भगवान राम अयोध्या लौट आए थे।
धोबी के कहने पर लोकापवाद के डर से सीता माता को घर से निकाल चुके थे। समय काफी
रहता था सो राजकाज में काफी ध्यान देने लगे थे औऱ दरबार देर रात तक चलता रहता था।
मर्यादा पुरुषोत्तम का दरबार था इसलिए सब कुछ संयमित रहता था। नीति और आदर्श की
बातें होतीं और शिष्ट हास-परिहास चलता रहता। एक दिन अचानक एक अमर्यादित घटना हुई और
उसे अंजाम भी दिया राम के परम भक्त हनुमान जी ने। वे तमतमाते हुए आए और बिना
अभिवादन किए रामचंद्र जी बोले, ''मैं जा रहा हूँ अब नहीं लौटूँगा ये रखिए
त्यागपत्र।
रामचंद्र जी ने पूछा, ''क्या हुआ वत्स। हनुमान बोले, ''होना क्या है,
मान सम्मान को ताक पर रखकर अपने से काम नहीं होता। आप वत्स-वत्स कहते हैं और वहाँ
नीचे धरती पर मेरे मंदिर तोड़े जा रहे हैं। राम बोले, ''क्या कह रहे हो हनुमान, ऐसा
भी कहीं होता है? तुम्हारी मूर्तियाँ तो हमारे साथ होती हैं, फिर तुम्हारे मंदिर
मेरे भी तो हुए, बताओ किसने किया है। यह धतकर्म मैं उसे यथोचित दंड दूँगा। हनुमान
जी बोले, ''एक तो आप ये ग़लतफहमी निकाल दीजिए कि मेरी मूर्तियाँ केवल आपके मंदिरों
में ही हैं। मेरे अपने सेपरेट मंदिर भी हैं जहाँ केवल मेरी विराट रूप वाली मूर्ति
होती है, शहरों में देखिए, राम मंदिर से ज़्यादा हनुमान मंदिर प्रसिद्ध होते हैं।
एक तो दिल्ली में ही है, ख़ास कनॉट प्लेस पर। और रही बात मंदिर तोड़ने की तो मुझे
पता लगा है कि वहाँ एक नगर में मेरा मंदिर अपने ही अपने भक्तों को कहकर तुड़वा दिया
है। रामचंद्र जी सकते में आ गए। बोले, हनुमान तुम्हें किसने कहा कि मैंने तुम्हारा
मंदिर तुड़वा दिया, मैं भला ऐसा क्यों करूँगा?
हनुमान बोले, मुझे उस राज्य के विधायकों ने बताया
है कि आपका नाम जपने वाली पार्टी की सरकार ने मेरा मंदिर तुड़वा दिया है। अब राम
थोड़ा सहज हुए, बोले, मैं समझ गया, इस विधायक प्रजाति ने तुम्हें बहकाया है।
सुनो हनुमान, धरती की ये प्रजाति राक्षसों से भी चतुर होती है। उनसे भी
ज़्यादा मायावी, तरह-तरह के रूप रचने वाली। इन्होंने तोमुझे भी ठग लिया था, बोले कि
आपका अयोध्या में भव्य मंदिर बनाएँगे। चंदा भी खा गए और मंदिर बनाना तो दूर मेरी
मूर्ति को २० साल से खुले में रख छोड़ा है तुम इनकी बातों में न आओ हनुमान, ये
विधायक, सांसद और गेरुए वस्त्रधारी बाबा बड़े खतरनाक हैं। तुम्हें तो पता है सीता
को भी रावण ऐसे ही साधु बनकर उठा ले गया था। हनुमान का गुस्सा शांत नहीं हुआ। वे
बोले, ''आप मुझे बहला रहे हैं मुझे पक्का पता है, उस राज्य की राजधानी में मेरा
मंदिर तोड़ दिया गया है और उस ज़मीन को आपको नाम जपने वाली पार्टी ने अपनी शाखा
लगाने के लिए ले लिया है। मैं कैसे मान लूँ कि आपने मेरे बढ़ते जनाधार से घबराकर यह
कार्रवाही नहीं की है। राम ने पता किया तो मालूम हुआ कि घटना सच्ची है। वे बोले
वत्स, तुम्हारी बात सही है, पर तुम्हारी भाषा से लगता है कि विधायकों ने अपनी संगत
का तुम पर पर्याप्त असर छोड़ा है, तुम ऐसा करो उस राज्य में चले जाओ आज वहाँ इशी
विषय पर विधानसभा में भी चर्चा हो रही है। तु्म्हें सब खुद स्पष्ट हो जाएगा।
हनुमान जी तत्काल सूक्ष्म रूपधर कर विधानसभा में
पहुँच गए। वहीं उन्हें पत्रकार का रूप धरे नारद जी भी मिल गए। हनुमान जी ने उन्हें
प्रणाम किया और आने का उद्देश्य बताया तो नारद उन्हें भी पत्रकार का रूप धरवा कर
अपने साथ प्रेस दीर्घा में ले गए।
