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१८. ७. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
विष्णु सक्सेना, नमन दत्त, संतोष कुमार सिंह, श्यामल सुमन और  उदय प्रकाश की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- टिक्की, कवाब व पकौड़े- बारह चटपटे और स्वादिष्ट व्यंजनों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है- साबूदाना टिक्की

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का २९वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- घमौरियों के लिये मुल्तानी मिट्टी।

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १५ जुलाई से ३१ जुलाई २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- विन्डोज़ विस्टा तथा विन्डोज़ ७ में किसी खुली विन्डो को माऊस से स्क्रीन के बाएँ या दाएँ किनारे पर ले जाने पर वह...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१७ का विषय है- 'शहर का एकांत'। रचनाएँ आनी शुरू हो गई हैं, भेजने की अंतिम तिथि है २० जुलाई।

वर्ग पहेली-०३८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- छुट्टियों के बावजूद इस बार चौपाल में रौनक रही। उपस्थित सदस्यों ने मिलकर मौलियर के नाटक बिच्छू का पाठ किया।... आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
सूर्यबाला की कहानी- एक स्त्री के कारनामे

मैं औसत कद-काठी की लगभग ख़ूबसूरत एक औरत हूँ बल्कि महिला कहना ज़्यादा ठीक होगा। सुशिक्षित, शिष्ट और बुद्धिमती बल्कि बौद्धिक कहना ज़्यादा ठीक होगा। शादी भी हो चुकी है और एक अदद, लगभग गौरवर्ण, सुदर्शन, स्वस्थ, पूरे पाँच फुट ग्यारह इंच की लंबाई वाले मृदुभाषी, मितभाषी पति की पत्नी हूँ। बच्चे? हैं न। बेटी भी, बेटे भी। सौभाग्य से समय से और सुविधा से पैदा हुए; भली-भाँति पल-पुस कर बड़े होने वाले। आज्ञाकारी और कुशाग्रबुद्धि के साथ-साथ समय से होमवर्क करने वाले। सम्पन्नता और सुविधाएँ इतनी तो हंभ कि एक पति, दो कावालियों और तीन बच्चों वाला यह कारवाँ कदम-कदम बढ़ाते हुए लगभग ट्यूशन, टर्मिनल सब कुछ बहुत सुभीते और सलीके से। पूरी ज़िन्दगी ही। जितने पैसे माँगती हूँ पति दे देते हैं। जहाँ जाना चाहती हूँ पति जाने देते हैं, कभी रोकते टोकते नहीं। पूछते-पाछते भी नहीं। पूरी कहानी पढ़ें...
*

मनोहर पुरी का व्यंग्य
भ्रष्टाचार हटाने की जरूरत क्या है

*

अर्बुदा ओहरी से जानें-
पता स्वास्थ्य का पत्ता गोभी

*

भारतेन्दु मिश्र का यात्रा संस्मरण
लौट के बुद्धू घर को आए
*

पुनर्पाठ में सेवाराम त्रिपाठी का आलेख
हिंदी गजल के नये पड़ाव

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पिछले सप्ताह-

1
आकुल का प्रेरक प्रसंग
कोई अन्याय नहीं किया

*

उषा राजे सक्सेना का आलेख
ब्रिटेन की हिंदी कहानी के तीस वर्

*

पवन कुमार की दृष्टि में
पंकज सुबीर का उपन्यास- ये वो सहर तो नहीं
*

दीपिका जोशी का आलेख
हरिशयनी एकादशी

*

समकालीन कहानियों में मलेशिया से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी- फिर वही सवाल

लान की घास के ऊपर पत्तियों का कालीन सा बिछ गया है। यह पतझड़ का मौसम.... माली परेशान हो जाता है। वह सूखी पत्तियाँ झाड़ रहा है... क्यारियों में से कूड़ा उठा कर टोकरे में जमा कर रहा है... बेचारा! कल तक यह कूड़ा ऐसे ही, इतनी ही मात्रा में फिर जमा हो जाएगा। रंजन इस लान का पूरा सदुपयोग करते रहे हैं। आफिस से आते ही कपड़े बदल एक हाथ में चाय का मग और दूसरे हाथ में ट्यूब लेकर फूल-पत्ती घास को देर तक छिड़कते रहते... यों उन्हें पौधों को सींचना और अपने आप को भिगोना बेहद अच्छा लगता...। हर दिन चेहरे पर शिशु जैसा उल्लास आ जाता... कहते ‘‘हम लोग कितने अभागे थे कि हम दोनों का ही बचपन ऊपर के बंद घर में बीत गया... बेचारे हम... है न मीनाक्षी? नीचे के घर का कुछ मज़ा ही और है।’’ मैं हँस देती... कुछ कहती नहीं। दो तरफ के बड़े-बड़े लान... एक तरफ के ड्राइव वे के बीच बनी पापा की पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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