सफाई एक विशद विषय है। यह
बहुअर्थी, बहुआयामी एवं बहुपरिणामी है। इस विषय में हमारे
देशवासी किसी भी अन्य देशवाले से कड़ी टक्कर ले सकते हैं,
क्योंकि हम बड़े सफाई पसंद हैं- ऐसा न होता तो भला राजकपूर
हमारे लिये क्यों कहते "होठों पर सचाई रहती है, जहाँ दिल
में सफाई रहती है।" यह बात अलग है कि हम विभिन्न
परिस्थितियों एवं अवसरों पर सफाई के विभिन्न अर्थ लगाते
हैं। यहाँ जमादार कूड़ा साफ करता है, योगी तन साफ करता है,
तो नेता माल साफ करता है। यदि घर गंदा हो तो झाड़ू से सफाई
करते हैं, पेट गंदा हो तो चूरन से और मन गंदा हो तो गुरु
के प्रवचन से। मेरे प्राथमिक पाठशाला के गुरु भी हम बच्चों
को प्रतिदिन साफ रहने का प्रवचन देते थे और हममें से किसी
के नाखून बड़े होने पर मेज पर हाथ उल्टे रखवाकर स्केल से
उँगलियों पर मारते थे, परंतु कक्षा में पढ़ाते समय कोने में
पान की पीक थूक देने में उन्हें कभी संकोच नहीं होता था।
मेरे पड़ोस की चाची बड़ी सफाई पसंद थीं और सुबह बिना नहाये
पानी का घूँट भी नहीं पीती थीं। उनका बेटा पलंग से उठते ही
बिना मुँह धोये रोटी माँगने लगता था और चाची उसी अवस्था
में उसे रात की रखी रोटी खिला देती थीं. एक दिन मेरे
द्वारा टोक देने और दाँत-मुँह धुलाकर रोटी खिलाने को कहने
पर चाची बिगड़ पड़ी थीं, ‘महेस! तुम अपईं अंग्रेजी अपयें
ढिंगाँ धरे रहौ। हमाए लला को ऐसेयी खान देव।’ (महेश! तुम
अपनी अंगरेज़ी (आदतें) अपने पास ही रखे रहो। मेरे लड़के को
इसी तरह खाने दो)
रेल की पटरी पर बैठकर या उसके किनारे से जाने वाले रास्ते
को घेरकर पेट की सफाई करने में जो आनंद है, उसका बखान तो
वही कर सकता है जिसे वह प्राप्त हुआ हो, परंतु मैं इतना
पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि पेट की स्वच्छता की
यह विधा रेल के यात्रियों एवं रेल पटरी के किनारे के
राहगीरों की सेहत के लिये कोई खास माकूल नहीं है।
मेरे पड़ोस में पांडे नामक सुनामधन्य एक भद्रजन रहते हैं।
बड़े सफाई पसंद हैं। मुझे नहीं मालूम कि वह प्रतिदिन नहाते
हैं या नहीं, परंतु अपनी कारों को और मकान के फर्श को
गर्मी-सर्दी लग जाने का खयाल किये बिना प्रतिदिन घंटों
अवश्य नहलाते हैं। इस प्रक्रिया में वह दिल खोल कर पानी की
नदी बहा देने में कभी कोताही नहीं करते। करें भी क्यों –
पानी का चार्ज कोई मीटर से तो होता नहीं है। उनकी इस
सफाई-पसंदगी से उनके सामने की सड़क टूट फूट गई है और उनके
घर के बाद पड़ने वाले घरों के नल में पानी रो-रोकर आता है।
सुना है कि वह लीडर रह चुके हैं, इसलिये मेरी कभी हिम्मत
ही नहीं हुई कि उनसे पूछ्ता कि क्या उनकी कारों को सुअरों
की तरह गंदगी में लोट लगाने का शौक है, जो गर्मी-सर्दी लग
जाने का खयाल किये बिना बिला-नागा उन्हें नहलाना आवश्यक हो
जाता है? यद्यपि सड़क बरबाद हो जाने से त्रस्त कुछ लोग उनकी
पीठ-पीछे खीझ अवश्य जताते हैं, परंतु उनकी भी कभी हिम्मत
नहीं हुई कि उन्हें कोई रोके-टोके। एक बार मेरे मुहल्ले की
समिति ने बिना किसी पदाधिकारी का नाम लिखे एक पर्चा छपवाया
था, जिसमें पानी की कमी और उसे बचाने की आवश्यकता के विषय
में सीख लिखकर उनके घर के लौन में चुपचाप डलवा दिया था।
थोड़ी देर में पांडे जी ने बाहर से घर आते हुए वह पर्चा
देखा था। उसे पढ़कर उसके लिखने वाले के प्रति तुच्छता का
भाव अपने चेहरे पर लाकर उसे ऐसे तोड़-मरोड़कर कूड़ेदान में
फेंक दिया था, जैसे कह रहे हों कि दुबारा ऐसी बदतमीज़ी की
तो इसी तरह तोड़ मरोड़कर कूड़ेदान में फेंक देंगे।
मेरे दूसरे पड़ोसी प्रताप भाई हैं- सफाई के मसले में बड़े
प्रतापी व्यक्ति हैं। पड़ोसी द्वारा अपनी दीवाल पर पुताई
कराते वक्त यदि उनकी दीवाल पर छींटे भी पड़ जाएँ तो पुलिस
बुला लेने, नगर-निगम मेँ शिकायत कर देने और उस पर मुआवजे
का दावा ठोक देने मेँ ज़रा भी रू-रियायत नहीँ बरतते। यह बात
अलग है कि कूड़ा उठवाने के पैसे बचाने हेतु मुँह अँधेरे ही
अपना कूड़े का थैला बगल के खाली प्लाट में चुपचाप फेंक देते
हैं। मुझे भी अनेक बार उन्हें ऐसा करते हुए देखने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ है, पर भाई, मेरी शामत थोड़े ही आई है,
जो मैं उन्हें टोकने की गुस्ताखी करूँ।
मोदी जी ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ग्रहण करते ही
स्वच्छ-भारत अभियान की घोषणा कर दी। अनेक विरोधी नेताओं को
इस घोषणा से बड़ा धक्का लगा, क्योंकि इसका विरोध सम्भव नहीं
था। यद्यपि उन्होंने मन ही मन अपने को कोसा कि यह बात पहले
उनके दिमाग में क्यों नहीं आई, पर जनता को गुमराह करने के
लिये कहा कि इससे तो लोग समझेंगे कि हम आज तक साफ नहीं थे?
तब मोदी जी ने धोबीपाट (पहलवानी का एक दाँव) चलते हुए
उन्हें सफाई अभियान का झंडाबरदार घोषित कर दिया। इस पर उन
नेताओं को आशंका हुई कि मोदी जी चालाकी से उन्हें अपना
बम-जमादार बनाये दे रहे हैं। उन्होने साफ इंकार कर दिया,
परंतु विषय ऐसा था कि अपने को उसका विरोधी भी नहीं कह सकते
थे, अतः सभी विरोधी दल वालों में अपने-अपने ढंग से स्वयं
को दूसरों से अधिक स्वच्छताप्रिय सिद्ध करने की होड़ लग गई
है।
इस होड़ के फलस्वरूप सफाई अभियान राजनीति का एक नया आयाम बन
गया है और स्वच्छ-भारत की कल्पना साकार होने की दिशा में
अग्रसर है। |