इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
अमिताभ त्रिपाठी, सुबोध
श्रीवास्तव,
अश्विन गाँधी,
सत्यवान वर्मा
'सौरभ' और वसु मालवीय की रचनाएँ। |
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साहित्य व संस्कृति में-
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1
समकालीन कहानियों में भारत से
पंकज सुबीर की कहानी-
महुआ
घटवारिन
''सर रेणु जी
ने महुआ घटवारिन की पूरी कहानी नहीं लिखी, उसका अंत क्या हुआ
ये पता नहीं चलता'' कुसुम ने प्रोफेसर आनंद कांत शर्मा की ओर
देखते हुए पूछा।
''पूरी तो है, मेरे विचार में तो कहानी पूरी है, हाँ ज्यादा
विस्तृत इसलिए नहीं लिखा है, क्योंकि मूल कथा तो हीरामन और
उसकी तीन क़समों की है, महुआ घटवारिन की कहानी तो लोक कथा के
रूप में उसमें प्रवेश करती है।'' प्रोफेसर आनंद ने अपना चश्मा
ठीक करते हुए कहा।
''नहीं सर मेरे विचार में महुआ घटवारिन की कहानी में और भी कुछ
हुआ होगा, इतनी छोटी सी कहानी भला लोक गाथा कैसे बन सकती है।''
कुसुम ने दृढ़ता पूर्वक कहा। कुसुम प्रोफेसर आनंद कांत शर्मा के
मार्गदर्शन में फणीश्वर नाथ रेणु पर शोध कार्य कर रही है। उसने
हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है, तथा
संयोगवश प्रोफेसर आनंद कांत शर्मा ने ही कालेज में भी उसे
हिन्दी साहित्य पढ़ाया है, इसलिए वह काफी खुलकर अपने प्रश्न कर
लेती है।
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*
स्नेह मधुर का व्यंग्य
मूँछ, नाक
और मनोबल
*
प्रभात रंजन का आलेख-
गोदान के प्रकाशन के ७५ साल
*
डॉ श्याम सुन्दर दीप्ति का दृष्टिकोण
पिता को
वापस आना होगा
*
पर्यटक के साथ यात्रा में
नयनाभिराम नेपाल |
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पिछले
सप्ताह- |
1
अश्विन गाँधी के साथ
दो पल में- साहूकार
*
रघु ठाकुर का आलेख-
भारत में फैलता इंडिया
*
गुरूदयाल प्रदीप की विज्ञानवार्ता
नैनो टेक्नालाजी या
जादुई चिराग
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
*
समकालीन कहानियों में भारत से
ज्योतिष जोशी की कहानी-
कितने
अकेले
आधी रात की
गहन स्तब्धता में तेज़ बौछार के साथ वर्षा और बिजली की ज़ोरदार
गरज। खिड़की से रह-रह कर आते भीगी हवा के झोंके से तपते जिस्म
को थोड़ी सी राहत मिल जाती थी। पर मन किसी अनजान कोने में टिका
बार बार विचलित हो जाता था। इतनी देर रात गए आँखों में नींद
नहीं और रह-रह कर खाँसी की सुरसुरी सीने के बल को तोड़े जा रही
थी। उसने कई बार पदमा को आवाज़ दी पर वह अनसुना किए सोई रही। वह
हिम्मत करके उठा और जैसे तैसे एक गिलास पानी लेकर हलक में
उतारा। बार बार खाँसने खँखारने के बाद भी छाती में जमा बलगम
बाहर नहीं आता। नाक अब भी बन्द थी। सिर लगातार टनक रहा था और
शरीर ऐसा पस्त था कि ज़ोर न लगे तो दो कदम चलना भी मुश्किल। वह
आहिस्ता-आहिस्ता चहलकदमी कर रहा था कि अचानक स्टूल पर रखा गिलास
हाथ के झटके से फर्श पर लुढ़क
पड़ा...टनाक...।
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