ऐसी
चुप्पी, सन्नाटा-वोटों के पड़ गये लाले। मेरे चुनाव क्षेत्र
में जाते ही जो रंग आता था, मेरा रूप सौन्दर्य, मेरी
फिल्मों की प्रशंसा का गीत, हर कोई गुनगुनाता था। मेरा वोट
इस क्षेत्र में सुरक्षित की श्रेणी में मुझे आश्वस्त करता
रहा। मेरा उत्साह बढ़ाया गया-आँखों के चुनाव चिह्न पर वोट
देंगे, निशान लगाने का हर कोई दावा करता रहा।
हे सखि फिल्मी अभिनय में, नाम कमा कमा कर, धन इकट्ठा करके
उसे फूँकने के लिए जब मुझे बार बार बढ़ावा दिया गया तो मैं
भी इस क्षेत्र में कूद पड़ी। थाली के बैंगन और बेपेंदी के
लोटों में, स्थान बना लेने की पुरानी आदत फिर सिर चढ़ी।
आँखों के चुनाव चिह्न पर जब चुनाव आयोग ने स्वीकृति दे दी
तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मेरी आँखें ही मेरी पहचान
हैं। अपने मतदाताओं को जा जाकर समझाना पड़ा।
घर में कुरूक्षेत्र में हर रोज़ नई लड़ाई मोल लेकर मैंने
लड़ने का अभ्यास किया। हर किसी को भाषण दे देकर, बहस कर कर
के स्वयं को चुनाव की इस रणभूमि के लिए तैयार किया।
सच कहूँ तो सीख! चुनाव के रणबाँकुरे अन्य योद्धाओं से कम
नहीं बल्कि उनका मोर्चा अधिक जोखिम से भरा है।
कब कौन कहाँ से वार कर दे, कौन-कौन सा विस्फोटक किस किस
में भरा है। यह अनुमान लगाना भी कठिन है। हाय सखि मेरा मन
उदास है-खीज है।
मैंने तो आँखें दिखा दिखा कर आँखों का महत्व समझाया। हाथ
के महत्व से परिचित पीढ़ी को मज़ेदार ढंग से बरगलाने के लिए
कवि, लेखक, नेता, अभिनेता, सबको बुलाया। रूपया पानी की तरह
बहाते हुए स्नेह प्यार की गागर छलकाई। पर्दा प्रथा, जौहर
प्रथा, सभी प्रथाएँ मिटाने की दी दुहाई।
‘साधो ऐसो सिर्फ निशाना, ऐसा तीर चलावो प्राणी, आँख ही बने
निशाना। कजरारे--कजरारे गाने वालों की टोलियाँ आईं, काजल
की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय, कालिख लगेगी ही, विपक्ष
ने जब यह बोली लगाई तो मैंने भरी भीड़ में, काजल के धब्बे
हटाने वालों के डिमान्स्टेशन दिलवाये, आँखों के मुफ्त
आपरेशन के बोर्ड टांगे, शिविर लगवाये।
कवियों की टोली ने ‘मतदान’ महाकल्याण का शंख फूँका। मुझे
भी ‘मत’ का महत्व समझा समझा कर भाषण देने का नया तरीका
सूझा। ‘हाँ’ तो भाइयों...वगैरा वगैरा। ऐरा गैरा नत्थूखैरा
हमने सबके उद्धार का बीड़ा उठाया है। और आपके दिमाग से
विपक्ष का कीड़ा हटाया है। आप सब बस मिल कर कहें। हम एकमत
हैं, हममें एकमत रहे। भूरेलाल कवि ने भी कविता से यही
मूलमन्त्र समझाया है, एकमत रहें। एकमत रहें, यही बार बार
दोहराया है। वोटर का जन्म बहुत कठिनाई से होता है जहाँ
बच्चा केवल नौ मास में पैदा हो जाता है वह वोटर पैदा करने
में अट्ठारह वर्ष लग जाते हैं, अट्ठारह वर्ष बाद ही आप
बिना पिये ही मतवाले बन जाते हैं। हम हिन्दी को भी
सुधारेंगे और जो आप आंशिक बने यहाँ-वहाँ डोलते थे उसकी
बिन्दी हटाकर आशिक बना देंगे। देश में नैनो से नैन तक की
आपकी पदयात्रा बदलेगी, आश्वासनों के पुलिन्दें वादों की
झड़ी की प्रत्येक शर्त पूरी होगी। आप रोटी, कपड़ा, खाना
चाहते हैं आपको वही खाने को मिलेगा।
मकानों की ‘जगह’-योजनाएँ ही योजनाएँ। हर साल दो जून की
रोटी हम खिलायेंगे और कहते, ख्यालों की इस नगरी से वह कू
कर अपनी स्थिति में आ पहुँची। कविवर ने तब यों ली
चुटकी-‘महोदया हिन्दी ने ही शायद किया हो सारा गड़बड़
घोटाला, क्योंकि गलत जगह अर्द्धविराम या विराम के चक्कर ने
शायद आपकी लुटिया को डुबो डाला। हम तो गली गली में दोहराते
रहे ‘आवश्यक है हमारा मिलजुल कर रहना
एकमत होना।
हाँ तो भाइयों-एक,
मत होना। एक मत होना...
हमने तो आपको पहले ही जता दिया था-इसी क्षेत्र में आपके सब
मत वाले हैं-पर साथ में यह भी तो उक्ति बार बार कही....
‘मतवाले’ सभी हैं पर ‘मत’ वाला, एक नहीं, यह जो तथाकथित
प्रशंसा के पुल बाँधने वाले सिविल इंजीनियरों ने.....पुल
जोड़ा था, उसमें ‘जी’ ‘जी’यानी ‘टू’ जी का स्कैम वाला ‘जी’
‘जी’ था और इन पुलों में भी भानुमति के कुनबे, का कहीं की
ईंट-कहीं का रोड़ा था।
आप जीती हैं इसके लिए अभी प्राणवायु का ही प्रयोग करें
चुनाव की घोषणा भी ‘आप' जीती हैं की उद्घोषणा है।
जीने की प्रक्रिया सर्वदा सामान्य रखें क्योंकि जीत हार
में भेद नहीं। इसीलिए बस खेद नहीं। काम बनेंगे या
बिगड़ेंगे.....पर जीत के बाद भी तो -‘हार’ ही गले पड़ेंगे। |