हमने एक बात लक्ष्य की है कि
हिन्दी साहित्य में गर्मी का सौन्दर्य वर्णन काफ़ी कम किया गया है। किया भी गया है
तो हमारी निगाह से अभी तक नहीं गुजरा। हो सकता है कि सारा गर्मी सौंदर्य वर्णन
हमारी निगाह बचा के निकल गया हो। पहले ज़माने का पुरानी सोच का होगा न! पहले का
सौंदर्य शर्मीला होता था। निगाह नीची करके अदब से निकल गया होगा। आजकल की तरह
बिंदास सौंदर्य होता तो ऐसा भड़भड़ा के हल्ला मचाते हुये निकलता कि कान में ईअर प्लग
लगा कर देखना पड़ता।
हिन्दी प्रेमी होने के नाते हमारी भी आत्मा कभी-कभी छटपटाती है कि ग्रीष्म वर्णन जो
भी थोड़ा बहुत है वह पुराना धुराना ही है। नए बिम्ब, नई कल्पना और नई परिस्थितियों
को साहित्य में स्थान नहीं मिल रहा है। सच मानो तो साहित्य की घटती लोकप्रियता का
कारण ही यही है। साहित्य को आदमी के साथ जोड़ो फिर देखो लोग कैसे इसे पसंद करते
हैं। बहुत दिनों से यह हुड़क उठ रही है कि ग्रीष्म काल से संबंधित जो दृश्य हमारे
साहित्य में नहीं हैं उन्हें रचा जाए। जो कमी है उसे पूरा किया जाए। हम इस मुगालते
में नहीं है कि हम अकेले हैं इस तरह हुड़कने वाले। तमाम साथी हैं जो इस तरह की
तमन्ना लिये हैं। हुड़कते हैं और फ़ड़कते हुए साहित्य की तमाम कमियों को पूरा करने के
प्रयास में दण्ड पेल रहे हैं। अब यह अलग बात है कि दण्ड पेलने के बाद जो पसीना वे
निकालते हैं उसको कोई साहित्य मानने को ही नहीं तैयार है। इस संक्षिप्त लफ़्फ़ाजी भरी
भूमिका बांध लेने के बाद आइये गर्मी साहित्य सृजन रत हो जाया जाए । कुछ बिम्ब पेश
किये जा रहे हैं। आप देखें कि गर्मी के बारे में क्या कुछ कहा जा सकता है-
-
१. सूरज किसी गर्म मिजाज अफ़सर
की तरह दुनिया भर में दौरा कर रहा है। दुनिया भर के लोग उसको देखते ही कमजोर दिल
/कामचोर अधीनस्थों की तरह छिपकर अपनी जान बचा रहे हैं।
२. गर्मी के मौसम में सड़क पर तारकोल पिघल रहा है। लग रहा है सड़क के आँसू निकल रहे
हैं। बादलों के वियोग में वह काले आँसू रो रही है।
३. चाँद सूरज की चमक से ही चमकता है। लेकिन लोग उसकी तारीफ़ सूरज से ज्यादा करते
हैं। इससे साबित होता है कि लोग शान्त स्वभाव वाले व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते
हैं भले ही वह कमजोर हो और उधार की खाता हो। सूरज शायद इसी बात से भन्नाया रहता
है।
४. सूरज की निगाह बचाकर दो पेड़ों की छायाएँ एक-दूसरे से सटकर आनन्दानुभूति में
डूब गईं हैं। इनको कोई रोकने टोकने वाला वाला नहीं है। सबको पता है कि टोकते ही
ये भड़क जायेंगी- हमारी जिन्दगी में दखल देने वाले तुम कौन हो?
