जैसे ही इटली ने विजयी गोल दागा, मैंने फौरन इटली का नंबर डायल करके वहाँ के एक
बाशिंदे को बधाई पर बधाई दे डाली। इटली वाले बंदे ने बधाई कबूलते ही छक्का मारते
हुए कहा कि अगर भारत हमारा साथ नहीं देता तो फ्रांस जैसी ख़तरनाक टीम को हराना हमारे
बस में नहीं था। "लेकिन हमारा कोई खिलाड़ी तो आपके मुल्क की टीम में खेल नहीं रहा
था और न ही मैच के रैफरी साहेब हमारे मुल्क के थे। फिर हमारा आपकी टीम को जीताने
में भला क्या योगदान हो सकता है?" मैंने हैरानी जताते हुए कहा।
"क्या बात करते हो? पूरी सौ करोड़ की आबादी का आपका मुल्क हमें नैतिक सपोर्ट दे रहा
था! हमारी जीत के लिए आपके मुल्क में हवन हो रहे थे फ़ुटबाल की पूजा हो रही थी।
भारत देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों की धरती है और इस धरती पर इटली की जीत के लिए यज्ञ,
हवन और प्रार्थनाएँ होने से हमारे खिलाड़ियों की टाँगों को नई शक्ति, नई
ऊर्जा मिली और इसी ऊर्जा के चलते हमारे खिलाड़ी ने फुटबाल को लात मारकर फ्रांस के
गोल पोस्ट में घुसेड़ दिया। भारत में इतना कुछ नहीं होता तो इटली इतना कुछ कैसे
करता?" इटली के बाशिंदे ने नहले पर दहला मारते हुए जवाब दिया।
"लेकिन हमारा पूरा देश तो हवन कर नहीं रहा था। केवल वही लोग हवन करवाकर कैमरे के
सामने आहुतियाँ दे रहे थे जिन्होंने 'मैडम' को यह बताना था कि हम आपके पक्के
सपोर्टर हैं और अपनी स्वामीभक्ति का सबूत देने के लिए एक फुटबाल तो क्या, हज़ारों
फुटबालों की आहुतियाँ दे सकते हैं। एक यज्ञ तो क्या, गली-गली ऐसे यज्ञ करवा सकते
हैं। इस मुल्क में फुटबाल खेलने से नहीं बल्कि आहुतियाँ देने से काम हो सकता है।
इटली के खिलाड़ी हमारे हवन-पूजनों से नहीं बल्कि अपने दमखम से जीते, इसलिए हे इटली
के महान बाशिंदे, तुम हमारी बधाई और सलाम कबूल करो।" मैंने मोबाइल फ़ोन पर ही उसे
सलाम ठोक दिया।
"तुम कैसे अजीब इंडियन हो यार. . ." इटली के बाशिंदे ने अपनी बात अभी पूरी भी नहीं की
थी कि मैंने खीझकर फ़ोन काट दिया और मोबाइल स्विच ऑफ़ कर दिया। तभी कालबैल बजी। मैंने
दरवाज़ा खोला। सामने चकाचक सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने और हाथों में लड्डुओं का
डिब्बा लिए गली के ही एक सज्जन अपने चार-पाँच चंपुओं के साथ खड़े थे। छूटते ही
बोले, "सरदार जी बधाई हो, इटली ने मैदान फ़तह कर लिया। दिखा दिया कि इटली को कमज़ोर
मत समझो। इटली भी कोई मुल्क है और वक्त आने पर इटली कोई भी जलवा दिखा सकता है। आप
बस देखते जाइए। यह तो बस शुरुआत है!"
मैं हैरत से इस सज्जन के उत्साह को देख रहा था जो
पंच का चुनाव हारने के बाद गली की राजनीति में हाशिये पर चले गए थे। मेरी हैरत को
नज़रअंदाज़ करते हुए उन्होंने लड्डुओं का डिब्बा मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा कि "लीजिए मुँह मीठा कीजिए और कामना
कीजिए कि इटली के कदम यों ही आगे बढ़ते रहें।"
"क्या आपने ये लड्डू इटली से मँगवाए हैं?" मैंने उत्सुकता ज़ाहिर करते हुए पूछा।
"नहीं यह लड्डू इटली के नहीं, अपनी गली के हलवाई के हैं। मैंने तो उसी दिन एडवांस
में लड्डुओं का आर्डर दे दिया था, जिस दिन इटली की टीम फाइनल में पहुँची थी।" उसने
गदगद होते हुए कहा।
"लेकिन आप बेगानी शादी में अब्दुल्ला क्यों बने हैं? जीता तो इटली है और लड्डू आप
बाँट रहे हैं। आपको इससे भला क्या हासिल होगा?"
