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लेखकों से
 १. ७. २०१८

इस माह-

अनुभूति में-
मनोज जैन मधुर, शैलष गुप्त वीर, राजेश कुमार माँझी, निशांत और अवध बिहारी श्रीवास्तव की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह वर्षा के मौसम को और मनोरंजक बनाते हुए, हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं - छोले की टिक्की

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २७ उपाय- २२- सकारात्मक सोच की शक्ति को पहचाने

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- ७- शनि के लिये खेजरी।

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं- सबसे बड़े और ऊँचे मठों वाला गाँव किब्बर

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (जुलाई) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- शशिकांत गीते की कलम से मयंक श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह- ''हैं जटायु से अपाहिज हम'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३०३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी- चंपा का मोबाइल

“एवज़ी ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली, कमला, लायी थी।
गर्भावस्था के अपने उस चरण पर कमला के लिये झाड़ू-पोंछा सम्भालना मुश्किल हो रहा था। चम्पा का चेहरा मेक-अप से एकदम खाली था और अनचाही हताशा व व्यग्रता लिये था। उस की उम्र उन्नीस और बीस के बीच थी और काया एकदम दुबली-पतली। मैं हतोत्साहित हुई। अतिव्यस्तता के अपने इस जीवन में मुझे फ़ुरतीली, मेहनती व उत्साही काम वाली की ज़रुरत थी न कि ऐसी मरियल व बुझी हुई लड़की की!
“तुम्हारा काम सम्भाल लेगी?” मैं ने अपनी शंका प्रकट की।
“बिल्कुल, आंटी जी। खूब सम्भालेगी। आप परेशान न हों। सब निपटा लेगी। बड़ी होशियार है यह। सास-ससुर ने इसे घर नहीं पकड़ने दिए तो इस ने अपनी ही कोठरी में मुर्गियों और अंडों का धन्धा शुरू कर दिया। बताती है, उधर इस की माँ भी मुर्गियाँ पाले भी थी और अन्डे बेचती थी। उन्हें देखना-जोखना, खिलावना-सेना...” आगे-
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सुदीप शुक्ल की लघुकथा
बाढ़ और मुसाफिर
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डॉ. मधु संधु की कलम से
प्रवासी कहानी में परामनोविज्ञान
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भावना तिवारी से रचना प्रसंग में-
नवगीत में महिला रचनाकारों का योगदान
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पुनर्पाठ में- उर्मिला शुक्ल का आलेख-
भक्तिकालीन काव्य में वर्षा ऋतु

पिछले अंक से-

अज्ञात की लघुकथा
नोटिस
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विश्वास पाटिल का ललित निबंध
कड़वी नीम के मीठे फूल
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प्रभात कुमार का आलेख
बड़े बाँध और डैम सेफ़्टी बिल
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पुनर्पाठ में- शेरजंग गर्ग का
संस्मरण- एक था टी हाउस
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
अनिलप्रभा कुमार की कहानी- वायवी

वह किताब आँखों के सामने रखकर बैठी रही। न आँखें पढ़ने की कोशिश कर रही थीं और न ही दिमाग समझने की। मन पता नहीं कहाँ-कहाँ की अन्धी सुरंगों मे भटक कर लौट आता है। यहीं इसी घर में, जहाँ भविष्य की दिशा बताने वाला सूरज कभी चढ़ता ही नहीं। काल-कोठरी शायद इससे भी बदतर होती होगी। अँधेरी, छोटी सी जगह, कोई बात करने वाला नहीं, भरपेट खाना भी शायद नहीं मिलता होगा और दरवाजे पर ताला- पहरा। बापू ऐसी ही किसी जगह पर साँसें लेता होगा जैसे मैं और माँ इस छोटी-सी कोठरी में अबोले साँसें लेती हैं। बापू भी शायद याद करता होगा, माँ को, मुझे। जैसे माँ करती है, साँस-साँस में, बिन बोले, बिन कहे। ज़िन्दगी इस घर में दिन, हफ़्तों, महीनों और सालों के हिसाब से नहीं बीतती। साँसों के हिसाब से बीतती है। यह साँस, अगली साँस, फिर एक और साँस। अटकी हुई साँसें । चलती हैं पर रुक कर, पीछे मुड़-मुड़ कर देखती हुईं। पीछे छूटा वक्त शायद आकर हाथ पकड़ ले और साँसें फिर सम पर आ जाएँ।  ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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