नया साल!
कुछ शुभकामनाएँ मेरी तरफ़ से।
हम पिछले कई बरसों से दंगे, आगजनी, गोलीबारी,
कत्ले-आम झेलते-झेलते थक गए हैं। कम से कम इस बरस तो कोई दंगा, हड़ताल, बंद,
विस्फोट, तोड़-फोड़, दुर्घटना और कत्ले आम न हो (जो ऐसा करे, पहले उनका बीमा कराए
जो इनकी चपेट में आते हैं)
ओसामा बिन लादन मुख्य धारा में लौट आएँ। (भारत
उन्हें नागरिकता दे देगा और चुनाव लड़ने का अधिकार भी।)
अमेरिका कम से कम इस वर्ष तो दूसरों के फेंटे में टाँग अड़ाना बंद कर दें और
दूर-दराज के छोटे-छोटे देशों को उनके हाल पर छोड़ दें। सबको अपने-अपने तरीके से
जीने का हक है।
पेप्सी और कोला भारत से लौट जाएँ। उन्होंने अपने
कोल्ड ड्रिंक्स पीने वालों की शव यात्राओं तक को तो स्पांसर कर लिया। अब बाकी क्या
बचा है। ग्लोबल कंपनियाँ कुछ उत्पाद और रोज़ी-रोटी कमाने के मौके तो स्थानीय
उत्पादकों के लिए भी छोड़ दें।
चीन ने अब सब कुछ बना और बेच कर दिखा दिया। कुछ
दिन वे लोग आराम भी कर लें। (फुर्सत में इंडियन फ़िल्में देखें।) भारत को अब और
डंपिंग ग्राउंड बनाने से बख़्शा जाए।
अमिताभ बच्चन और सचिन तेंडुलकर एक आध विज्ञापन
दूसरों के लिए भी छोड़ दें। क्रिकेट को कम से कम एक वर्ष के लिए भारत में बैन कर
दिया जाए ताकि हम दूसरे ज़रूरी काम भी निपटा सकें।
अनिवासी भारतीय देश की संस्कृति, परंपरा और मिट्टी
के लिए घड़ियाली आँसू बहाना बंद कर दें और बदले में अपने ज्ञान, अनुभव और हुनर का
सिर्फ़ एक प्रतिशत भारत को लौटाने की सोचें। हमारा ज़्यादा भला होगा। (उन्हें भी
ज़्यादा मानसिक और आत्मिक शांति मिलेगी।)
टीवी पर रीमिक्सिंग और नंबर सांग के नाम पर नंगई
नाच बंद हो और कुछ दूसरे मुद्दों की भी सुध ली जाए। जिनके बच्चे नहीं हैं, उनके
बच्चे हों, (लड़कियाँ भी सहज स्वीकार्य हों, बहुएँ तो हों ही!) (जिनके हैं, उन्हें
अच्छे स्कूल में बिना डोनेशन के दाखिला मिले) बच्चों को दूध मिलें, (उन्हें अच्छा
लगे) दूध से पहले खाना भी मिले। स्कूलों में पढ़ाई भी हो और बच्चों का दिल भी लगे।
पढ़ाई के बाद नौकरी भी मिले और योग्यता के आधार पर मिले।
पानी आए, (सिर्फ़ नल से आए, आँख में भी बचा रहे)
आयकर की सीमा बढ़े, (लेकिन आयकर की दर न बढ़े) अगर बढ़े तो ईश्वर हमें ये सहने की
शक्ति दे।
हम नकली दवाइयाँ खा कर न मरें, डॉक्टर अपनी फीस कम करें और मरीज़ को इंसान समझें।
अस्पताल हों, नर्सें हों, लेकिन मरीज़ न हों।
हर पैर को जूता मिले, हर जूते को पालिश मिले और हर
पालिश वाले को काम मिले।
हर गंजे के सिर पर बाल आएँ लेकिन उसके नाखून न हों।
लोकल ट्रेन समय पर आए, उसमें घुसने भर को जगह मिल जाए, खिड़की वाली सीट मिले।
(झगड़ा न हो, जेब न कटे)।
बसों के किराये कम हों, रेल आरक्षण मिले, रेलें पहुँचें और सही जगह और सही वक्त पर
पहुँचें।
एअरलाइंस की खूब उड़ानें हों, वक्त पर हों और पाइलट बीच उड़ान में हड़ताल पर न चले
जाएँ। (अपहरण, दुर्घटनाएँ न हों)