"देखिए, इटली हमारी मैडम का मायका है। इटली जीता है तो ज़ाहिर है मैडम बहुत खुश
होंगी और इस खुशी में अगर हम लड्डू बाँटेंगे तो मैडम की खुशी और बढ़ जाएगी। देखो,
मेरे साथ कैमरे वाला भी है। मैं लड्डू बाँट रहा हूँ, वह फ़ोटो खींच रहा है। दोपहर को
मैं कुछ पत्रकारों को लंच दे रहा हूँ और लगे हाथ एक छोटी-सी पत्रकार वार्ता भी कर
लूँगा। पत्रकारों को गिफ्ट में एक-एक फुटबाल भी दूँगा। कल की अख़बारों में देखना,
मेरी भरपूर कवरेज होगी और मैं इस कवरेज की एलबम बनाकर मैडम की कोठी पहुँच जाऊँगा।
खुशी के इस मौके पर भला मुझे कौन रोकेगा। मैं मैडम को बधाई भी दूँगा और उनके साथ
फोटू भी खिंचवाऊँगा। वापस लौटकर फिर एक प्रैस कांफ्रेंस और करूँगा और मैडम के साथ
खिंचवाया फोटू प्रैस को जारी कर दूँगा। अगले दिन जब अख़बार में मैडम से मेरी मुलाक़ात
और बातचीत का ब्यौरा छपेगा तो उसी तरह मेरे विरोधियों की हवा सरक जाएगी जैसे फाइनल
हारने के बाद फ्रांस की हवा सरक गई। अफ़सर भी मुझे सलाम ठोकते दिखेंगे।" वह
भावातिरेक में बोले जा रहा था।
"यानि इटली की जीत के बहाने आप अपना राजनीतिक हित साधना चाहते हैं और फुटबाल के खेल
से आपको कोई लेना-देना नहीं है?" मैंने उस पर तंज कसा।
मेरे इस कटाक्ष पर पहले तो वह हड़बड़ा गया। फिर सँभलते हुए बोला, "क्या बात करते हो
साहब? फुटबाल से अपुन को लगाव भला कैसे नहीं हैं? अपुन जैसा फुटबाल प्रेमी शायद ही
राजनीति में कोई होगा। जब से राजनीति में कदम रखा है, फुटबाल की तरह किकें खाते हुए
एक पार्टी से दूसरी पार्टी में उछल रहा हूँ। राजनीति में जब तक दूसरों के लिए
दरियाँ बिछाता रहा, तब तक तो हमें भाव मिलता रहा। लेकिन जब भी हम टिकट के तलबगार
हुए, फुटबाल की तरह किकें मारकर हमें राजनीति के मैदान से बाहर धकेल दिया गया। अब
इटली के विश्व चैंपियन बनते ही अपुन ने यह ठान लिया है कि फुटबाल की तरह किकें नहीं
खाएँगे बल्कि फुटबाल को सिर पर रखकर राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ेंगे और फिर इस फुटबाल
को विरोधियों के सिर पर मारेंगे।"
इससे पहले कि मैं उनसे और जिरह करता, वह सज्जन मेरे मुँह में लड्डू घुसेड़कर और इस
रस्म का फोटू खिंचवाकर पड़ोसी के घर की ओर चलते बने। मैं कितनी ही देर तक इस विषय
पर मंथन करता रहा कि 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनने' की परंपराएँ इस देश
में इतनी महान क्यों हैं और इन परंपराओं की जड़ें पाताल में कहाँ तक घुसी हैं? यहाँ कोई
पार्टी दक्षिण में चुनाव जीतती है तो पश्चिम में उस पार्टी के कार्यकर्ता नाच-नाच
कर अपनी टाँगे थका लेते हैं। शेयर बाज़ार उछलता है तो अपुन जैसे लोग खुशी से उछल
पड़ते हैं। भले ही अपुन के पल्ले धेला नहीं होता। इसी तरह शादी हमारी दोस्त की होती
है, घोड़ी पर वह चढ़ता है, हनीमून वह मनाता है, बच्चे का बाप वह बनता है और खुशी से
झूम-झूम हम उठते हैं, जैसे मुफ़्त में सारे रोमांच हमें मिले गए हों। अगर हम
इंडियंस के लिए बेगानी शादी में दीवाना होना ही लिखा है तो आइए आप भी लड्डू सुख
उठाइए इटली जीत गया है। लड्डू खाते हुए एक नारा हो जाए - 'इटली ज़िंदाबाद।'
24 जुलाई 2006
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