विधानसभा का भवन अति विशाल और गरिमापूर्ण था। एक
ओर सत्तापक्ष और दूसरी ओर विपक्ष के बैठने के स्थान थे। विचारों से असहमत होने पर
शारीरिक प्रहार के लिए माइक आदि लगे हुए थे। सदन की कार्रवाई शुरू हुई और विपक्षी
पार्टी के एक विधायक ने कहना शुरू किया कि राजधानी में हनुमान जी का एक मंदिर कल
आधी रात गिरा दिया गया। नगर निगम के एक दस्ते ने भगवान की मूर्ति को अपने कब्जे में
ले लिया और पुलिस थाने में रख दिया। भगवान हनुमान तब से भूखे हैं, उन्हें भोग नहीं
लगा है और यह सब काम सत्ता में बैठी उस पार्टी के राज में हुआ है जो राम का नाम
लेकर सत्ता में आई है। यह शर्म की बात है कि रामनामी पार्टी ने अपनी संस्था के एक
विद्यालय को ज़मीन देने और वहाँ शाम को युवकों को धर्म रक्षा का ज्ञान देने का
प्रशिक्षण देने के लिए हनुमान जी का मंदिर तोड़ डाला।
प्रेस दीर्घा में बैठे हनुमान जी ने नारद से कहा,
''ऋषिवर कल यही बात स्वयं भगवान राम स्वीकार नहीं कर रहे थे। नारद जी ने कहा,
पवनपुत्र इतनी जल्दी निष्कर्ष मत निकालो, देखते जाओ। तभी सत्तापक्ष के कई सदस्य
अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और चिल्लाने लगे कि यह झूठ है गलत है। इस पर विपक्षी
ने कहा, क्या यह भी झूठ है कि वहाँ सात साल से हनुमान जी का मंदिर था, रोज़ आरती
होती थी और हनुमान जी का मंदिर तोड़ने से व्यथित भक्त अनशन पर बैठे हुए हैं। हनुमान
जी की फिर मुठ्ठियाँ तन गई, इसी बीच नगर निगम के मंत्री खड़े हुए, उन्होंने काले
रंग का घुटनों तक का कुर्ता पहन रखा था और मुख से स्पष्ट लग रहा था कि पान वे सदन
में प्रवेश करने से ठीक पहले थूककर आए हैं और सुबह से दाँतों में जमे उस स्वादिष्ट
बीड़े के अभाव में काफी असहज महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, इतना उत्तेजित होने
की ज़रूरत नहीं है, मैं अभी सारी स्थिति स्पष्ट कर देता हूँ।
फिर उन्होंने रहस्य
भरी मुस्कान के साथ वह मामला उठाने वाले विपक्ष के विधायक की तरफ़ देखा और बोले, ये
सच है कि नगर निगम ने हनुमान जी की एक मूर्ति चबूतरे से उठाई है पर वहाँ मंदिर कभी
नहीं था बल्कि एक चबूतरा बनाकर मूर्ति रख दी गई थी और इसका मक़सद ज़मीन पर कब्ज़ा
करना था क्यों कि उस इलाके में ज़मीन के दाम लाखों में पहुँच चुके हैं यह भूमि
माफिया की कोशिश थी जिसे नाकाम कर दिया गया। मूर्ति थाने में है और पुलिस वाले
हनुमान जी की पूजा कर रहे हैं, सरकार ने विचार किया है कि थोड़े दिन बाद विधि विधान
से थाने में ही मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर दी जाएगी। प्रेस दीर्घा में हनुमान जी
इधर-उधर झाँकने लगे। नारद से बोले, तो ये कलजुगी भक्त मेरी मूर्ति का इस्तेमाल
ज़मीनें कब्ज़ाने में कर रहे हैं? नारद जी समझदार मुस्कुराहट बिखरते हुए बोले,
तुम्हारी ही नहीं हनुमान सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों का अब यही प्रयोग हो रहा
है।
उधर सदन में फिर शोरगुल हो गया। विपक्षी विधायक
बोला, आप सदन को गुमराह कर रहे हैं वहाँ सात साल से ये मंदिर था आपने इसे तोड़ा है।
मंत्री ने भी एक काग़ज़ लहराते हुए उसी बुलंदी से कहा, उस कालोनी की विकास समिति ने
लिखकर दिया था कि मंदिर हटाया जाए। विपक्षी भी एक काग़ज़ लहराकर चीखा, विकास समिति
ने ऐसा कभी नहीं कहा, ये चिट्ठी है वे लोग तो आहत होकर धरने पर बैठे हुए हैं।