५. बादलों को इंद्र ने बरसने का आदेश बीते माह ही दे दिया है लेकिन वे हड़ताल पर
हैं और कह रहे हैं कि पहले हमें छ्ठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन और भत्ते दिये तब
हम पानी की खेप आगे ले जाएँगे।
६. एक बुजुर्ग बदली ने एक बिंदास बादल के साथ बरसने से इंकार कर दिया है। उसने
इंद्र के यहाँ अर्जी लगाई है कि यह मुआ बादल गरजता कम हँसता ज्यादा है। इससे
हमारा बरसने का मूड बिगड़ जाता है। जरा सा भी सीरियस नहीं रहता। आप तो जानते हैं
हँसने से मुझे एलर्जी है। मुझे कोई दूसरा जोड़ीदार बादल दिया जाए। बादल ने अपनी
सफ़ाई में कहा है- साहब मैं तो फेफड़े साफ़ करने की एक्सरसाइज कर रहा हूँ। अगर
हसूँगा नहीं तो साँस फँस जायेगी। टें बोल जाऊँगा। इन्द्र भगवान ने वैकल्पिक
व्यवस्था होने तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया है।
७. बादल बदली का पीछा छोड़कर एक कमसिन बादल के पीछे लग लिया है। लग रहा है इनके
यहाँ भी समलैंगिकता कानूनी हो गई है।
८. अँधेरी सीढ़ियों में कई मिनटों की मशक्कत के बाद नायक ने नायिका से कहानी आगे
बढ़ाने की मौन स्वीकृति-सी पाई है। वह प्रेमालाप का फ़ीता काटने ही वाला था कि नल
में पानी आने की आवाज सुनकर नायिका उसको झटककर पानी भरने चली गई।
९. पनघट पर हमारा पति कैसा हो विषय पर परिचर्चा चल रही है। एक सुमुखि कह रही है–
पानी की समस्या देख-सुनकर तो मन करता है कि ऐसा पति मिले जो जरा-जरा सी बात पर
रोने लगता हो। थोड़े-बहुत पानी का तो आसरा रहेगा। आखों का पानी देखकर ही जी जुड़ा
लेंगे।
१०. एक ही तराजू पर तुलकर अलग-अलग झोले में डाले जाते हुये खरबूजे और तराजू ने
विदा होते हुये कहा कौन जाने पानी का ऐसा अकाल पड़े कि हमारा अस्तित्व ही खतरे में
पड़ जाये और हम-तुम किताबों में ही दिखें केवल।
११. पति ने पत्नी को ई-मेल करते हुये अपना विरह दुख बता रहा है- गर्मी की
छुट्टियों में जब से तुम गई हो ऐसा लगता है कि नल से पानी चला गया है। रातें ऐसे
साँय-साँय करती हैं जैसे नल आने का झाँसा देते हुये साँय-साँय करता है। बादल
नेताओं की तरह मौका मुआयना करके चले गए हैं, पलट के नहीं देखते। अब तो वे बदलियों
के संग भी नहीं दिखाये देते। लगता है उनमें भी आपस में पटती नहीं या फिर उनके
यहाँ भी खर्चे को लेकर खटपट होने लगी है। यह भी हो सकता है कि खर्चे कम करने के
लिये बादल ने उसको मैके भेज दिया हो ठीक उसी प्रकार जैसे तुम छुट्टियों में अपने
मम्मी-पापा के पास चली गई हो। तुम्हारे वियोग में दिल खून के आँसू रोने की सोच
रहा था लेकिन फिर अपनी पिछली ब्लड रिपोर्ट को ध्यान में रखकर मैंने दिल को इस
अय्याशी के बारे में सोचने के लिये डाँट दिया। बहुत देर तक गुमसुम बना रहा
बेचारा। इस पर हमने उसे फिर कामचोरी के लिये डाँट दिया। इस पर वो बदमाश राजधानी
एक्सप्रेस की तरह दौड़ने लगा। हमने फिर उसे प्यार से समझाया कि पेट्रोल का दाम बड़
गया है भैया जरा कायदे से चलो। तबसे ठीक है। बदमाशों से भी प्यार से बात करने से
बात बन जाती है। तुम आटा जो गूँथकर गई थीं वह अभी तक गीला बना हुआ है। समझ में
नहीं आता कि उसमें आटा मिलाकर ठीक करूँ कि धूप में सुखाकर। जल्दी से अपनी मम्मी
से पूछकर बताओ!
३१ मई २०१० |