कला दीर्घा में-

गणेश
विविध कलाकारों की तूलिका से


उपहार में-

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
जावा आलेख के साथ



पद्य में-

गौरव ग्राम में
गिरिजा कुमार माथुर

नई हवा में
सुनीतिचंद्र मिश्र

समकालीन कविताओं में
शंभुनाथ सिंह



साहित्यिक निबंध में-

पूर्णिमा वर्मन का आलेख
आधुनिक हिंदी का इतिहास

  गद्य में-

समकालीन कहानियों में
यू के से उषा राजे की कहानी- शुकराना

अचानक याद आया सवा आठ पर मुझे फियोना से इंश्योरेंस के सिलसिले में मिलना है। अब चाहे तन आलस करे या मन। उठना ही होगा। किसी तरह बदन को पैरों पर घसीटते हुए शावर के नीचे ले आई। शावर के तीखे धार वाले गुनगुने पानी ने बदन को गुदगुदाया। सारी खुमारी क्षण भर में छू मंतर हो गयी। फिर तो बीस मिनट में मैं अपने पूरे फार्म में आ गई।


सहित्य संगम में
नार्वे से हरचरण चावला की
उर्दू कहानी- ढाई अक्खर

जर्मनी में सरदार टहलसिंह अपनी सिखी के तमाम कक्के उतार कर भी सरदार रह गया था वह दरअसल ढाई अक्खर जर्मन भाषा सीख कर हाइम नंबर छह के चीफ का चहेता बन गया था और उसकी ओर से निश्चित अपने कमरे वालों का सरदार हमारे कमरे के पाँचों लंबे धड़ेगे पंजाबी, जो अपने बापों की जमीने औने पौने बेच कर जर्मनी पहुँचे थे जर्मन तो क्या अंग्रेजी के भी दो शब्द ठीक तरह से नहीं बोल सकते थे।

 

दो पल में-

विदाई फिर एक बार
अश्विन गांधी की कलम से

आज मैं फिर से एक बार मुम्बई छोड़ रहा हूँ। इन दो महिनों में खासा तगड़ा हो गया। सब पतलूनें पेट को तकलीफ दे रही हैं। मैं यहाँ तंदुरूस्त लोगों को देख कर मज़ाक करता था- "वैसे तो हिंदुस्तान में पुरूष और स्त्री अभी भी समान नहीं पर इस तंदुरूस्ती के मामले में मैंने समानता देखी।" बहुत से लोगों को बांके चलते हुए देखा। शायद स्थिर रहने के लिये, आगे के सामान का भार इन्सान को थोड़ा पीछे झुका देता होगा। देखो, आज मेरी भी ऐसी ही हालत हैं।

 


अपनी बात

नमस्कार,

अभिव्यक्ति के पहले अंक में आपका स्वागत है। भारत से बाहर आते ही अपनी भाषा और साहित्य से बिछोह का जो दर्द होता है, अभिव्यक्ति उसे दूर करने में सहायक हो ऐसा हमारा प्रयत्न है।

अपनी भाषा में कुछ कहने-सुनने, लिखने-पढ़ने व मिल-बाँटने के लिये अभिव्यक्ति में आपका अभिनंदन है और आपके सुझावों की हमें प्रतीक्षा..

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