एंकर परेशान था, उत्तेजना में था, खुश था, वह हाथ नचा
रहा था, खीसें निपोर रहा था। जेब में हाथ डालता और फिर निकालता था। वह मुठठी भींच
रहा था। उँगली से इशारा कर रहा था। तेज़ी में था। पुलिस को डपट रहा था। डकैत की जी
हुजूरी कर रहा था। बार-बार डकैत को श्री के संबोधन से नवाज़ता, उसकी सुरक्षा के लिए
पुलिस को कठघरे में खड़ा करता और बार-बार अपने चैनल की तारीफ़ करता। टेलिविजन के
इतिहास की ज़िक्र करता बताता जो उनका चैनल दिखा रहा है आज तक किसी ने नहीं दिखाया।
भूतो न भविष्यति की मुद्रा।
हाय-हाय पुलिस तुम जिसे नहीं खोज पाए हमारा
संवाददाता करा लाया। हाय-हाय पुलिस तुम अब सरेंडर इतना सुरक्षित नहीं कर पाते हमने
कराया। हाय-हाय पुलिस देखो डकैत जी कितने प्रसन्न हैं, एक खरोंच नहीं। देखो क्या
भव्य दृश्य है, डकैत जी हमारे स्टूडियो में कुर्सी पर, नहीं नहीं, सोफ़े पर आराम से
बैठकर चाय पी रहे हैं। देखो-देखो डकैत जी के मुँह से कितना तेज टपक रहा है।
देखो-देखो डकैत जी मुस्करा भी रहे हैं। देखो डरे नहीं हैं बिल्कुल डर का तो जैसे
दूर-दूर तक उनसे कोई वास्ता नहीं है। देखो डकैत जी ने तिरछा देखा, वाह जी वाह क्या
अदा है। आज तक इस स्टाइल में कोई डकैत किसी स्टूडियो में नहीं आया।
वो देखो डकैत से हमारे संवाददाता का भीषण जंगल में
लिया गया इंटरव्यू। आज तक किसी चैनल ने इतनी हिम्मत नहीं की कि वह डकैत को अपने
यहाँ बुला सके। दरअसल डकैतों को हमारे चैनल के अलावा किसी चैनल पर भरोसा नहीं है।
आप भी हम पर भरोसा करिए। टीआरपी का सवाल है बाबा। हमें ही देखते रहना । हम बताएँगे
इस खूँख़ार डकैत की सच्ची कहानी डकैत जी की ज़ुबानी। अब देखिए पहला शाट यह जंगल में
रात के बारह बजकर तेरह संकेंड का है। देखिए हमारे संवाददाता को देखिए कितना निडर
होकर इंटरव्यू ले रहा है। डकैत जी आप ने पहली बार कब चोरी, डकैती जैसी कलाओं में
हाथ आज़माया। डकैत जी मस्त हैं। बोल रहे हैं यह इंटरेस्टिंग प्रश्न नहीं है कोई और
प्रश्न पूछो। डकैत खी-खी कर रहा है। संवाददाता रिरिया रहा है डकैत जी कोई दमदार
बाईट दे दो। कई दिन से कोई बढ़िया स्कूप नहीं मिला। साथियों के इन्क्रीमेंट लग गए
हैं पैसे ही नहीं पोज़िशन भी बढ़ी है। एक अदद इन्क्रीमेंट का सवाल है डकैत जी कोई
धासूँ-सी बाईट दे दो यही कह दो कल परसों कोई ख़ास संस्मरण लायक बात हुई हो। आपको
कोड भाषा में किसी को कोई मैसेज देना हो। सब लाइव जा रहा है। बस ताबड़तोड़ कुछ बोल
दो। चाहे वही कर दो एक बार जो आप अपहरण में लाए लोगों को डराने के लिए क्या करते हो
बोलो हो कुछ भी ऐसा कि अपनी भी लाइफ़ बन जाए। आपने कईयों की लाईफ़ बना दी अब वे सब
हमारे देश के लिए कानून बनाने का काम करते हैं कुछ ऐसा कर दो।
डकैत मुस्करा रहा है। इधर एंकर परेशान है, पुलिस
अभी तक नहीं आई। वह पुलिस पर गुर्रा रहा है। देखो डकैत जी हमारे मनाने पर बड़ी
मुश्किल से यहाँ आए हैं। सुरक्षित जेल तक जाना चाहते है। दस मर्डर, पंद्रह लूट,
डकैती कई अच्छे अपराध करने के बाद डकैत जी अब पालिटिक्स में जाना चाहते हैं। तुम
पुलिस वाले सहयोग नहीं कर रहे हो। तुम्हें धिक्कार है। डकैत जी को गुस्सा आ गया तो
सीधे फिर जंगल को चल देंगे। तब रोते रहना, आज हम आपको सीधे डकैत जी से मुलाक़ात करा
रहे हैं नहीं मान रहे हो बाद में रोते रहना।
उधर से प्रोड्यूसर चिल्ला रहा है, डकैत जी फ्रेम
से बाहर जा रहे हैं, कैमरामैन ज़रा साइड का एंगल लो। डकैत जी की छवि का सवाल है।
टीआरपी का सवाल है बाबा। थोड़ा गुस्सा चेहरे पर लाओ डकैत जी आप तो नेता टाईप लग रहे
हैं डकैत लग ही नहीं रहे हैं कैसे चलेगा।
उधर सैकड़ों फ़ोन आ रहे हैं, जनता भी पगला गई है। कई कैरियरिस्ट लड़के उनकी मातहती
में भाग्य आज़माना चाहते हैं। कई लड़कियाँ डकैत जी को इतनी देर में दिल दे बैठी
