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घर-परिवार बचपन की आहट


नवजात शिशु का ग्यारहवाँ सप्ताह
इला गौतम


सिर उठा के

नन्हे-मुन्ने ने कुछ ही हफ़्ते पहले अपने हाथों की खोज की है और अब वह उनसे पूर्ण रूप से मोहित है। देखिए वह कैसे उनकी जाँच करता है, उन्हे मूँह में डालता है और उनको चूसने की कोशिश करता है। यदि शिशु अपनी अँगुलियों में बहुत अधिक खो जाए तो चिन्ता की कोई बात नही है। आत्म-तुष्टि का यह रूप शिशु को बहुत सुखदाई लगता है और इससे माँ को भी थोड़ी फ़ुरसत मिलती है।

इस हफ़्ते जब आप शिशु को गोद में उठाने जाएँगे तो वह पीठ के बल लेटे हुए अपना सर आपने आप थोड़ी देर तक उठाए रख सकता है। सहारे के साथ बैठते समय वह अपना सर स्थिर और सीधा रख सकता है। पेट के बल लेटते समय, शिशु अपना सर और सीना ४५ डिग्री तक उठा सकता है जैसे कि वह उठकर बैठना चाहता हो। आप शिशु के सामने बैठकर उसके आगे एक खिलौना हिलाकर उसको और प्रोत्साहित कर सकते हैं। एक मज़ेदार खेल जो शिशु की गरदन की मासपेशियों को विकसित भी करेगा - शिशु को पीठ के बल लिटाएँ और धीरे से उसके दोनो हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ़ खीचें बैठने की अवस्था में। धीरे से उसे वापस लिटा दें और दोहराएँ। इस पूरी क्रिया के दौरान शिशु अपना सर सीधा रखने में समर्थ रहेगा।

कहानियों की दुनिया में-

इतनी छोटी उम्र में भी शिशु को कहानियाँ सुनाना बहुत काम आएगा। माँ को पढ़ते सुनकर शिशु को भाषा को सुनने की समझ आती है। आवाज़ के उतार चढ़ाव बदल बदलकर, विभिन्न उच्चारणों में, गाना गाकर पढ़ने से माँ और शिशु के बीच एक बहुत रोचक सम्बन्ध विकसित होता है। जब आप पढ़ रहे हों तब यदि शिशु इधर उधर देखे या रुचि खो दे तो कुछ और करने की कोशिश करें या फिर शिशु को थोड़ा आराम करने का वक्त दें। उसकी प्रतिक्रियाओं से संकेत लें।

शिशु को पढ़कर सुनाने के लिए अनेकों किताबें उपलब्ध हैं। गत्ते वाली किताबें चुनें जिनमें बड़े और चमकदार चित्र बने हों और सरल लिखाई हो। या फिर बिना लिखाई की किताब जिसमें केवल चित्र बने हों कहानी बनाकर सुनाने के लिए अच्छी रहती है। इस समय किताबों के प्रति शिशु के लिए कोई सीमा नही होती। बड़े बच्चों की किताबें भी शिशु को मोहित कर सकती है अगर उनमे साफ़ रंग-बिरंगे चित्र बने हों। बड़ों के पढ़ने के लिए लिखी गई चीज़ें भी आप शिशु को पढ़कर सुना सकते हैं - अख़बार, पत्रिका, या आपका मनपसंद उपन्यास पढ़ने का प्रयास कर के देखिए। यदि आपको उसे पढ़ने में मज़ा आएगा तो शिशु को आपकी वाणी की लय सुनने में मज़ा आएगा।

डाईपर की मुसीबतें

सभी डाईपर पहनने वाले शिशुओं को कभी न कभी डाईपर रैश ज़रूर होता है। यह सामान्य बात है। जब भी शिशु की डाईपर वाली जगह लाल दिखे या छूने पर हलकी सूजी हुई और गर्म लगे तो इसका मतलब है कि शिशु को डाईपर रैश हो गया है। डाईपर रैश नीचे दिए गए कारणों से हो सकता है –

  • गीलापन - अच्छे से अच्छा डाईपर भी शिशु की कोमल त्वचा पर थोड़ा गीलापन छोड़ ही देता है। जब शिशु का मूत्र उसके मल के बैक्टीरिया से मिलता है तो हानिकारक अमोनिया बनता है। यदि शिशु गंदे डाईपर में देर तक रह जाए तो उसे डाईपर रैश को सकता है।

  • रसायनिक सम्वेदनशीलता - कुछ डाईपर खुशबू वाले होते हैं। इस खुशबू के रसायन से यदि शिशु को एलर्जी हो तो डाईपर के शिशु की त्वचा पर बार-बार घिसने पर भी शिशु को डाईपर रैश हो सकता है।

  • नया आहार- जब भी शिशु कोई नया खाना शुरू करता है या ठोस आहार लेना शुरू करता है तो डाईपर रैश होना सामान्य बात है। नया आहार मल का संरचना और निरंतरता बदल सकता है।

  • डाईपर की जगह हलकी गर्म और नम होती है जो बैक्टीरिया और यीस्ट को पनपने में मदद करती है। इसीलिए शिशु की त्वचा पर रैश हो जाता है।

सुरक्षा के उपाय

छोटी छोटी बातों का ध्यान रख कर हम शिशु की डाईपर रैश से रक्षा कर सकते हैं -

  • शिशु का डाईपर जैसे ही गंदा हो तुरंत बदलें। हर २ या ३ घंटे पर डाईपर बदलना अच्छा रहता है।

  • डाईपर बदलते समय हर बार शिशु का निचला भाग धोकर हलके से पोछें।

  • पाऊडर की जगह कोई डाईपर क्रीम लगाना ज़्यादा बेहतर है क्योंकि पाऊडर शिशु के फेफड़ो में जाकर उसे नुकसान पहुँचाता है।

  • ठोस आहार शुरू करते समय एक बार में एक ही नया आहार दें और ३ दिन तक रुक कर उसके बाद ही दूसरा नया आहार दें।
     

याद रखें, हर बच्चा अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र की सहायता लेनी चाहिए।

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