मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के इस स्तंभ में प्रस्तुत है
मार्कण्डेय की कहानी— हंसा जाई अकेला


वहाँ तक तो सब साथ थे, लेकिन अब कोई भी दो एक साथ नहीं रहा। दस-के-दसों-अलग खेतों में अपनी पिंडलियाँ खुजलाते, हाँफ रहे थे।
”समझाते-समझाते उमिर बीत गयी, पर यह माटी का माधो ही रह गया। ससुर मिलें, तो कस कर मरम्मत कर दी जाए आज।“ बाबा अपने फूटे हुए घुटने से खून पोंछते हुए ठठा कर हँसे। पास के खेत मे फँसे मगनू सिंह हँसी के मारे लोट-पोट होते हुए उनके पास पहुँचे।
”पकड़ा तो नहीं गया ससुरा? बाप रे.... भैया, वे सब आ तो नहीं रहे हैं?“ और वह लपक कर चार कदम भागे, पर बाबा की अडिगता ने उन्हें रोक लिया। दोनों आदमी चुपचाप इधर-उधर देखने लगे। सावन-भादों की काली रात, रिम-झिम बूँदें पड़ रही थीं।
”का किया जाय, रास्ता भी तो छूट गया। पता नहीं कहाँ हैं, हम लोग।“
”किसी मेंड पर चढ़ कर, इधर-उधर देखा जाय। मेरा तो घुटना फूट गया है।“
”बुढ़वा कैसे हुक्का पटक के दौड़ा था।“
”अरे भइया, कुछ न पूछो।“ मगनू हो-होकर के हँसने लगे। इसी बीच गाने की आवाज सुनाई पड़ी- हंसा जाई अकेला, ई देहिया ना रही।
मल ले, धो ले, नहा ले, खा ले
करना हो सो कर ले,
ई देहिया.....

पृष्ठ : . . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।