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कहानियाँ   

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से अलका प्रमोद की कहानी— बादल छँट गए


उस पत्र पर उकेरे चिरपरिचित अक्षर देख कर, अतीत के धुँधलके से विस्मृत हुए चित्र उभरकर सामने आ गए जिन्होंने कनु को क्षण भर के लिए निस्पंद कर दिया। इस लिखावट को वह कैसे भूल सकती है, इसी लिखावट को लिखने वाले ने उसकी जीवन पत्री के चंद पन्ने ऐसे लिखे जिन्हें स्मरण करने मात्र से उसके मुंह का स्वाद कसैला हो जाता है। आज उसी के द्वारा लिखा पत्र पता नहीं किस झंझावात की पूर्व सूचना है। यद्यपि पत्र सारा के नाम था और युवा बेटी के निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप के वह नितान्त विरुद्ध थी पर इस पत्र को लेकर उत्पन्न उत्सुकता, व्याकुलता और चिन्ता ने उसके सिद्धातों को परे ढकेल कर पत्र पढ़ने को विवश कर दिया, कनु ने कांपते हाथों से पत्र खोला। वह पत्र क्या, एक झंझावात का संदेश ही था जिसने उसके मन के वातायन को झटके से खोल कर सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया था।

पत्र असीम का था जिन्होंने आज से सोलह वर्षों बाद अपनी वयस्क हो चुकी पुत्री सारा को उसके वास्तविक जनक से परिचित कराया था और इतने वर्षों का प्यार एक साथ उड़ेल दिया था तथा उसे अपने पास बुलाने का आग्रह किया था।
क्षण भर को उसकी सोचने समझने की शक्ति निचुड़ गई थी और वह विचलित हो गई। उसका किसी कार्य में मन नहीं लग रहा था मन में बस एक ही प्रश्न सिर उठा रहा था कि यदि सारा सच में असीम के पास चली गई तो उसका विछोह तो वह सह लेगी पर पुनीत से कैसे दृष्टि मिलाएगी, उसके सामने तो कनु का सिर सदा के लिए झुक जाएगा।

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