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15. 8. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर-
रंगमंच में
योगेश त्रिपाठी का नाटक मन में है विश्वास
तनिक बजाइये न! (डुगडुगीवाला बजाता है।) देवियों और सज्जनों! कौन कहता है कि सरकार सो रही है? आप लोग आज खुद देखेंगे कि सरकार हमारी कितनी फ़िक्र कर रही है। 'हमारे लिए' वो नित नई योजना ले कर आ रही है। तो हमारा भी तो फ़र्ज़ बनता है कि हम सरकार के लिए भी कुछ करें। सरकार हमसे कुछ नहीं चाहती। वह हमसे सिर्फ़ वोट चाहती है। ये डुगडुगी का मतलब तो समझते हो न?...नहीं?  डुगडुगी का मतलब है, सरकारी फ़रमान और सरकारी फ़रमान का क्या है, कि ज़रूरी नहीं वह सुनाई दे। सरकारी फ़रमान का शोर सुनाई देना ज़रूरी है बस! फ़रमान में क्या कहा गया हर एक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पता लगाकर जान ले।

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हास्य-व्यंग्य में
मनोहर पुरी पूछ रहे हैं क्यों करें इंडिया को भारत
कुछ लोग जीते जी महानता को प्राप्त हो जाते हैं। कुछ लोगों को उसके लिए मरना पड़ता है। मर जाने पर प्रत्येक का महान हो जाना स्वाभाविक होता है। भले ही महानता की सीमा श्मशान घाट और शोक सभा की समय सीमा तक ही रह पाती हो। कुछ की स्वाभाविक मौत तक समाचार बन जाती है भले ही वह चार पंक्तियों वाले संक्षिप्त समाचार तक ही सीमित हो जिसमें देश में उनके नहीं रहने व उम्र का उल्लेख होता है और दो में उनके नामों का ज़िक्र जो उनकी मौत पर दुख व्यक्त करने के लिए ज़िंदा बने हुए हैं व खुश हैं क्योंकि उनका नाम दुख व्यक्त करने वालों की सूची में छप गया है। अख़बार वालों ने किसी भी कारण सही नाम तो छापा।

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समकालीन कहानियों में
भारत से तरुण भटनागर की कहानी हैलियोफ़ोबिक का अंतिम भाग
कैंप भयंकर और निर्दयी लोगों की बस्ती था। ग़रीबी और भुखमरी के कारण पागल और लुटेरे बने निर्मम लोग। जहाँ किसी का मरना खुशी लाता था।लोग हत्या और लूट के लिए हमेशा तैयार रहते। इस कैंप को देखकर यकीन करना मुश्किल था, कि ये सब लोग अच्छे घरों से थे। शांत और अच्छे घरों वाले लोग, जो छोटी-छोटी इच्छाएँ पालते हैं और यकीन करते हैं कि वे और उनके माँ-बाप, भाई-बहन...कभी मरेंगे नहीं।पर यहाँ उनकी औरतों और बच्चों को कुत्तों की भाँति लाठियों से पीटकर मार डाला जाता था और उन्हें इससे ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता था। कुछ लोग आत्महत्या कर लेते, ज़्यादातर नये लोग...पर अधिकतर ऐसा नहीं कर पाते थे।

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संस्मरण में डॉ चंद्रिका प्रसाद शर्मा का यात्रा विवरण
कालापानी की सेल्युलर जेल
चारों ओर से समुद्र से घिरा पोर्टब्लेयर आज विश्व के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मैं कालापानी की सेल्यूलर जेल के मुख्य द्वार पर स्तब्ध खड़ा हूँ। सहसा झुक कर धरती से एक चुटकी धूल उठाकर माथे पर लगा लेता हूँ। अरे, इन रज कणों में तो बड़ी गरमी है, आग- जैसी गरमी। ओ...यहाँ सैंकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तनहाई की सज़ा काटनी पड़ी थी। फ़िरंगियों के कोड़ों से उनके शरीर से लहू की बूँदें टपका करती थीं। अनेक वीरों को फाँसी के तख़्ते पर लटकाया गया था। यहाँ की धूल में भारत माता के स्वतंत्रता प्रेमी शूर पुत्रों के रक्त की उष्मा भरी है। यह सेल्यूलर जेल भारतीयों की वीरता और अंग्रेज़ों की क्रूरता की निशानी है।

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संस्कृति में
सुनीता सिंह गर्ग प्रस्तुत कर रही हैं झंडा ऊँचा रहे हमारा
हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया जाता है। देश के प्रथम नागरिक से लेकर आम नागरिक तक इसे सलामी देता है। 21 तोपों की सलामी से सेना इसका सम्मान करती है। किसी भी देश का झंडा उस देश की पहचान होता है। तिरंगा हम भारतीयों की पहचान है। राष्ट्रीय झंडे ने पहली बार आज़ादी की घोषणा के कुछ ही दिन पहले 22 जुलाई 1947 को पहली बार अपना वो रंग रूप पाया जो आज तक कायम है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना है इसलिए हम इसे तिरंगा भी कहते हैं।

 

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश-प्रेम की कविताओं से भरपूर नया संकलन मेरा भारत

अभिव्यक्ति सात साल की
अनहद खुशी है कि
आज अभिव्यक्ति सात वर्ष पूरे कर
आठवें में प्रवेश कर रही है।
आशा है, उम्मीद है
ये कारवाँ हँसता हुआ,
खुशी के गीत गाता हुआ
यों ही बढ़ता रहे।
जन्मदिन मुबारक,
अभिव्यक्ति!!
15 अगस्त 2007

पिछले सप्ताह
9 अगस्त 2007 के अंक में
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समकालीन कहानियों में
भारत से तरुण भटनागर की कहानी
 हैलियोफ़ोबिक

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हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन बता रहे हैं
ख़ास बनने का नुस्खा

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संस्कृति में
कटरपंच दंपत्ति की लेखनी से
ब्रज में सावन के हिंडोलों की छटा

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दृष्टिकोण में महेशचंद्र द्विवेदी के विचार
ग्लॉस्गो धमाके के बाद अप्रवासी
भारतीयों की स्थिति

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आज सिरहाने मधुलता अरोरा प्रस्तुत कर रही हैं तेजेंद्र शर्मा का कविता संग्रह
ये घर तुम्हारा है

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अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है। --मुक्ता

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