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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
शंकर पुणतांबेकर की लघुकथा- आम आदमी


नाव चली जा रही थी।

मझधार में नाविक ने कहा,
"नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।"

अब कम हो जाए तो कौन कम हो जाए? कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे, जो जानते थे उनके लिए भी नाव से कूद जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग थे-डाक्टर, अफसर, वकील, व्यापारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता के अलावा आम आदमी भी। डाक्टर, वकील, व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं।

उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला,
"मैं जब डूबने को हो जाता हूँ तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूँ? "

जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा,

"आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे।"

नेता ने कहा,
"नहीं-नहीं ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे। मैं भाषण देता हूँ। तुम लोग भी उसके साथ सुनो।"

नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊँचा कर कहा,
"हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे"….!

सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा।

२४ दिसंबर २०१२

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