महँगाई घटे (महँगाई भत्ता बढ़े)।
वेतन मान बढ़ें, एरियर्स मिलें। (बीवी को पता न चले)
राम को घर मिले और हर लड़की को बिना दहेज वर मिले।
हर हाथ को काम मिले और हर काम का दाम मिले।
दहेज और रिश्वत लेने वालों के हृदय परिवर्तन हों। (लेकिन देने वाले पहले की तरह
देते रहें)
नए तरीके से बहू जलाने वालों का सार्वजनिक अभिनंदन हो।
पेट्रोल और तेल सस्ते हों, कारें और भी सस्ती।
मौसम, मौसम विभाग की भविष्यवाणी के अनुरूप हों।
बारिश हो, समय पर हो, जहाँ ज़रूरत है वहीं हो और बाढ़, सूखा सिर्फ़ राजनैतिक
व्यवसाय न रहें।
दलाल दलाली छोड़ कर बापू आसाराम की शरण में जाएँ, हरि-भजन करें।
जो लिखते हैं, उनकी किताबें छपें। (कोर्स में लगें, पुरस्कृत हों)
कहानियाँ माँगी जाएँ, पारिश्रमिक मिले, बुलावे आएँ, प्रकाशक रायल्टी का अग्रिम चेक
भेजें। (समीक्षाएँ छपें और हमें पता ही न हो)
स्मारिका छापने वालों को विज्ञापन वाला खोजता फिरे।
समस्याएँ सुलझें, राजनीति केवल संसद में हो और
संसद में केवल राजनीति हो।
गली के कुत्ते सभ्य हों, सलीके से पेश आएँ।
गैस सिलिंडर आसानी से मिले और पूरा भरा हुआ मिले।
टेलिफ़ोन ठीक से काम करते रहें, सही नंबर मिलें और बिल भी सही आए। रांग नंबर न आएँ।
जिनके पास मोबाइल हैं, भगवान उन्हें इतनी सद्बुद्धि दे कि वे इसके इस्तेमाल के तौर
तरीके भी सीखें। (हर काम करते समय मोबाइल पर बात करना और मोबाइल पर बात करते समय हर
तरह के काम करना शोभा नहीं देता।)
एस. एम. एस. करने वाले भी सीखें कि जीवन के सारे कारोबार एस. एम. एस. से नहीं
निपटाए जा सकते।
हालाँकि पहले से तय है कि इस साल भी हमारी किस्मत
में वही कुछ बदा है जिसके हम बरसों से आदी रहे हैं। अख़बारों में (जीवन में भी) वही
बलात्कार, भ्रष्टाचार, चोरी, हत्याओं और कुकर्मों की ख़बरें रहेंगी, घोटाले होते
रहेंगे, अपराधों की जाँच करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ही अपराधों के दोषी पाए
जाते रहेंगे, लेकिन आँच किसी भी दोषी के चेहरे पर नहीं आएगी। अख़बार वाले चाहे
जितने पन्ने काले कर लें, कालिख किसी भी दोषी के चेहरे तक नहीं पहुँच पाएगी।
कम से कम भारत में टीवी के कार्यक्रमों में कोई
सुधार नहीं होने वाला बल्कि आप सॉफ्ट पोर्नो
फ़िल्मों और टीवी कार्यक्रमों में समानता पर घर बैठे शोध लिख सकेंगे।
नौकरशाह जनता की भाषा सीखें, बोलें भी, उनसे बतियाएँ भी। (उनके लिए काम भी करें)
कुछ तो ऐसे भी अफ़सर हों जो रिश्वत न लेते हों और अगर लेते हों तो पकड़े न जाएँ।
हर नदी और हर आँख में पानी हो।
संत महंत आश्रमों में लौट जाएँ और चोर डाकू अपने
व्यवसाय में। राजनीति सिर्फ़ पेशेवर राजनीतिज्ञों के लिए छोड़ दें।
इस देश में ग़रीब की भी सुनवाई हो और उसे भी इंसान का दर्जा दिया जाए।
जीवन जीने लायक लगे।
कुछ तो अच्छा लगे, कुछ तो प्यारा लगे।
जीवन में कुछ तो रस बचा रहे।
देश अपना-सा लगे और
यह वर्ष
यह वर्ष भी ठीक-ठाक गुज़र जाए।
16 जनवरी 2005
|