हास्य व्यंग्य | |
|
बुद्धिजीवी बनाम बुद्धूजीवी
|
|
हमारे एक मित्र हैं, निर्मलचंद उदास। उदास उनका तक़ल्लुस है, स्वभाव से निर्मल है। निर्मल और उदास दोनों ही धाराएँ उनके व्यक्तित्व में ऐसे समाहित हैं जैसे इलाहाबाद में गंगा-यमुना का संगम। लेखन में रुचि रखते हैं। कई ग्रंथ लिख चुके हैं मगर अभी तक वे अपनी गिनती न तो साहित्यकारों में करा पाए हैं और न ही बुद्धिजीवियों में। उनका सारा लिखा पढ़ा काग़ज़ काले करना ही साबित हुआ। हाँ, जिस प्रकाशक के यहाँ वे प्रूफ रीडरी कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं, उसकी गिनती अवश्य बुद्धिजीवियों में होती है। प्रकाशक महोदय साहित्य के क्षेत्र में भी दो-एक पुरस्कार हथियाने में सफल हो गए हैं। एक लंबे अर्से से हम इसी उधेड़-बुन में थे कि आख़िर बुद्धिजीवी होने का फंडा क्या
है। बैठे-ठाले एक दिन इस गुत्थी को सुलझाया हमारे पौत्र ने। खेल-खेल में उसने हमारी
तरफ़ निशाना साधा और एक सवाल दागा, "दादाजी, अकबर बुद्धिजीवी था या बीरबल?" ख़ैर, उसका सवाल हमने सहज भाव से लिया और सहज भाव से ही उसका जवाब दिया, "बेटे,
दोनों ही बुद्धिजीवी थे, बीरबल भी और अकबर भी।" हमारा जवाब सुन वह खिल-खिलाकर हँस दिया और इस बार शब्दों को अक्षरों के आकार तक
सीमित करते हुए बोला, "बुद्धू! अच्छा दादाजी, बताओ शेर ताकतवर होता है या रिंग
मास्टर?" हमारे इस बौद्धिक जवाब से खुश होकर उसने 'नासमझ' होने का गोल्ड मेडल हमारे सीने पर
चस्पा कर दिया और अभिनेता नाना पाटेकर के लहजे में टेढ़ी उँगली से अपनी बुद्धि की
चौखट खटखटाते हुए बोला, 'डैड, ताकत यहाँ होती है, बाहों में नहीं। शेर यदि ताकतवर
होता तो उसके इशारे पर रिंग मास्टर डांस करता, रिंग मास्टर के इशारे पर शेर नहीं।
कुछ समझे दादाश्री!' इस स्तर तक आते-आते हम समझ गए थे कि पौत्र की निगाह में बुद्धिजीवी कौन है। मगर
दादा होने के अहम भाव के कारण हम अकबर को बुद्धिजीवी कहने में अपनी हिमाक़त समझ रहे
थे। हम यह भी जानते थे कि पौत्र का जवाब हमारे अहम को घायल कर देगा, मगर महसूस यह
भी कर रहे थे कि पौत्र के अनुकूल सही जवाब अपने मुख से देने पर तो हमारा अहम मृत्यु
को ही प्राप्त हो जाएगा। अत: सुगढ़ व्यापारी की तरह नफ़े-नुकसान का आकलन करते हुए
हमने विनीत भाव से कहा, 'तुम्हीं बताओ पुत्र।' शांत व शालीन भाव से वह बोला, 'बीरबल यदि बुद्धिजीवी होता तो वही महान कहलाता, अकबर
नहीं, हिंदुस्तान बौद्धिक रूप से अब हम पूरी तरह मात खा चुके थे। डेढ़ बालीस्त के पैदने से छोरे ने
हमारी बुद्धि का दिवाला निकाल हमारी हथेली पर जो रख दिया था। मात खाने के बाद हमने
उससे पूछा, 'फिर बीरबल किस श्रेणी का जीव था।' हमारा अगला सवाल था, 'देश में बुद्धिजीवी शिरोमणि किसे मानते हो?' अब हमारे पास न कहने के लिए कुछ बचा था और न पूछने के लिए। इलेक्ट्रानिक पीढ़ी के सामने चर्खा पीढ़ी पूरी तरह नतमस्तक थी। 24 नवंबर 2006 |