हैं, कई ज्योतिषियों के फ़ोन डकैत जी की जन्मपत्री विश्लेषण कराने को लेकर आ रहे
हैं, उधर कुछ राजनैतिक दलों के पीआर के लोग फ़ोन कर रहे हैं वे उन्हैं अपने दल में
ले जाना चाहते हैं, कुछ हथियार उत्पादक उनसे विज्ञापन कराना चाहते हैं। कार्यक्रम
को एक घंटा समय और मिल गया है। कई विज्ञापन अगले आधा घंटे में रिपीट होंगे। कमाई का
सवाल है बाबा।
एंकर को कई विश्लेषकों से बात करनी है, नेताजी
कहते है उनका हक पहले बनता है अरे अब तो फ़िल्म प्रोड्यूसर भी लाईन पर हैं, हीरो का
रोल ऑफर कर रहे हैं। उधर डकैत जी अपनी इस उपलब्धि पर खुश हैं। उन्हें दु:ख है तो
यही कि पहले स्टूडियो क्यों नहीं आए।
एंकर ताव में आ गया हैं विश्व के इतिहास में पहली बार चल रहा है लाइव शो। डकैत जी
का आत्म समर्पण। अभी ब्रैक में उसने कोट के बटन ढीले किए हैं। अभी वह बालों को झटक
कर फिर तैयार खड़ा हो गया है। फिर आक्रामक मुद्रा में आ गया है। पुलिस क्यों नहीं आ
रही है डकैत जी को रिसीव करने। संवाददाता और चैनल ने सेफ सरेंडर का आश्वासन दिया
था, क्यों नहीं हो पा रहा है सेफ सरेंडर। प्रोड्यूसर ने सारी ताकत झोंक दी है आई
जी, कमिश्नर सबको एलर्ट कर दिया है। डकैत जी समर्पण को तैयार बैठे हैं।
सब ओर सुरसुराहट है, चैनल की टीआरपी और विज्ञापन
का सवाल है प्रोड्यूसर का दबाव है ''खेंचों फ्लैश बैक में ले जाओ बचपन में ले जाओ
डकैत जी को। पहले पहल बचपन में कब कितने का हाथ मारा था। थोड़े इमोशनल प्रश्न पूछो,
उसकी माँ के बारे में, महबूबा के बारे में पूछ लो, आगे मुकदमों से बरी होकर क्या
करने की तमन्ना है यही पूछ लो। अरे पता चला है इसका रेप केस भी है, सेंसेशनल रहेगा,
उधर हाथ मार के देखो।'' एंकर कोशिश कर रहा है। फिर हार जा रहा है। डकैत जी मस्ता गए
हैं। सोच रहे हैं स्टूडियो से पार्टी दफ़्तरों का रूख़ करें या फिर फ़िल्म
प्रोड्यूसर से बात कर एकाध कांट्रेक्ट ही हथिया लें। विज्ञापन के आफर पर भी वे ऐंकर
से ब्रेक के दौरान जानना चाहते हैं।
एंकर ताव में आ गया है फिर बताने लगा है आज तक कभी
ऐसा नहीं हुआ स्टूडियो में पार्टी दफ़्तरों का फ़ोन पर किसी डकैत को पार्टी में
शामिल करने के लिए नहीं आया या फिर फ़िल्म प्रोड्यूसर ने किसी डकैत को कांट्रेक्ट
नहीं दिया। विज्ञापन के आफर पर भी वे ऐंकर से ब्रेक के दौरान जानना चाहते हैं।
उन्होंने अपनी सारी क्षमता का ख़ाका जानना चाहा कि आख़िर उनको क्या-क्या लाभ मिल
सकता है।
डकैत जी ने फिर मुँह खोला, अब वे बता रहे हैं कि
कैसे-कैसे उनके पिता तथा चाचा ने इसी धंधे में आने के बाद आत्मसमर्पण किया था। ''पर
ग्लैमर अपना ही ज़्यादा रहा'' डकैत कह रहा है, ''तब ई टी.बी. उ.बी. नहीं हुआ करता
था। आज तो हम स्टार हुई गए।'' डकैत जी ने फिर अपनी भूत बताया, भविष्य पर वे विचार
कर रहे हैं। आख़िर कई प्रास्पैक्टस् दिखाई दे रहे हैं। धन्य-धन्य कहकर ऐंकर समय
पूरा कर रहा है।
एंकर को जल्दी घर जाना था। नहीं कंसंट्रेट कर पा
रहा है। माँ को अस्पताल ले जाना था। उस पर भी माँ की बीमारी हावी हो रही है। लेकिन
मौका है आज डकैत जी से ठीक ठाक इंटरव्यू हो जाए, तो कैरियर सँवर सकता है। कैरियर का
सवाल है, सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा वह चाहता है, पर डकैत जी थोड़ा हिचकिचा रहे
हैं। किसी ख़ास ख़बर का जुगाड़ हो जाए तो संवाददाता के इस काम में वह भी गंगा नहा
लेता, पर डकैत जी का मूड पलट गया है। कोई एक्सक्लूसिव, कोई ब्रेकिंग बात कह देते
डकैत जी, पर डकैत जी अचानक राजनैतिक व्यक्ति की तरह आचरण करने लगे हैं पता चला कि
स्टूडियो के गेट पर पुलिस आ गई है। अब एंकर को डकैत जी के स्थान पर पुलिस का हौव्वा
सता रहा है। आख़िर स्टूडियो के बाहर तो इनकी ही चलनी हैं।
१ अप्रैल २००७ |