पता नहीं 'नाइन-इलेवन' शब्द-द्वय का संबंध किसी न किसी
दिल दहलाने वाली घटना से क्यों होता है। हिंदी में यह 'नौ दो
ग्यारह होना' का संक्षिप्त हैं और कोई आदमी नौ दो ग्यारह तभी
होता है, जब दिल दहला देने वाली परिस्थिति उपस्थित हो जाती
है। प्रायमरी स्कूल के मेरे अध्यापक ने इस मुहावरे का प्रयोग
इस प्रकार बताया था 'बिल्ली को देखकर चूहे नौ दो ग्यारह हो
जाते हैं।' - अब बिचारे नन्हें मुन्ने चूहों का दिल बिल्ली
को देखकर दहलेगा नहीं तो क्या बाग़-बाग़ होगा?
यद्यपि ये दोनों शब्द इंग्लिश भाषा के हैं तथापि 'नाइन-इलेवन' न तो इंग्लिश भाषा का कोई मुहावरा है और न इन
शब्द-द्वय का साझा अर्थ इंग्लिश की किसी डिक्शनरी में लिखा
मिलेगा, परंतु आजकल यह हर अमेरीकन की जुबान पर रहता है।
अमरीका में किसी वर्ष की तारीख़ लिखने के लिए पहले महीना
लिखा जाता है, फिर तारीख और तब सन। सितंबर ग्यारह, 2001 को
अमेरीकन इतिहास की सबसे दिल दहलाने वाली घटना घटित हुई थी -
विश्व की सबसे बड़ी शक्ति के सबसे ऊँचे एवं महत्वपूर्ण
स्तंभों को कुछ ही मिनटों में ध्वस्त कर दिया गया था। चूँकि
मानव स्वभाव है कि बुरी बात को बार-बार जुबान पर न लाया
जाए, अत: अमरीका में वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर की ट्वीन-टावर्स
के बर्बर ध्वस्तीकरण को 'नाइन-इलेविन' का नाम दे दिया गया
है। ''वर्ष 2002'' में ''9/11'' आने के पूर्व कई महीनों से इसके विषय
में इसी नाम से लेख, कवितायें और पुस्तकें तक छपती रही हैं।
''9/11'' के दिन में ''24 घंटे'' टी. वी. पर जो कार्यक्रम प्रसारित
होते रहे, उनमें और राष्ट्रपति के भाषणों में इसे ''9/11'' ही
कहा गया।
9/11 का यह प्रयोग अमरीका वालों के लिए नया हो, ऐसी बात
नहीं हैं। यहाँ कोई भी मुसीबत आने पर - चाहे बदमाशों का हमला
हो, अथवा अग्नि का प्रकोप हो, या मेडिकल इमरजेंसी हो -
टेलीफ़ोन पर ''911 नंबर'' दबा देने पर मिनटों में अलादीन के
जिन्न की तरह पुलिस, फायर-ब्रिगेड, या एंबुलेंस उपस्थित हो
जाते हैं। मैं व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ कि प्रकट होने
में ऐसी तत्परता तो अलादीन का जिन्न भी नहीं दिखाता होगा -
जब मैं नया-नया अमरीका गया हुआ था तो एक दिन दिल्ली का नंबर
मिलाते समय मैं त्रुटिवश भारत के कोड को ''01191'' की जगह
''09111''
मिला गया, तो देखता क्या हूँ कि ''4-5 मिनट'' में कार से उतरकर
एक पुलिसवाला मेरे घर का दरवाज़ा खटखटा रहा है। मुझे अपनी
ग़लती का स्पष्टीकरण देने में संकोच हो रहा था और वह बेचारा
मुझे आश्वस्त कर रहा था कि उसे स्थिति को चेक करने हेतु आना
आवश्यक था क्योंकि हो सकता है कि बदमाश के भय से घबराहट में
कोई ''911'' के अतिरिक्त और नंबर भी दबा जाए। पर अमरीकन लोग
इसे नाइन-इलेविन न कहकर नाइन-वन-वन कहते हैं - उनके लिए
पहला भूत है और दूसरा भगवान।
