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 १. ३. २०१९

इस माह-

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अनुभूति में-

होली के रंगों से सराबोर अनेक रचनाकारों की विविध विधाओं में अनेक की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह होली के उत्सवी रंगों में रस भरते हुए हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं पारंपरिक मिठाई- चंद्रकला

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- ३- क्या पिये और क्या नहीं साथ ही अच्छी नींद लें।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव-

अभिरुचि में- विभिन्न देशों के व्यक्तिगत डाक-टिकटों की जानकारी से सम्बंधित पूर्णिमा वर्मन का आलेख- डाक टिकटों के संसार में अमलतास

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (मार्च) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- संजीव वर्मा सलिल की कलम से मधुकर अष्ठाना द्वारा संपादित संकलन- ''लखनऊ के प्रतिनिधि नवगीतकार'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३११
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-  होली के अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से चंडीदत्त शुक्ल की कहानी- तुम चुप रहो गुलमुहर

एकांत का धूसर रंग हो, चाहे मिलन की चटख रंगोली। खुशी मन में ही पैदा होती है, वहीं खत्म भी हो जाती है। हर दिन को होली बनाने की चाहत में फाल्गुनी ने वर्जित फल चख तो लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि हम अकेले भी अपने अंदर होते हैं और पूर्ण भी खुद से ही। कोई तनहाई दूसरों के सहारे खत्म नहीं होती...आसमान के गाल लाल थे। ऐन टमाटर की माफ़िक। होली का हफ्ता शुरू हो चुका था, सो धरती से अंबर तक, हर तरफ रंगों की बारात सजी थी, लेकिन हैरत की बात – सर्दी अब भी हवा की नसों में तैरती हुई। ठंड ने बादलों को थप्पड़ मार-मारकर पूरे आसमान को सुर्ख कर दिया था। सारी रात जागने के बाद चाँद कराह रहा था। दर्द के मारे उसके पैरों की नसें नीली पड़ गई थीं। उसकी विनती पर ही सरपट भागते, सूरज के रथ के आगे जुते घोड़े यकायक ठहर गए। उनके पैरों की नाल यों झनकी कि फाल्गुनी की आँखों से पलकों ने कुट्टी कर दी। उसने `आह' कह अंगड़ाई ली और करवट बदली। निगाहें लाल थीं। कम सोने और ज्यादा जागने की वजह से। रात का लंबा वक्फा आँख की राह से गुजरकर आगे बढ़ा था। आगे...
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मधु जैन की
लघुकथा- लो आ गया वसंत
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नर्मदा प्रसाद उपाध्याय का
ललित निबंध- रंग के रूपायन
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पर्व परिचय में जानें
रंगभरी एकादशी के विषय में
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पुनर्पाठ में ऋषभदेव शर्मा का आलेख
रंग गई पग पग धन्य धरा

पिछले अंक-में---

प्रेरणा गुप्ता की
लघुकथा- नयी काम वाली बाई
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सुभाष वसिष्ठ का रचना प्रसंग
नवगीतों में मध्यम वर्ग का संघर्ष
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भारतेन्दु मिश्र की कलम से श्रद्धांजलि
अवधी मुहावरों के गीतकार - कुमार रवीन्द्र
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पुनर्पाठ में कृष्णा सोबती का संस्मरण
फोन बजता रहा...

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समकालीन कहानियों में यूएसए से सुधा ओम ढीगरा की कहानी- तलाश जारी है

वह कई दिनों से कहानी की तलाश में घूम रहा है। शहर का चप्पा-चप्पा, कोना-कोना उसने छान मारा। पर उसे कहानी कहीं भी नहीं मिली। अंत में थक हार कर वह गोल्डन ट्री वैली पार्क में एक बेंच पर आकर बैठ गया। गुनगुना मौसम है और सामने से धूप आ रही है। उसने आँखों पर धूप का चश्मा चढ़ाया और बेंच से अपनी पीठ सटा कर धूप का आनंद लेने लगा। यहाँ के जीवन की भाग दौड़ में उसे कभी-कभार ही ऐसा मौका मिलता है। तभी उसने देखा, अधेड़ उम्र के दो भारतीय अपनी-अपनी कुर्सी लेकर वहाँ आए। उसकी बेंच से थोड़ी दूरी पर खाली जगह है, उन्होंने वहीं अपनी कुर्सियाँ खोल कर रख दीं। फिर वे एक फ़ोल्डिंग मेज ले आए, उसे खोला और उन कुर्सियों को मेज के दोनों तरफ रख दिया। उसके बाद वे शतरंज ले आए और उसे मेज पर सजा दिया। वह कनखियों से उन्हें देख रहा है...अंत में वे अपनी-अपनी थर्मस और गिलास ले कर आए। उन्होंने अपनी थर्मसें एक दूसरे के आमने-सामने टिका दीं और साथ ही फोम के गिलास भी, जिन्हें... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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