हास्य व्यंग्य | |
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परमाणु बिजली और हैरतगंज के पेलवान जी |
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अमेरिका ने भारत को यों ही महाशक्ति की तरफ़ बढ़ता
हुआ नहीं माना है। इसके पीछे निश्चित ठोस कारण है। दरअसल हमारे भारत महान की गली
मोहल्ले चौराहों पर अनेक शक्तिपुंज विद्यमान है जो अपनी मातृभूमि को इस दिशा में
धकेलने के लिए कमर कसे बैठे है। विश्व के अन्य लोगों की ही तरह ये सभी शक्तिपीठ बुश
साहब की यात्रा पर खुर्दबीनी नज़र रखे हुए थे। इन्हीं में से एक हमारे हृदय सम्राट
पेलवान जी भी थे। पेलवान जी ने अपनी दूरदृष्टि-दबंगता के मिश्रण से अनेक जटिल से
जटिल समस्याओं का देशी स्टाइल यानी धोबी पछाड़ के माध्यम से आसान हल निकाला था।
इतिहास गवाह है कि जब देश में जल परियोजनाओं के द्वारा बाँध बनाकर सिंचाई तथा
विद्युत निर्माण शुरू किया गया था तब पेलवान जी ने किसान-भाइयों की ''गुप्त-ज्ञान''
दिया था कि सिंचाई के लिए जो पानी मिल रहा है उसमें से बाँध बनाकर पहले ही बिजली
निकाल ली गई है। अब यह बिना बिजली का पानी फसल के किस काम का! पेलवान जी के ही सत प्रयासों से परमाणु बिजली को भी लेकर क्षेत्र में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस्तेमाल से पहले प्रत्येक वस्तु को ठोंक-बजाकर देखने की प्रवृत्ति उनके रक्त में कूट-कूटकर भरी थी। अपनी इस आदत और स्थिति की गंभीरता के मद्देनज़र, उन्होंने क्षेत्र के कुछ संभ्रांत लोगों को लेकर अंचल के इलेक्ट्रिक-एक्सपर्ट व बिजली विभाग से ताज़ातरीन सस्पेण्ड लाइनमेन छोटेलाल से अनौपचारिक गहन विचार विमर्श किया। पेलवान के दाएँ हाथ कहलवाने वाले फत्तन काका ने गंगू पान वाले की गुमटी पर आधा दर्जन पाऊच फाड़कर बैठक का विस्तृत ब्यौरा दिया। प्रस्तुत है संक्षेप में उनके कुछ फुटेज - ''ये परमाणु बिजली क्या होती है?'' पेलवान जी ने
चक्की का टुकड़ा मुँह में चबाते हुए पूछा। छोटेलाल ने पेलवान को इसका क्या उत्तर दिया होगा यह बतलाने की ज़रूरत नहीं। हाँ इसके बाद शहर के सांध्य दैनिक में पेलवान जी का वह बयान छपा जिसमें उन्होंने समझौते का खुलकर स्वागत किया था। ७ अप्रैल २००८ |