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हास्य व्यंग्य

भिखारियों से भेदभाव क्यों
अविनाश वाचस्पति


खबर है कि कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान भिखारियों को दिल्ली से बाहर खदेड़ने की तैयारिया चल रही हैं। मेरी दिल्‍ली में जब नेताओं से भी प्‍यार किया जाता है तो भिखारियों ने ऐसा कौन-सा गुनाह कर दिया है कि खेल कूद के मौके पर उन्‍हें भगाने की जुगत भिड़ाई जा रही है। इन्‍हें भगाने के बजाय सुंदर-सुंदर कपड़े पहनाकर दर्शकदीर्घा में बिठाया जाना चाहिए। जिससे सब लोग जान सकें कि भारत के भिखारी खेल प्रेमी हैं। इन्‍हें इसमें शामिल होने के लिए भत्‍ते दिए जाने का प्रावधान किया जाए। जब करोड़ों रूपयों का बजट खेलों की मद में रखा जा सकता है तो भिखारियों के विकास के लिए इससे उचित अवसर फिर नहीं मिलेगा। इस अवसर को नहीं गवाया जाना चाहिए। सिर्फ़ यही तो मानना होगा कि दो फ्लाईओवर अतिरिक्‍त बनाए गए हैं या एक मेट्रो लाईन और बनाई गई है। जब मानने भर से देश की एक समस्‍या हल हो सकती है और विकास के नए आयाम हासिल किए जा सकते हैं तो दिल्‍ली में मौजूद भिखारियों से भयभीत होने का कोई सॉलिड रीजन तो नहीं दिखाई दे रहा है। कुछ करोड़ों का बजट रखकर उनका आशीर्वाद भी लिया जा सकता है। आशीर्वाद की तो इस देश में सभी को ज़रूरत है।

नेताओं को भिखारियों का अहसानमंद होना चाहिए कि उन्‍हीं के एक हुनर के चलते वे सत्‍ता में आते हैं। भिखारियों ने यदि माँगने की बेशर्मी के पाठ न पढ़ाए होते तो कोई नेताई के धंधे में अपना भाग्‍य आज़माता ही नहीं। आप दिल्‍ली की किसी भी लाल‍बत्‍ती पर देश के इन लालों को देखिए, अरे भिखारी लाल ही तो हैं। नेता लोग यदि भारत माँ के भाल हैं तो भिखारी भारत माँ के असली लाल हैं। ये भिखारियों का ही बूता है कि वे माँग कर अपना पेट भर रहे हैं। अपनी गृहस्‍थी का पालन कर रहे हैं। आपको अहसान मानना चाहिए कि वे लूट नहीं रहे हैं। अगर आपके कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए वे लूटमार शुरू कर दें तो आप उन्‍हें भगाने के बारे सोचने लग जाएँगे लेकिन कर कुछ नहीं पाएँगे। इस प्रकार वे आपको तनाव से दूर रखने रख रहे हैं और आप उन्‍हें दिल्‍ली से भगाने की सोच-सोच कर फिजूल में ही तनावग्रस्‍त हो रहे हैं। अगर वे लूटमार, छीना झपटी करेंगे तो आपकी पुलिस भी उनका सहयोग करेगी बल्कि कहना चाहिये कि कंधे से कंधा मिलाएगी। पुलिस तो चाहती ही है कि ऐसा ही हो जिससे उनकी कमाई के नये नये रास्‍ते खुलें। दिनों दिन महंगाई बढ़ रही है। इस महंगाई का सामना करने के लिए आय के नये रास्‍ते खोजने का सबको समान अधिकार है। अब जिसके साथ पुलिस ने कंधा मिला लिया तो उसको दिल्‍ली से बाहर करने के लिए किसी का भी कंधा नहीं मिल सकेगा। उपहारस्‍वरूप पुलिस का डंडा मिलेगा और डंडा प्‍यार करने में कोई भूमिका नहीं निबाहता है।