हनुमान जी बेचैन हो गए, उन्होंने नारद से पूछा, ये विकास समिति ने दो अलग-अलग पत्र
कैसे लिख दिए? नारद जी बोले, पत्र अलग-अलग नहीं है उस कॉलोनी में विकास समितियाँ ही
दो होंगी। एक इनके पक्ष वाली एक विपक्ष वाली। इस बीच सदन में ज़ोरदार हंगामा होने
लगा। सभी सदस्य खड़े होकर नारे लगाने लगे। तभी हाँफता हुआ एक विधायक घुसा, उसके गले
में भगवा दुपट्टा पड़ा था, उसने अपने पड़ौसी से हल्ले की वजह जानी और चिल्लाने लगा,
तुम विपक्षी किस मुँह से भगवान का नाम लेते हो, वे हमारे हैं हम उनका कुछ भी करें,
कहीं भी रखें तुम्हें क्या मतलब। हनुमान जी इस घोषणा से सिहर उठे।
इसी बीच हंगामा
बढ़ते देखकर अध्यक्ष ने दखल दिया। वे बोले, इस बात का क्या प्रमाण है कि वहाँ मंदिर
था। विपक्षी विधायक तैयारी से था तुरंत फोटो लहराने लगा। अब सत्ता पक्ष थोड़ा दबा
और उसका दुपट्टे वाला विधायक फिर चिल्लाने लगा. तुम विधर्मी हो तुम्हें भगवान के
बारे में बोलने कोई हक नहीं है। हमने राम का मंदिर भी बनाने की शपथ खाई था, हनुमान
का मंदिर भी बनाने की शपथ खाई थी हनुमान का भी बनाएँगे। विपक्ष से आवाज़ आई, तुम
मंदिर की केवल बात करते हो राम मंदिर का ताला तो हमने खुलवाया था। फिर शोर,
हो-हुल्लड़ शुरू हो गया। विपक्षी विधायक फिर बोला, सरकार धर्म विरोधी हो गई है,
मंत्री कहते हैं वहाँ मंदिर नहीं था, ये हमारे एक और विधायक खड़े हैं जो सात साल से
उस मंदिर में जा रहे हैं जो सात साल से उस मंदिर में जा रहे हैं, बोलिए न, फिर
हमेशा चुप रहने वाला वह विधायक भी पहली बार बोला, 'हाँ मैं जाता हूँ। फिर शोरगुल
शुरू हो गया और कुछ सुनाई नहीं दिया।
प्रेस दीर्घा में बैठे हनुमान जी कान खुजाने लगे।
नारद जी बोले, 'महाराज इनमें कौन सच कह रहा है, कौन झूठ पता ही नहीं लग रहा। नारद
जी बोले, ये विधानसभा है हनुमान, यहाँ मुद्दे उछाले जाते हैं, सच झूठ का फ़ैसला तो
न्यायालय करता है, और वहाँ अगर मामला चला गया तो अगले कई युगों तक अटक जाएगा। दरअसल
हनुमान ये दोनों ही सच बोल रहे हैं और दोनों ही झूठ बोल रहे हैं। हनुमान ने कहा,
महाराज ये क्या उलटबाँसी है? नारद जी बोले, देखो, सच तो यह है कि वहाँ सात साल से
आपकी मूर्ति थी और झूठ ये कि मंदिर था, मंदिर वहाँ नहीं था। सच ये कि वहाँ ज़मीन का
दाम बड़ा महँगा है मूर्ति के सहारे उसे कब्जाने की योजना थी और झूठ ये कि विकास
समिति ने उसे हटाने को कहा था। इस तरह ये दोनों झूठे भी हैं और सच्चे भी हैं।
हनुमान, तुम नहीं समझते, ये विपक्षी विधायक रातों रात धार्मिक नहीं हो गए हैं
इन्हें ज़मीन कब्जाने वालों ने यह मामला उठाने के लिए प्रेरित किया है, कैसे तुम
नहीं समझोगे वरना इससे पहले जब भूख से लोगों के मरने का मामला उठा था तो ये बिलकुल
खामोश थे। और ये सत्तापक्ष, इसके विधायकों को पता है कि वहाँ शाखा लगनी है और वह
शाखा जो संस्था लगवाती है उसके खिलाफ़ ये तो क्या इनके आका भी नहीं जा सकते। ये
विधायक बड़े मायावी होते हैं हनुमान तुम इनकी बातों में न आओ। इनके कई रूप होते
हैं, चुनाव प्रचार वाला अलग, जीतने वाला अलग, मंत्री बनने वाला कुछ और, हारने वाला
कुछ और। हनुमान एकदम से चौके, ये बात मेरे आराध्य राम भी कह रहे थे। उन्हें अपनी
गलती का भान हुआ। उन्होंने तुरंत सूक्ष्म रूप धरा और सीधे श्रीराम के चरणों में जा
पहुँचे। भगवान राम मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
३०
मार्च २००९ |