पर नाइन-वन-वन सदैव भगवान विष्णु के सौम्य स्वरूप में ही
आए, ऐसा भी नहीं है। कभी-कभी भगवान शंकर के रौद्ररूप मे भी
आता है। एक महिला की बिल्ली बीमार हो गई तो उसने ''911'' को यह
कहकर बुला लिया कि उसकी पुत्री गंभीर दशा में हैं।
एंबुलेंस आने पर उसने कहा कि चूँकि वह अपनी बिल्ली को अपनी
पुत्री की तरह प्यार करती है, अत: उसने पुत्री कह दिया था।
एंबुलेंस ने उसकी 'पुत्री' को बिल्लियों के अस्पताल तो पहुँच
दिया,परंतु उस महिला पर ''911'' के दुरूपयोग हेतु केस कर
दिया जिसमें उसे ''500 डालर'' जुर्माना और 6 माह की सज़ा भी होने
की संभावना है।
यहाँ स्कूल में बच्चों को सिखाया जाता है कि तुम्हारे माता
पिता को तुम्हें मारने का कोई अधिकार नहीं है और अगर कभी वे
ऐसी गुस्ताख़ी करें तो तुम अविलंब ''911'' को फ़ोन कर दो। फिर
तमाशा देखो-पुलिस न केवल तुम्हें उनसे बचाएगी वरन उन्हें
पकड़कर उनकी ऐसी तैसी भी कर देगी। इस कारण अमरीका में माँ-बाप
प्राय: अपने जायों से भयभीत रहते हैं और बच्चों को कभी भी
अकेला छोड़ने से पहले गॉड से प्रेयर करते हें कि बच्चा
''911''
से शिकायत न कर दे।
हाल के एक प्रकरण में एक महिला अपनी चार साल की बेटी के साथ
एक डिपार्टमेंटल स्टोर में सामान ख़रीदने गई थी। वहाँ उसकी
प्यारी बिटिया ने उधम मचाया, जिस पर उसकी मम्मी जलभुन गईं
पर सबके सामने खून का घूँट पीकर रह गईं। स्टोर से बाहर
निकलकर मम्मी ने बिटिया को कार के अंदर कर दिया और उसका
दरवाज़ा बंद करने के पहले अपने दायें-बायें देखा कि कोई देख
तो नहीं रहा है। फिर खुला मैदान पाकर बिटिया को जमकर चपतयाया
और हिलाया डुलाया। अपने गुस्से में मम्मी यह भूल गईं कि सभी
बड़े स्टोरों के अंदर ही नहीं बाहर भी चोरों को
पकड़ने हेतु कैमरे लगे रहते हैं। अंदर सिक्योरिटी वाले ने
बिटिया की बेभाव धुनाई को स्क्रीन पर देखा और ''911'' को टेलीफ़ोन
कर दिया। बस पुलिस हरकत में आ गई और उसने बिटिया को माँ से
लेकर अनाथालय में रख दिया है और मम्मी पर बच्ची पर अत्याचार
का अभियोग चला दिया है। यद्यपि बच्ची के मेडिकल इग्ज़ामिनेशन
में उसके बदन पर कोई चोट नहीं पाई गई है और बच्ची की माँ
अनेकों बार रो-रो कर अपनी ग़लती टी.वी. एवं कचहरी में स्वीकार
कर चुकी है परंतु उसके सिर पर तीन वर्ष तक की जेल होने और/या
बच्ची को तब तक के लिए उससे अलग कर दिए जाने की सज़ा मिलने
का ख़तरा मंडरा रहा है।
रोती हुई माँ को टी.वी. पर देखकर दयावश कई अन्य व्यक्तियों
एवं लड़कियों ने माँ के पक्ष में टी.वी. पर बयान दिया है, पर
यहाँ सबका अनुमान है कि अगले महीने दिए जाने वाले अपने
फ़ैसले में न्यायालय अवश्य कुछ न कुछ दंड देगा। मैं सोचता हूँ
कि अच्छा है कि भारत में अमरीकन कानून और नाइन-वन-वन नहीं
हैं, नहीं तो भारत के माँ-बाप बार-बार जेल की हवा खा रहे
होते।
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