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हास्य व्यंग्य

आज़ादी सपने देखने की
प्रमोद ताम्बट


''इलेक्ट्रिशियन बनने का सपना देख रहे हैं? हम आपको बनाएँगे ट्रेंड इलेक्ट्रिशियन।'' ऑटो की पीठ पर लिखा यह विज्ञापन देखकर बंदा अभिभूत हो गया। सच्ची, भारत ही दुनिया में एक ऐसा अद्भुत देश हो सकता है जहाँ हर नागरिक पूरी आज़ादी के साथ कुछ बनने का छोटा से छोटा या बड़ा से बड़ा सपना देख सकता है। पैदा हुए, मन हुआ स्कूल गए-नहीं गए, चौथी-पाँचवी तक पढ़े-पढ़े, नहीं पढ़े -नहीं पढ़े, फिर नवी, दसवी तक आते-आते रोटी-रोज़गार के सपने देखने लगे। किसी महान आत्मा ने स्वरोज़गार का सपना देखा था, सो अब देश के अधिकांश नागरिकों के बच्चे छोटी उम्र से ही कुछ बनने का सपना देखने लगते हैं। कोई मोची बनने का सपना देखता है, कोई पनवाड़ी, कोई सिंगदाना-मुँफली की रेड़ी लगाने का सपना देखता है, कोई फुटपाथ पर अतिक्रमण कर सब्ज़ी बेचने वाला बनने का सपना देखता है, कोई मिस्त्री, मजदूर, हेल्पर या सफल हम्माल बनने का सपना देखता है। कोई चाहे तो स्वीपर बनने का सपना भी उतनी ही स्वतंत्रता से देख सकता है जितनी स्वतंत्रता से इंजीनियर, डाक्टर बनने का सपना देखा जाता है।

चोर बनने का सपना देख लो, जेबकट बनने का सपना देख लो, नकबजन, डकैत बनने का सपना देख लो या काला-बाज़ारिया, जमाखोर, मिलावटिया, सूदखोर बनने का सपना देख लो, कोई रोक-टोक नहीं। बल्कि शुभचिन्तक लोग अपनी ऐढ़ी-चोटी का जोर लगा देंगे ताकि आपका सपना पूरा हो। गाँव, देहात, छोटे शहरों से कितने लोग निकलते हैं बड़े शहरों में भिकारी बनने का सपना आँखों में लिए। हालाँकि उन सभी का सपना पूरा हो जाता हो ऐसी बात नहीं है, उनमें से कुछ मंदिरों, मज़्जिदों, बाज़ारों, रेल्वे स्टेशनों पर बम ब्लास्ट का शिकार होकर उन लोगों का सपना पूरा करते हैं जिन्होंने दूसरा कोई सपना ना मिलने से आतंकवादी बनने का सपना आँखों में लिए अपना बचपन गुज़ारा हो।

देश के बहुत से पूत छुटपन ही से सिपाही बनने का सपना देखते हैं ताकि चौक-चौराहों पर खड़े होकर वसूली की जा सके। वे पुलिस महकमे के आला अफ़सर बनने का सपना देखने के लिए भी स्वतंत्र हैं किन्तु वे ऐसा नहीं करते, क्योंकि आला अफ़सर चौक-चौराहों पर खुलेआम वसूली नहीं कर सकते। कुछ बच्चे बचपन ही से नेता बनने का सपना देखने लगते हैं परन्तु उनके माँ-बाप उनका यह सपना पनपने नहीं देते क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं वह गलत रास्ते पर जाकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस ना बन जाएँ। जब कुछ ख़ास गुण-सूत्रों के उदय से पूरा भरोसा हो जाता है कि बालक वर्तमान नेताओं-सा आचरण करने लगा है तब वह देश का नेतृत्व करने का सपना देखने के लिए स्वतंत्र छोड़ा जाता है।

