हास्य व्यंग्य |
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मनीप्लांट |
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पत्नी की इच्छा थी कि घर में मनीप्लांट लगाया जाए। इच्छाएँ तो उसकी अनंत थीं, जैसे बंगला बनवाया जाए, कार ख़रीदी जाए, कुत्ता रखा जाए, बच्चों को पब्लिक स्कूल में भर्ती कराया जाए, अपने बाल कटाए जाएँ, पति के बाल बढ़वाएँ जाएँ। लेकिन जानती थी कि ये सभी बातें असंभव हैं। उसका पति न मंत्री है, न संत्री। न ही प्रवचन देने वाला धर्म गुरु। फिर भला उसकी इतनी इच्छाएँ क्यों कर पूरी होंगी! उसने एक कुत्ता रखा था। देसी नस्ल का। जो किसी को रास नहीं आया। उसे भी नहीं। चाहती थी कि विदेशी नस्ल का कुत्ता रखे। पर कुत्ते की कीमत पति की महीने भर की पगार से भी ज़्यादा होने से उसने पति रखना ही उत्तम समझा। देसी कुत्ता कहीं भी मुँह मारता था। घर छोड़ कर भाग जाता था। बाद में खुद ही पूँछ हिलाता वापस आ जाता था। पत्नी ने कहा, ''बिलकुल तुम पर गया है। एक ही स्वभाव के दो लोगों को घर में नहीं रख सकती।'' किसी ने पत्नी को बताया कि मनीप्लांट माँग कर या
ख़रीद कर नहीं, चुरा कर लगाया जाए, तो फलता–फूलता है। मैंने सोचा पैसा भी चोरी से
ही फलता–फूलता है। पत्नी ने आदेश दिया कि मनीप्लांट कहीं से भी चुरा लाओ। मैंने
कहा, ''भागवान! यही आदत होती तो तुम्हारी अनंत इच्छाएँ पूरी नहीं कर देता। बंगला
होता, कार होती, कुत्ता होता, तो मनीप्लांट भी आपने आप होता।'' ''मनीप्लांट तुम ही चुराओगे। बस! आगे मैं कुछ नहीं
जानती।'' उस समय वह मुझे कैकयी, मंथरा और द्रौपदी की तरह दिखाई दी। कोपभवन में उसने
अपने केश बिखरा दिए थे, जो मेरे मनीप्लांट चुराने के उपरांत ही पुन: सजने वाले थे। रामखिलावन एक पुजारी के पड़ोस में रहता था। सो उसने इनकार नहीं किया। उसने कहा, ''चोरी वह होती है, जो पकड़ी जाए। तुम कैसी चोरी करना चाहते हो? बिजली की चोरी, सरकारी फ़ोन से कॉल की चोरी, कर की चोरी, ऑफ़िस स्टेशनरी की चोरी, सरकारी वाहन के दुरुपयोग की चोरी या पैसे की चोरी? पैसे की सीधी चोरी को छोड़ दिया जाए, तो बाकी की चोरियाँ, चोरी की श्रेणी में नहीं आतीं।'' ''तुम्हारे घर के सामने कार्यालय का वाहन खड़ा रहे।
तुम्हारे बीबी–बच्चों को निजी कामों के लिए सरकारी वाहन की सवारी प्राप्त हो, तो
समाज में तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ती है। तुम कैसी चोरी करना चाहते हो?'' मुझे मौन देखकर रामखिलावन ने योजना बताई, पड़ोस के
चार–पाँच घरों के बाद पाठक जी का बंगला था। जहाँ मनीप्लांट नेताओं की तरह यत्र–तत्र
सर्वत्र बिखरा था। तय हुआ कि मैं और रामखिलावन रात के अंधेरे में बंगले को जाएँगे।
रामखिलावन पहरा देगा और मैं गेट की ओर लटक रहे मनीप्लांट की एक डाल चुपके से काट
लूँगा। पत्नी मनीप्लांट को रोज़ प्यार से निहारती थी। एक
दिन वह मुझसे बोली, ''सुनो जी! मुझे लगता है मनीप्लांट मुरझा रहा है।'' मैंने पत्नी की तरफ़ निराशा से देखा, तो पड़ोसी
बोला, ''पहले काले पैसे की डाल तोड़ना सीखो तभी यह पेड़ बढ़ेगा।'' |