कॉमनमैन वेल्‍थ खेलों के मौके पर भिखारियों को अतिरिक्‍त सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए। उनके ठिकानों का पंजीकरण किया जाए। उन्‍हें सुसज्जित केबिन खोलने की सरकारी सहूलियतें मिलनी चाहियें। लालबत्तियों का समय बढ़ाया जाए ताकि उनका व्‍यवसाय इन खेलों के शुभ अवसर पर खूब फलता फूलता रह सके। प्रत्‍येक भिखारी को पंजीकृत ठिकानों पर ही भीख प्राप्‍त करने की सुविधा होनी चाहिए। लाल बत्तियों पर अपनी जान जोखिम में डाल कर भीख माँगने से सरकारी अक्षमता का प्रदर्शन होता है। सरकार का अपने भिखारियों को ही सुविधाएँ देने में कंजूसी बरतना अच्‍छा नहीं है। इतना अच्‍छा अवसर गँवाने की बजाय उनकी बेहतरी और विकास के लिए सोचा जाना चाहिए। इससे मानव मन की परोपकार करने की भावना को बल मिलता है। भिखारियों को जो दिया जाता है वो दान ही कहलाता है और दान की महिमा अपरंपार है। इससे अगला जन्‍म भी सुधर जाता है। सरकार को चाहिए कि खुद तो भिखारियों को खुलकर प्रोत्‍साहन दे और उनका पंजीकरण कर अपना हिस्‍सा लेने से गुरेज न करे। भिखारी भी अपने व्‍यवसाय की बढ़ोतरी में सुविधाएँ मिलने से खुश होकर सरकार को प्रसन्‍न मन से हिस्‍सा प्रदान करेंगे। विदेशी भी आकर दान करके पुण्‍य और यश के भागी बनेंगे। देश की विदेशी मुद्रा में इज़ाफ़ा होगा। विदेशियों के लिए अपने देश की मुद्रा में भीख देना अनिवार्य करने का कानून बनाया जाए और जिस तरह से यकबयक खेलों की तैयारियाँ की जा रही हैं।

भिखारी और इस व्‍यवसाय में आय की संभावनाओं को ध्‍यान में रखकर मेट्रो, बसों में इन्‍हें बेटिकट चलने की मंजूरी दी जानी चाहिए। आप देखेंगे कि कॉमनमैन खेलों के दौरान दी गई इन सुविधाओं से खेलों के बहाने सच्‍ची मुच्‍ची के कॉमनमैन का इतनी तेज़ी से विकास होगा कि आप भी पछताएँगे कि ये सुविधाएँ एशियाड और अन्‍य खेलों के अवसर पर क्‍यों नहीं प्रदान की गईं। सुझाव तो यह भी है कि भिखारियों को इन अवसरों पर अन्‍य राज्‍यों से हवाई जहाज़ और रेलगाड़ियों में नि:शुल्‍क आने जाने की सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए। यह तो विकास का काम है और हर ओर विकास हो रहा है तो भिखारियों के साथ ही भेदभाव क्यों?

देश के विकास को ध्‍यान में रखते हुए वे मोबाइल फोन तो अपने खर्चे पर इस्‍तेमाल करते हुए देखे ही जाते हैं। इन खेलों के अवसर पर भिखारियों को इंटरनेट के इस्‍तेमाल के लिए प्रेरित करने के लिए भी सरकारी अभियान चलाए जाने चाहिए। फिर देखिएगा पूरे विश्‍वभर में सिर्फ़ भारत का ही नाम होगा और सुर्खियाँ होंगी कि भारत की राजधानी दिल्‍ली ने विश्‍व का पहला ऐसा शहर होने का गौरव प्राप्‍त किया है, जहाँ पर भिखारी भी इंटरनेट का इस्‍तेमाल करते हैं।

९ नवंबर २००९

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