चंदन घिसना और तिलक लगाना हमारी प्राचीन परंपरा रही है।
महात्मा तुलसीदास जी ने भी लिखा है,
"चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीर,
तुलसिदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुबीर"
अब हमने बदले युग में चंदन के अर्थ, उसके घिसने की विधि एवं
लगाने के उद्देश्य में बड़ा लाभदायक परिवर्तन कर लिया है।
तुलसीदास जी चंदन घिसते थे सिलबट्टे पर और श्री रामचंद्र
तिलक लगाते थे साधुओं के मस्तक पर, पर आज के तुलसीराम चंदन
घिसते हैं सरकारी माल का अथवा नोटों की गड्डियों का और उसका
तिलक लगाते हैं स्वयं के माथे पर या किसी बहिन जी या भाईसाहब
के चरणों में। पहले चंदन लगाने से प्राप्त होता था कोरा
आशीर्वाद और आज प्राप्त होते हैं सुखसाधन, वांछित कुर्सी या
चुनावी टिकट।
इस देश में निर्धनता और भुखमरी सदियों तक रही है - एसे में
गाढ़े समय के लिए बचाकर रखने की भावना हम में होना
स्वाभाविक ही है। पर हमारी बचत की यह प्रवृत्ति अपनी चीज़
बचाने तक ही सीमित है - अपनी चीज़ के लिए हम किफ़ायतशीर और
कंजूसी के फ़र्क को आदतन भूले रहते हैं। बहुत से पैसे वाले
लोग भी रूखा-सूखा खाकर अपना धन बचाने और बेगारी, सूदखोरी आदि
के माध्यम से दूसरों का खून चूसकर अपनी तिजोरी भरने में अपने
संपूर्ण बुद्धि-चातुर्य का सदुपयोग करते रहते हैं। परंतु
यदि माल सरकारी हो या पराया हो तो दोनों हाथ उलीचने में हम
रंचमात्र भी नहीं हिचकते हैं।
हमारे शासकीय एवं प्रशासकीय अधिकारी भी सरकारी चंदन घिसने
में बेमिसाल दरियादिली बरतते हैं। सौभाग्यवश मुझे इस
दरियादिली का आनंद उठाने का अवसर एक बार प्राप्त हो चुका है।
मेरे एक मित्र प्रशासकीय सेवा में हैं, उनके बच्चे के
जन्मदिवस के एक दिन पहले मैं ट्रेन से उनके यहाँ गया था।
रेलवे स्टेशन पर साफाधारी चपरासी और चमचमाती ऐंबेसेडर कार
देखकर मन गदगद हो गया था परंतु उनके बंगले की शान देखकर मुझे
उनका मित्र होने पर अपने पर बड़ा गर्व भी हुआ। उनके महल समान
बंगले को ठंडा रखने के लिए तीन ए.सी. और एक कूलर लगे हुए
थे जिनकी विद्युत का बिल स्टेनो बाबू बड़ी सफ़ाई से कार्यालय
के बिल में भिड़ा देते थे। आवागमन की सुविधा हेतु तीन कारें
और एक जिप्सी थीं, जिनके विषय में भाभी जी ने स्वयं बात
छेड़कर बताया कि एक कार जिलाधिकारी होने के नाते, एक
जिला-परिषद अध्यक्ष के नाते, एक कार तथा जिप्सी चीनी मिल के
अध्यक्ष होने के नाते ड्यूटी पर लगी है। उन कारों में कोई
बेकार खड़ी नहीं थी - यदि एक गाड़ी बीमार कुतिया को लेकर
घोड़ा अस्पताल जा रही थी तो दूसरी मुन्ने के लिए डिब्बे का
दूध ख़रीदने। रात में मित्र महोदय मुझे ब्रिज खिलाने क्लब में
ले गए। वहाँ उनकी सिगरेट समाप्त हो जाने पर सरकारी गाड़ी
भेजकर सिगरेट मँगाई गई। उस सिगरेट के क्रय में हुए व्यय का
अनुमान लगाकर मैं, जो कि सिगरेट नहीं पीता था, ने भी एक
सिगरेट सुलगाकर उसके दो-चार फूँक मारे। दूसरे दिन मित्र
महोदय मुझे अपने कार्यालय ले गए। घुसते ही मेरी आत्मा जुड़ा
गई, क्योंकि चपरासी ने दोनों ए.सी. एक घंटे पहले से खोल रखे
थे। बातचीत में एक अन्य मित्र का ज़िक्र आने पर मेरे मित्र ने
बताया कि वह आजकल बंगलौर में हैं। फिर उन्होंने अविलंब बज़र
बजाकर फ़ोन पर उससे बात कराने का आदेश दे दिया। दस-पंद्रह
मिनट उससे दिल खोलकर बात करने के बाद वह बोले, "आई हॅव ए
सरप्राइज़ फौर यू।" और फ़ोन मुझे पकड़ा दिया।
बर्थ डे वाले दिन सुबह से पार्टी के लिए कुछ बनता-वनता दिखाई
नहीं दे रहा था। पर धूप ढले मैंने देखा कि तहसीलदार साहब के
निर्देशन में टेंटवाला, बिजलीवाला, मिठाईवाला, होटलवाला आदि
तमाम लोग लान को सजाने और मिठाई, पकवान, फलों आदि से लादने
में जुटे हुए थे। मैंने तो ब्याह शादियों में भी ऐसा भव्य
प्रबंध होते नहीं देखा था और मुझे अपने मित्र की दरियादिली
पर गर्व के साथ रश्क भी हो रहा था।
आजकल मेरे यह मित्र केंद्र शासन में सचिव पद को सुशोभित कर
रहे हैं। फ़ोन पर भी मुझे कम ही मिल पाते हैं - बस भाभी जी से
बात कर पता चलता है कि अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया,
जापान या साइबेरिया गए हुए हैं। यद्यपि मित्र महाशय का
विज्ञान से कभी कोई वास्ता नहीं रहा है परंतु वैज्ञानिकों के
विदेश जाने पर उनके नेतृत्व का गुरुत्तर भार अपने कंधों से
कभी नहीं उतरने देते हैं। उनके मंत्री महोदय आर्टस साइड से
बी.ए. फेल हैं परंतु पालिटिक्स में पी-एच.डी. हैं। जब भी
पालिटिक्स करने एवं पैसा बटोरने से फुरसत मिलती है वह भी
गुयाना में गन्ने की नस्ल के विकास, नासा में नौकायान की
संभावना अथवा होनोलूलू में हिंदी के प्रसार हेतु वायुयान
से फुर्र हो जाते हैं।
मेरे विचार से यदि किसी
व्यक्ति को शासन अथवा प्रशासन में प्रगति पथ पर अग्रसर देखना
हो तो उसे घुट्टी में "मुफ़्त को
चंदन, घिस मेरे नंदन" का मंत्र अवश्य पिलाया जाना चाहिए।
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