मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


'कुत्ते का गला काटने पर पच्चीस साल की सज़ा'
पढ़कर चौंकिए नहीं। यह श्रीमती मेनका गांधी जैसे मनुष्येतर जीवों के प्रेमी द्वारा संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले बिल का विषय नहीं है और न किसी नस्ली लैब्राडोर, एल्सेशियन या पोमेरियन के अप्रत्यक्ष विज्ञापन का शीर्षक। यह ''9 सितंबर 2004'' को 'दैनिक जागरण' में छपे समाचार का शीर्षक है। अब आप अनुमान लगाइए कि यह किस देश का समाचार हो सकता है। चूक गए न? यह किसी कुत्ताभक्त अफ्रीकी जनजाति वाले देश का समाचार नहीं है, वरन संसार के सबसे अग्रणी देश अमरीका के सैंटाना नगर का समाचार है।

भई! मैंने पत्रकारों को यह कहते तो सुना था कि कुत्ता अगर आदमी को काट ले तो कोई समाचार नहीं बनता है और आदमी अगर कुत्ते को काट ले तो चटपटा समाचार बन जाता है, परंतु यह किसी से नहीं सुना था कि आदमी अगर कुत्ते को मार दे तो समाचार बन जाता है। मैं तो जब छोटा था तो अपने साथियों के साथ मिलकर गाँव के कुत्तों को ईंट पत्थर मारता रहता था और मुझे कभी किसी ने नहीं टोका कि कुत्ते को मत मारो सज़ा हो सकती है। वरन टाइम-बेटाइम घर में घुस आने वाले और नज़र चूकने पर रसोई से रोटी मुँह में दबा ले जाने वाले कुत्ते को मारने के लिए मेरी माँ, भाभी आदि मुझे उत्साहित ही करतीं रहतीं थी। जब शहर पहुँचा तो देखा कि यहाँ तो ट्रक ड्राइवरों का सबसे प्यारा शौक दीन-दुनिया से बेख़बर सड़क पर सोने वाले कुत्तों को कुचलना ही है। मैंने तो कभी किसी ड्राइवर को उसके इस मनभावन खेल के लिए जेल जाते नहीं देखा है। ट्रक ड्राइवर ही क्या, अन्य चौपहिये वाहन वालों को भी किसी कुत्ते को बचाने मात्र के लिए अपनी गाड़ी की स्पीड़ कम करने में हार्दिक कष्ट होता है। पुलिस की जीप का एक ड्राइवर तो आराम फ़रमाते हुए कुत्तों को सड़क पर देखकर अविलंब जीप की स्पीड़ बढ़ा देता था।

कुत्तों के प्रति इस जुनूनी दुश्मनी का कारण मेरे द्वारा पूछने पर उसने कहा था, "क्या करें आदत पड़ गई है क्योंकि पहले वह एक ऐसे एस. पी. की ड्राइवरी कर चुका है जो सड़क पर मटरगश्ती करने वाले हर कुत्ते को कुचल देने पर तुरंत पाँच रुपए इनाम में दिया करते थे।" शहरों में सुबह-सुबह एक नज़ारा और देखने को मिलता है- मुँहअंधेरे टहलने हेतु निकलने वाले संभ्रांत बूढ़े लोग हाथ में छड़ी लिए बिना चलने फिरने में चाहे मुझ जैसे डालडा-छाप जवान की अपेक्षा अधिक समर्थ हों, पर रात भर भौं-भौं करके बौखलाए हुए कुत्तों के भय से हाथ में छड़ी ज़रूर रखते हैं। उनमें से शासकीय सेवाओं से निवृत्त हुए भद्रपुरुष अपने पुराने रसूख का फ़ायदा उठाकर म्यूनिसिपालिटी के अधिकारियों से कहकर कुत्ता पकड़ अभियान भी चलवा देते हैं। फिर म्यूनिसिपालिटी वाले कुत्तों को ऐसी बेरहमी से बोरों में भरकर ले जाते हैं कि आधे का दम तो रास्ते में ही घुट जाता होगा और बचे हुए कुत्तों को उनसे कोई सुइसाइड-नोट लिए बिना ही ज़हर मिला खाना खिला देते हैं। फिर भी मैंने कभी न तो इन ट्रक ड्राइवरों को और न म्युनिसिपालिटी वालों को सज़ा दिए जाने की बात सुनी है।

