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                  सप्ताह 
                  
                  का 
                  
                  विचार- बच्चों को 
					पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, 
					क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। - स्वामी रामसुखदास  |  |  
                
                  |     
                   अनुभूति 
					में- 
                  योगेन्द्र कुमार वर्मा "व्योम", प्राण शर्मा, नंदलाल भारती, अरुण 
					कुमार प्रसाद और डॉ संतोष कुमार पांडे की
					रचनाएँ। |          
                
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                  सामयिकी में- 
					क्या एड्स धनी देशों द्वारा गरीब देशों के शोषण का हथकंडा 
					मात्र है? डा. मनोहर भण्डारी का विचारोत्तेजक आलेख-
					एड्स पर संदेह |  
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                  रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- 
					कच्चे दूध में रूई का फाहा भिगोकर चेहरा साफ़ करने से कील 
					मुहाँसे और झाँई दूर होकर त्वचा स्वस्थ बनती है। |  
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                  पुनर्पाठ में- १ जून २००१ 
                  को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित टीम अभिव्यक्ति का आलेख-
                   सितंबर माह के पर्व। |  
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				क्या आप जानते हैं? कि जैसलमेर विश्व का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है 
				जिसमें नगर की लगभग एक चौथाई आबादी ने अपना घर बना लिया है। |  
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              शुक्रवार चौपाल- चौपाल 
				में इस बार भरत याज्ञनिक के नाटक महाप्रयाण का पाठ हुआ। प्रकाश 
				सोनी छु्ट्टी मनाकर दो सप्ताह के बाद...
				
              आगे पढ़ें... |  
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					नवगीत की पाठशाला में- 
                  कार्यशाला-१० के गीतों का प्रकाशित होना २ सितंबर से प्रारंभ 
					हो चुका है। गीत भेजने की अंतिम तिथि अब १० सितंबर है। |  
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                    हास परिहास
 १
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                   १ सप्ताह का कार्टून
 कीर्तीश की कूची से
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                    इस सप्ताहसमकालीन कहानियों में
                    भारत 
                    से
 उदय प्रकाश की कहानी
					अरेबा 
					परेबा
 
					 सभी के शरीर में मस्से कहीं 
					न कहीं होते ही हैं। उनकी संख्या ज़्यादा नहीं होती। हर कोई 
					अपने शरीर में उनकी जगह के बारे में जानता है। उनकी संख्या का 
					भी कुछ-कुछ अनुमान उसे होता है। लेकिन हमारे गाँव में सेमलिया 
					की पूरी देह में मस्से ही मस्से थे। इतने कि उसे खुद अपनी देह 
					में उनकी जगह और उनकी संख्या के बारे में अंदाज़ा नहीं होगा।
					मस्से सबसे ज़्यादा उसके चेहरे पर थे। 
					मस्से भी बड़े-बड़े। गोल, चमकीले। चने की दाल या भुट्टे के 
					दानों की तरह चेहरे पर छितराये हुए। उनमें से कोई-कोई तो काफी 
					बड़ा भी था। जैसे चेहरे पर त्वचा का कोई बुलबुला बन गया हो। 
					कुंदरू के आकार का। सेमलिया का रंग काला था। यह तब की बात है, 
					जब तक बिजली हमारे गाँव में नहीं आयी थी। रात में लालटेन, लैंप 
					और दिये जला करते थे। सँझबाती हुआ करती थी। बुआ शाम होते ही 
					पहला दिया जला कर, सारे घर में उसे फिराने के बाद, भगवान के 
					पास रख देती थीं।
					पूरी कहानी पढ़ें...*
 
                    दुर्गेश गुप्त राज का व्यंग्यमैं आदमी हूँ और आदमी 
					ही रहूँगा
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                    रचना प्रसंग में नासिरा शर्मा का आलेख- 
					हिंदी कहानी आज
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                    डॉ. देवव्रत जोशी की कलम सेगीतकार 
					मुक्तिबोध
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      दीपिका जोशी से जानेंगणेशोत्सव और गणेश के विविध 
		रूप
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      पिछले सप्ताहजन्माष्टमी के अवसर पर
 
                    डॉ. नरेन्द्र कोहली का दृष्टिकोणमाखनचोरी
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                    वीरनारायण शर्मा का आलेखदो भूली बिसरी कृष्णभक्त कवयित्रियाँ
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                    सिद्धेश्वर सिंह का संस्मरणस्मृतियों का राग मद्धम
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      समाचारों मेंदेश-विदेश से  
      साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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                    डॉ. सुधा पांडे की पुराण कथा- 
					नंदनवन का पारिजात
 
                    
					 “हे 
					सर्वात्मन, भयानक नरकासुर ने देवताओं, सिद्धों, और असुरों सहित 
					राजाओं की कन्याओं को भी अपने अंतःपुर में बंद कर दिया है... 
					वरुण का जल वर्षा करने वाला छत्र मणिपर्व छीन लिया है और 
					मंदराचल के एक प्रदेश पर भी अपना अधिकार जमा लिया है।“ त्रस्त 
					देवराज ने अचानक द्वारका आकर श्रीकृष्ण से निवेदन किया, “इतना 
					ही नहीं उसने मेरी माँ अदिति के अमृतवर्षी दोनो दिव्य कुंडल भी 
					छीन लिये हैं और अब ऐरावत को छीनने की आकांक्षा लिये मेरी ओर 
					बढ़ा चला आ रहा है.. अनर्थ हो जाएगा द्वारकाधीश...आप ही मुक्ति 
					दिलाइये इससे।“ पृथ्वीपुत्र 
					प्राग्ज्योतिरीश्वर नरकासुर से संतप्त हो इंद्र विचलित हो उठे 
					थे और द्वारका दौड़े गए थे। यह वह समय था जब पृथ्वी के वीर 
					राजा ...पूरी कहानी पढ़ें। |