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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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२४. १२. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
ओमप्रकाश तिवारी, चाँद शेरी, कुँअर रवीन्द्र, नरेन्द्र व्यास और ललित मोहन जोशी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- पनीर और सब्जियों की शृंखला रोककर क्रिसमस और नए साल के अवसर पर शुचि इस अंक में प्रस्तुत कर रही है- ब्लैक फारेस्ट केक

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल के शिशु के साथ- नए साल का उत्सव

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- सर्कस

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला- २५ की रचनाओँ का प्रकाशन निरंतर जारी है। रचनाएँ  २५ दिसंबर तक भेजी जा सकती हैं।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से २४ दिसंबर २००४ को  प्रकाशित उषा राजे सक्सेना की कहानी— "रुखसाना"।

वर्ग पहेली-११३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी- सांता नहीं चाहिये

खत्म होते साल के आखिरी बचे-खुचे दिन। क्रिसमस और नये साल के आगमन के इन दिनों में बाजारों में बहुत रौनक होती है। बाजार, जो सबको लूट लेना चाहता है, खाली कर देना चाहता है। कॅनाट प्लेस का ‘इनर सर्कल’ रोशनियों से जगमगा रहा है। वह ‘टी जी आई फ्राइडे’ के सामने की रेलिंग पर बैठी थी और उदास थी। लेकिन जब वह मैट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर इनर सर्कल में आयी थी तो उदास नहीं थी बल्कि वह तो बहुत खुश थी। वह तो आज इस शाम को यादगार और लम्बी ठण्डी रात को खूबसूरत बनाकर बिताने वाली थी। टी जी आई एफ तक पहुँचते-पहुँचते उसका फोन आ गया था। उसने कहा था कि आज वह उसके साथ नहीं जा पायेगा।
‘क्यों?’, उसने हैरानी से पूछा था।
‘डियर, आज तुम मेरा ‘सैकेण्ड ऑप्शन’ थी, फर्स्ट मेरे साथ है। आज तुम फ्री हो, कुछ भी करने के लिए, वो भी जो मेरे साथ करती।’, उसकी शरारत भरी आवाज, ‘डोन्ट वरी, अभी तो न्यू ईयर भी है।’ वह हमेशा दो ऑप्शन्स लेकर चलता था। आगे-
*

शंकर पुणतांबेकर की लघुकथा
आम आदमी
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मथुरा कलौनी का नाटक
लंगड़
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मधु से इतिहास के अंतर्गत
भास्कराचार्य द्वितीय
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पुनर्पाठ में- गोविंद मिश्र का यात्रा विवरण
उजाले की चलती दौड़ती लकीर

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पिछले-सप्ताह-


शिल्पा अग्रवाल का व्यंग्य
तेनालीराम से साक्षात्कार
*

डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ’यायावर‘ का रचना प्रसंग
समकालीन नवगीत में नवीन छन्

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-दिनकर कुमार से रंगमंच में
भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा): जन्म और विकास
*

पुनर्पाठ में- प्रभात कुमार से जानकारी
पर्यावरण प्रदूषण एवं आकस्मिक संकट
*

समकालीन कहानियों में भारत से
मधुलता अरोरा की कहानी- फोन का बिल

शानू को आज तक समझ में नहीं आया कि फोन का बिल देखकर कमल की पेशानी पर बल क्यों पड़ जाते हैं? सुबह-शाम कुछ नहीं देखते। शानू के मूड की परवाह नहीं। उन्हें बस अपनी बात कहने से मतलब है। शानू का मूड खराब होता है तो होता रहे। आज भी तो सुबह की ही बात है। शानू चाय ही बना रही थी कि कमल ने टेलीफोन का बिल शानू को दिखाते हुए पूछा, ‘शानू! यह सब क्या है?’शानू ने बालों में क्लिप लगाते हुए कहा, ‘शायद टेलीफोन का बिल है। क्या हुआ?’ कमल ने झुँझलाते हुए कहा, ‘यह तो मुझे पता है और दिख भी रहा है, पर कितने हज़ार रुपयों का है, सुनोगी तो दिन में तारे नज़र आने लगेंगे।‘ शानू ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा, ‘वाह! कमल, कितना अजूबा होगा न कि तारे तो रात को दिखाई देते हैं, दिन में दिखाई देंगे तो अपन तो टिकट लगा देंगे अपने घर में दिन में तारे दिखाने के।‘ आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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