एक जमाने में एक मुल्क हुआ करता
था जिसकी सरहदें हिमालय की गगनचुंबी चोटी से लेकर हिन्द महासागर की अतल गहराई तक
फैली हुई थीं। यह आजाद देश था और लिहाजा यहाँ के नागरिकों को और उनसे अधिक
विदेशियों को, अपनी मर्जी के अनुसार कुछ भी करने, कुछ भी बोलने, कुछ भी देखने और
कुछ भी दिखाने की पूरी आजादी थी। इस देश में चोरों का ही जलवा था। चोर ही सरकार,
चोर ही मंत्रिपरिषद, चोर ही संसद, चोर ही बड़े-बड़े उद्योग और अरबों-खरोबों का
मुनाफा कमाने वाली कंपनियाँ, चोर ही स्कूल-कालेज, चोर अखबार और चोर ही टेलीविजन
चैनल चलाते थे। लोकतंत्र के चारों खंभे इन चोरों के कंधे पर ही टिके थे।
एक बार की बात है कि इस आजाद मुल्क में चोरों का आतंक इस कदर बढ़ गया कि आम लोग ही
नहीं खास लोग भी चोरों की कारगुजारियों से दुखी हो गए थे। ये चोर पूरी तरह से
बेलगाम हो गए। इन पर किसी का नियंत्रण नहीं रह गया - न राजा का, न मंत्री का, न
संसद का और न अदालत का। लोगों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं था। आखिरकार जनता के
चुने हुए कुछ प्रतिनिधियों ने देश की सर्वोच्च सभा मानी जाने वाली उस संसद में इस
मामले को उठाने का दुस्साहस किया जहाँ चोरों के पैसों और उनकी मेहरबानियों की बदौलत
चुने गए लोगों का ही बोलवाला था। जैसे हर चीज का अपवाद होता है यहाँ भी कुछ प्रतिनिध
अपवादस्वरूप थे।
इनमें से एक ने हिम्मत जुटा कर कहना शुरू किया - ''मैं महामहिम
अध्यक्ष महोदय के माध्यम से आदरणीय प्रधानमंत्री, माननीय मंत्रियों और जनप्रिय
सरकार का ध्यान चोरों की बढ़ रही कारगुजारी और उसके कारण जनता को हो रही परेशानियों
की तरफ दिलाना चाहता हूँ। ये चोर इतने बेखौफ हो गए हैं कि इन्हें सरकार, कानून और
पुलिस का कोई डर नहीं रहा। सरकार ने इन्हें जिन शर्तों और मानदंडों के आधार पर चोरी
करने के लाइसेंस दिए थे उनकी ये खुलेआम धज्जियाँ उडा रहे हैं। ये चोर अपने अपने
संगठनों के नियमों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। इन्होंने सरकार को आश्वासन दिया था
कि ये आत्म नियम मन के मानदंड से बनायेंगे लेकिन ये अपने ही मानदंडों का उल्लंघन कर रहे
हैं।
शोर-गुल और टोका-टोकी के बीच एक दूसरे प्रतिनिधि ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए
जोर-जोर से कहना शुरू किया, महोदय, यह बहुत गंभीर मुद्दा है। सरकार की ओर से चोरों
को चोरी करने के एवज में कई तरह की सुविधाएँ दी जाती है। यही नहीं चोरी से होने
वाली कमाई को आयकर से छूट प्रदान की गयी है। लेकिन चोरों ने अधिक कमाई के लिए चोरी
करने के बजाय दूसरे रास्तों को अपना लिया है जबकि लाइसेंस उन्हें चोरी करने के लिए
मिला है। इन चोरों ने अब टेलीविजन चैनल चलाना शुरू कर लिया है और सरकार ने टेलीविजन
चैनल चलाने के लिए भी कई तरह की छूट और सहूलियतें प्रदान की है। सरकार इन चैनलों
को आर्थिक मदद भी देती है और भरपूर विज्ञापन देती है ताकि इन्हें खूब कमाई हो।
लेकिन ये चैनल राजनीतिक दलों, मंत्रियों और नेताओं से भी पैसे वसूलने लगे हैं। जो
इन्हें पैसे देते हैं उनकी ये वाहवाही करते हैं जबकि हम जैसे नेता जो इन्हें पैसे