मैंने पढ़ रखा था कि कतिपय देशों में आदमियों को सींघ से घायल कर देने वाले बैलों, मुँह से काट लेने वाले कुत्तों, पैर से कुचल देने वाले हाथियों, और दुलत्ती मार देने वाले गदहों को वहाँ के न्यायालयों द्वारा सज़ा देने का कानून रहा है। ऐसे बदमुज़न्ना जानवरों को कोड़ों की सज़ा से लेकर सज़ाए-मौत भी दी जाती रही है। अत: इस समाचार पर जब मेरी निगाह पड़ी तो एकदम मेरे दिमाग़ में आया था कि संभवत: किसी देश के कानून के अनुसार किसी कुत्ते, जिसके काटने से कोई आदमी मर गया है, को ''25 साल'' की सज़ा हुई होगी, और उस समाचार को टाइपिस्ट ने उल्टा टाइप कर दिया है परंतु मुझे अमरीका जैसे 'समझदार' देश के कानून के विषय में अपनी अज्ञानता पर तब तरस आया जब समाचार को विस्तार से पढ़ा। सचमुच एक आदमी को एक कुत्ते का गला काट देने पर ''25 साल'' की सज़ा दी गई थी, जब कि अमरीका में हज़ारों हिरन, गाय, सुअर, भेड़, घोड़े, गदहे, मछली, घोंघे, आदि प्रतिदिन काटे और खाए जाते हैं और भारत की गायों की तरह वहाँ कुत्तों का कोई धार्मिक महत्व भी नहीं है।

हुआ यह था कि सैंटाना निवासी जेम्स अब्रेंथी साहब को मेरी नाम की एक लड़की से प्यार हो गया। जब दोनों तरफ़ से प्यार परवान चढ़ने लगा तो अब्रेंथी साहब ने अपनी प्रेमिका को प्रसन्न करने के उद्देश्य से अपनी पालतू कुतिया का नाम मेरी रख दिया। इससे न केवल मेरी पर सुप्रभाव पड़ा वरन अब्रेंथी साहब को दिन-रात अपनी प्रेमिका का नाम जुबान पर लाने का सुअवसर भी उपलब्ध हुआ। पर बिचारे को क्या पता था कि शीघ्र ही यह प्रेम-प्रकरण उन्हें ''25 साल'' की जेल की हवा खिलाने का कारण बन जाएगा। एक दिन मेरी का दिल किसी और दिलफेंक जवान पर आ गया, जिसके कारण जेम्स साहब और मेरी में खूब झगड़ा हुआ। जेम्स साहब कुपित और क्षोभित होकर घर लौटे, तो दरवाज़ा खोलते ही मेरी कुतिया उनसे लिपट-लिपट कर दुलराने लगी। जेम्स साहब अपनी प्रेमिका मेरी की बेवफ़ाई से भरे बैठे थे सो उन्होंने आव देखा न ताव और खाने की मेज़ से चाकू उठाकर मेरी कुतिया का गला रेत कर अपना बदला ले लिया। कुतिया की चीख सुनकर पड़ोसियों ने पुलिस को फ़ोन कर दिया और आनन-फानन में जेम्स साहब को जेल में डाल दिया गया। जेम्स साहब का दुर्भाग्य कि जिस न्यायालय में मुकदमा पहुँचा उसके जज साहब बड़े कुत्ता-प्रेमी निकले। उन्होंने कानून की किताब में लिखी ''25 साल'' की अधिकतम सज़ा में एक दिन भी कम किए बिना पूरी सज़ा दे दी। उन्हें यह भी लगा कि जेम्स साहब का जेल से बाहर रहना कुत्तों- ख़ासकर कुतियों के लिए बड़ा ख़तरा है, अत: ''25 साल'' की सज़ा के साथ यह शर्त भी लगा दी कि ''20 साल'' की सज़ा काटने से पहले उन्हें किसी भी आधार पर पैरोल (अल्पसमय के लिए जेल से बाहर रहने की अनुमति) नहीं दी जाएगी। जज साहब ने शायद अनुमान लगाया होगा कि बीस साल जेल में रहने के बाद वह प्रेम करने लायक ही नहीं रह जाएँगे, तो फिर कुतियों का गला काटने की परिस्थिति ही नहीं पैदा होगी।

मैं समझता हूँ कि इस घटना मात्र से भारत के प्रेमियों को अपनी कुतिया का नाम अपनी प्रेमिका के नाम पर रखने से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अभी तक कुतिया-संरक्षण का ऐसा कठोर कानून इस देश में नहीं है और न ऐसा कोई बिल संसद में लंबित हैं। हाँ, यह ख़तरा ज़रूर है कि भारतीय प्रेमिकाएँ अपना नाम कुतिया को दिया जाना शायद ही बरदाश्त कर पाएँ।

16 फरवरी 2005

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।