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 बतरस से लिखवट                                     साइकिल वाले पुराने दिन

साइकिल एक जरूरी वाहन था जब मैं १९६३ से १९७१ तक जबलपुर मे था। सिर्फ हमारा ही नहीं लगभग हर परिवार का एक अनिवार्य सा अंग था। पर एक बात मुझे कभी समझ नहीं आई थी वो यह कि शायद ही किसी परिवार के पास हवा भरने के लिए पंप होता था। हवा हम लोग चौक पर किनारे बैठे साइकिल ठीक करने वाले मिकेनिक के यहाँ से ही भरवाते थे। दस एक पैसे देने होते थे और अगर पंचर ठीक करवाना हो तो २५ पैसे लगते थे। साइकिल मेरे पास दिल्ली मे भी थी। आस्ट्रेलिया आकर साइकिल से नाता पूरी तरह से छूट गया। पर यह बता दूँ कि साइकिल यहाँ आस्ट्रेलिया मे बहुत ही प्रिय हॉबी है। इस हॉबी मे पंचर व हवा भरने के लिए नुक्कड़ पर मिकेनिक तो मिलने से रहा। इसका समाधान निकाला गया है कुछ मुख्य जगहों पर साइकिल को ठीक करने की टूल किट को फिट करके व साथ मे पंप भी लगा दिया गया है हवा भरने के लिए। यह प्रबंध देख एक बार तो फिर से साइकिल रखने का मन हो आया था। परन्तु अब पैदल से ही आनन्दित हो लेते हैं। टूल किट व पंप को फोटो मे देख लीजिए जो मैने सिडनी मे ओलम्पिक पार्क स्टेशन के पास देखा था।
- रतन मूलचंदानी

१ सितंबर २०२३

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