कि 
                    तू आया। इतनी मेहनत की।'' छोटा सिर्फ मुसकुरा दिया है। उसने 
                    अपनी प्यारी भतीजी को एक लाख रुपये नकद का शगुन और उसकी बीवी 
                    ने पचास हजार का जड़ाऊ हार दिया है, बड़े और उसकी बीवी के बहुत 
                    मना करने के बावजूद। सबकी आंखें खुली रह गयी हैं। उदिता की विदाई होते ही छोटे 
                    ने अपनी पुरानी वाली पोज़ीशन ले ली है। बिज्जी को वह अगले दिन 
                    ही ले आया और फिर वापस मुड़कर नहीं देखा। बड़े ने छोटे का आभार 
                    ही माना कि कम-से-कम शादी में तो इज़्ज़त रख ली छोटे ने।•
 छोटे ने उस दिन नशे में बड़े को किया एक और वादा निभाया है। 
                    उसने बिज्जी को कोई तकलीफ नहीं होने दी है। न उसने मां की वजह 
                    से नौकरानी को निकाला, न उससे घर के काम करवाए। जितनी बन पड़ी, 
                    सेवा की। उनका इलाज जारी रखा। अब इस बात का उसके पास कोई जवाब 
                    नहीं है कि बिज्जी दिन भर रोती रहती हैं। बाउजी को, बड़े को, 
                    उसके बच्चों को याद करती हैं।
 वैसे बिज्जी को कोई तकलीफ 
                    नहीं है। छोटा उनके कमरे में झाँकता है। उनके हालचाल पूछता है, 
                    बात करता है। कार में कभी-कभी मंदिर भी ले जाता है। उसकी बीवी 
                    भी बड़े की तुलना में कम ताने मारती है। खाना भी ठीक और वक्त 
                    पर देती है। पर बिज्जी को जो चाहिए वह न मांग सकती है, न कोई 
                    देने को तैयार है। बाउजी बीच-बीच में चले आते 
                    हैं। चुपचाप बिज्जी के सिरहाने बैठे रहते हैं। खुद भी रोते 
                    हैं, उसे भी रुलाते हैं। उसके छोटे-मोटे काम कर जाते हैं। हर 
                    बार कुछ-न-कुछ लाते हैं उसके लिए। नहीं आ पाते तो फोन कर लेते 
                    हैं। इन दिनों वे खुद भी बीमार रहने लगे हैं। इतनी दूर साइकिल 
                    पर आना-जाना भारी पड़ता है। बहुत चिंता रहती है उन्हें 
                    बिज्जी की। उसके लिए तड़पते-छटपटाते रहते हैं। उनके खुद के पास 
                    तो घर और बाहर दोनों हैं। कहीं भी उठ-बैठ लेते हैं। बिज्जी 
                    बेचारी सारा दिन अकेली कमरे में पड़ी रहती हैं। कोई तकलीफ न 
                    होने पर भी अकेलेपन और बुढ़ापे से, कमजोरी और बीमारी से वह हर 
                    रोज उसे लड़ते देखते हैं। असहाय से उसका हाथ थामे बैठे रहते 
                    हैं घंटों।इस बीच दो बार बिज्जी की तबीयत खराब हुई। पहली बार तो दो दिन 
                    में ही अस्पताल से घर आ गयी। तब छोटे ने किसी को भी खबर नहीं 
                    दी। न बड़े को, न बाउजी को। खुद दोनों ही भाग-दौड़ करते रहे।
 लेकिन, दूसरी बार की खबर 
                    बाउजी के ज़रिये बड़े तक पहुंच ही गई। बड़ा बहुत नाराज़ हुआ। 
                    लेकिन छोटा उसकी नाराज़गी टाल गया। बिज्जी महीना भर अस्पताल 
                    में रहीं। बाउजी लगातार वहीं रहे। अपने आपको पूरी तरह भूलकर। 
                    बिज्जी के घर वापस आ जाने पर बाउजी ने बड़े और छोटे के आगे हाथ 
                    जोड़े, उन्हें अब तो बिज्जी के साथ रहने दिया जाए और इस तरह वे 
                    अस्थायी तौर पर छोटे के घर आ गए हैं। शुरू-शुरू में बड़ा 
                    बिज्जी को देखने लगातार आता रहा। फिर धीरे-धीरे एकदम कम कर 
                    दिया।•
 आधी रात के वक्त बड़े के घर फोन की घंटी बजी है। बड़े ने वक्त 
                    देखा-पौने दो। इस वक्त कौन? फोन उठाया।
 ''बड़े, मैं छोटा बोल रहा हूं। पहले मेरी पूरी बात सुन लो, तभी 
                    फोन रखना...'' बड़ा घबराया, छोटा इस वक्त क्या कहना चाहता 
                    है।...
 ''अभी थोड़ी देर पहले बिज्जी चल बसीं। अंतिम संस्कार... कल 
                    सुबह ग्यारह बजे होगा। आप बिज्जी के अंतिम दर्शन तभी कर पाएँगे 
                    जब आप... प्रॉपर्टी में मेरे हिस्से के... पचास लाख के पेपर्स... 
                    लेकर आएँगे।'' और फोन कट गया।
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