नहीं देते हैं उन्हें बदनाम करते हैं। अब तो माननीय महोदय इन्होंने हद ही कर दी है।
इन्होंने कमाई का और नया तरीका इजाद कर लिया है। अब तो ये चोर मोहल्ले की पुलिस को
यह कहकर किसी के घर में घुसने की इजाजत पाते हैं कि वे उस घर में चोरी करने के लिये
जा रहे हैं, लेकिन वे घर में घुस कर चोरी नहीं करते बल्कि पति-पत्नी को उनके मासूम
बच्चों और बूढे मां बाप के सामने बिठाकर नितांत निजी सवाल पूछते हैं। मैं सरकार से यह माँग करता
हूँ कि इन्हें
कमाई के लिए अन्य रास्तों को अपनाने से रोका जाए।`` संसद में हंगामे को देखते हुए मंत्री ने आश्वासन दिया कि इस बारे में
जाँच करायी
जाएगी और जाँच के निष्कर्ष से संसद को अवगत कराया जाएगा।
सरकार ने इस बारे में जाँच के लिए जाँच आयोग बिठाया और आयोग की रिपोर्ट के आधार पर
कुछ चोरों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया जिसमें कहा गया था कि यह पता चला है कि वे
चोरी करने के अपने मूल कर्तव्य से भटक गए हैं और वे लोगों की सम्पत्ति लूटने के
बजाय लोगों की इज्जत लूट रहे हैं और इस कारण क्यों न चोरी करने के लिए मिला
उनकी लाइसेंस रद्द कर दिया जाए।
इस नोटिस का जवाब देने के लिए चोरों को एक भव्य पाँच सितारा होटल में हाजिर होने को कहा गया।
सभी चोर निधार्रित जगह पर निधार्रित समय पर पहुँच गए। हर चोर के पीछे-पीछे उनके
निजी सहायक अटैची लेकर चल रहे थे जिनमें वे फ़िल्में व जरूरी कागज थे जिन्हें लेने के लिए
मंत्रियों और अधिकारियों की पूरी टीम वहाँ उमड़ पड़ी थी। चोरों ने अपने कागजों और जवाब से सरकार
को संतुष्ट कर दिया। उस बैठक में सरकार ने ऐसी फिल्में बनाने वाले और उन्हें
टेलीविजन पर प्रसारित करने वाले चोरों को पुरस्कृत करने का फैसला किया तथा संसद में
फालतू सवाल उठाने वाले प्रतिनिधियों को लोकतंत्र और विकास विरोधी करार देते हुए
उनके खिलाफ जाँच कराने का फैसला किया कि वे किन लोगों से मिले हुए हैं और उन्हें
कौन भड़का रहा है।
सरकार ने संसद में वक्तव्य दिया कि
जाँच से पता चला है कि ये चोर दरअसल किसी तरह के
मानदंड का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं बल्कि चोरी करने के अपने मूल कर्तव्य को ही
अंजाम दे रहे है। पहले ये चोर लोगों के घरों से उनकी धन-सम्पत्ति लूटते थे और अब भी
वे ऐसा ही करना चाहते हैं, लेकिन इन चोरों के महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण गरीबी
मिटाने के सरकार के अभियान को जो भारी सफलता मिली है उसके कारण अब लोगों के
पास धन-सम्पत्ति जैसी वैसी चीजें रहीं नहीं जिन्हें लूटा जा सके इस कारण अब मजबूरी
में ये चोर उनकी इज्जत को लूट रहे हैं क्योंकि उनका काम ही कुछ न कुछ लूटना है ओर
इसके लिए ही उन्हें लाइसेंस मिला है अब अगर किसी सांसद को इस पर भी कोई आपत्ति हो
तो वे सुझाव दें कि चोर अब क्या लूटें। जहाँ तक धन-सम्पत्ति और इज्जत-आबरू गँवाने
लोगों के आत्महत्या करने का सवाल है तो इस संबंध में सरकार का कहना है कि यह गरीबी
मिटाओ अभियान की प्रगति का ही प्रमाण है। सरकार के इस जबाव से सभी सांसद लाजवाब हो
गए। उनके पास पूछने और बोलने के लिए कुछ रह नहीं गया था।
२३ नवंबर २००९ |