बहुत से लोग होश आने के बाद से ही सरकारी अफ़सर बनने का सपना देखने लगते हैं ताकि ऊपरी आमदनी का लुत्फ़ उठाया जा सके, परन्तु सरकारी नौकरियाँ उपलब्ध ना होने से उनका यह सपना अपनी जगह पर ही अटका रह जाता है। प्रायवेट नौकरियों में भी यह सुविधा है परंतु उसका सपना देखने से लोग कतराने लगे हैं। ख़ासतौर से अर्थ व्यवस्था की ऐतिहासिक पछाड़ के बाद से तो लोगों के स्वप्न-पटल पर उसी तरह मच्छर उड़ रहे हैं जैसे नेटवर्क गड़बड़ होने से टी.व्ही. की स्क्रीन पर उड़ते हैं।

सपने देखने के लिए ना तो टैक्स लगता है ना बिजली खर्च होती है इसलिए कुछ लोग मूल सपना पूरा होने के बाद भी थमते नहीं है, और भी बडे़ सपने देखने लगते हैं। जैसे एक पंक्चर जोड़ने वाले का असिस्टेंट, साइकिल का पंचर जोड़ने में पारंगत होते ना होते स्कूटर-मोटरसाइकिल का पंचर जोड़ने का सपना देखने लगता है, जो कार, ट्रक का पंचर जोड़ने के सपने से होता हुआ हवाईजहाज़ का पंक्चर जोड़ने के सपने तक जा सकता है। एक क़साई का सहायक खुद एक सफल क़साई बनने का सपना देखता है। छोटा बाबू, बड़ा बाबू बनने का सपना देखता है छोटा अफ़सर बड़ा अफसर बपने का सपना देखता रहता है, औकात हो या ना हो। मोहल्ले का गुंडा क्रमबद्ध तरीके से देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखता है। पहले वह मोहल्ले का एक छुटभैया नेता बनने का सपना देखता है फिर आस-पास की झुग्गी-झोपड़ियों का नेता, फिर वार्ड का नेता, फिर मुन्सीपाल्टी का नेता, फिर विधानसभा क्षेत्र का नेता, मंत्री, फिर संसदीय क्षेत्र का नेता, मंत्री, फिर दल का नेता और फिर सीधा प्रधानमंत्री बनने का सपना देखता है।

ग्रामीण क्षेत्र में गाँव का सबसे उजड्ड आदमी पहले सरपंच और किसी काग़ज़ी समिति का काग़ज़ी सदस्य बनने का सपना देखता है फिर जनपद पंचायत, जिला पंचायत से होता हुआ विधायक, सांसद के चैनल में घुसता हुआ प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगता है। कुछ बेसब्रे इतने लम्बे सफ़र में फालतू के सपने देखते-देखते बीच में ही टूट जाते हैं और सुविधाजनक किसी कड़ी पर अटक कर तहसील से लेकर संसद तक पहुँचगामी राजनैतिक-दलाल टाइप हस्थी बनने का सपना पूरा करने में लग जाते है।

देश में कहीं भी खड़े होकर '(?) करने और थूकने की 'खुली' आज़ादी के बाद यदि कोई आज़ादी थोक में 'खुली' हुई है तो वह है सपने देखने की आज़ादी। करोडों लोग ऐसे छोटे-बड़े सपने देखकर उनके पूरे होने के इंतज़ार में ज़िन्दगी काटते हैं। आज़ादी के पहले लोगों ने देश को आज़ाद कराने का सपना देखा और उसे पूरा किया। आज़ादी के बाद कई लोग इस परेशानी में कि-अरे आज़ादी का सपना आखिर पूरा कैसे हो गया, सपनों की भी सीलिंग करने में लग गए। कुछ के सपने तेल-नून-लकड़ी के इर्द-गिर्द रह गए और कुछ के लिए सारा आसमान खुला है। देखो, जिसकी जैसी औकात है वैसा सपना देख लो। सपना देखने पर कोई रोक नहीं।

३० नवंबर २००९

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