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                      प्रीतम जब होस्टल पहुँचे तो सब दरवाजे बंद हो चुके थे। वे पीछे की 
                      दीवार फाँद अंदर दाखिल हुए कि वार्डेन साहब के कुत्ते मोती 
                      ने उन पर हमला कर दिया। मोती से प्रीतम का बैर पुराना था। 
                      प्रीतम ने मोती के लिए तैयार तोहफा एक एटमबमनुमा पटाखा 
                      निकाला और अपने लाइटर से उसे जलाकर मोती पर फेंक दिया। पटाखा 
                      दुर्भाग्य से मोती की दुम पर गिरा और एक जोरदार धमाके की 
                      आवाज के साथ मोती किकियाता हुआ सीधा वार्डेन साहब की कोठी की 
                      ओर भागा। प्रीतम ने एक ढेला अपनी खिड़की पर फेंका और प्रशांत 
                      ने¸ जो प्रीतम के परम मित्र थे और साथ ही रूम–पार्टनर भी¸ 
                      दुमंजिले से खिड़की खोलकर वह रस्सी की सीढ़ी नीचे फेंकी जो 
                      प्रीतम विशेष रूप से आधी रात को लौटने के लिए डिस्ट्रिक्ट 
                      जेल के कैदियों से बनवा लाए थे। प्रीतम जल्दी – जल्दी सीढ़ी 
                      चढ़कर ऊपर पहूँचे और खिड़की बंद करके सीधे अपनी रजाई में घुस 
                      गए।
 प्रीतम ने रजाई में लेटे–लेटे सुना कि होस्टल के कंपाऊंड 
                      में चहलकदमी हो रही है। मोती की किकियाहट सुनाई पड़ रही थी और 
                      साथ ही साथ वार्डेन साहब का घबड़ाया हुआ क्रोधित स्वर। धमाके 
                      की आवाज से लगभग पूरा होस्टल जाग उठा था और सभी लड़के बाहर 
                      निकल रहे थे। वार्डेन साहब कह रहे थे¸ जरूर कोई चोर था 
                      जिसने गोली चलाई। मोती बच गया¸ दुम से छूती हुई गोली निकली 
                      है और दुम झुलस गई है। मैं अभी पुलिस को बुलवाता हूँ। लड़के 
                      भी अपनी–अपनी राय दे रहे थे। प्रशांत ने प्रीतम से पूछा कि 
                      इतनी जोर की आवाज कैसे हुई¸ तो प्रीतम ने बताया कि वह 
                      एटमबम–पटाखों की एक पूरी पेटी उन्नाव से ले आए थे और आज उसका 
                      प्रथम प्रयोग हुआ था। प्रशांत ने सलाह दी कि दोनों मित्रों 
                      को भी नीचे जाकर वार्डन साहब से सहानुभूति प्रकट करनी चाहिए। 
                      प्रीतम ने घरेलू कपड़े पहने और दोनों मित्र नीचे पहुँचे।
 
 प्रीतम ने कहा¸ मैंने तो समझा कहीं तोप छूट गई है गलती से। 
                      क्या मोती को चोट ज्यादा आई है? मोती प्रीतम को देखते ही 
                      दुबक कर वार्डेन साहब के बँगले की तरफ भागा। दहशत खा गया 
                      बेचारा! प्रीतम बोले। इसके कान की परीक्षा ली जानी चाहिए। 
                      कहीं धमाके की आवाज से बहरा न हो गया हो? प्रशांत ने सलाह 
                      दी। एक पटाखा लाया गया तो मोती के कान के पास दागा गया¸ पर 
                      मोती टस से मस न हुआ। वार्डेन साहब को मोती के बहरे होने का 
                      दु:ख हो रहा 
                      था। अब कभी मोती बुलाने से नहीं आएगा। वे रूआँसे होकर 
                      बोले। घबराइए मत¸ प्रीतम बोले¸ मैं डाक्टर बागड़ी से कहकर 
                      मोती को हियरिंग–एड बनवा दूँगा। कहिए तो मैं इसकी आँखे भी 
                      टेस्ट करा दूँ। डाक्टर छाबड़ा मेरी बात नहीं टाल सकते। कल मैं 
                      मोती को ले आऊंगा। वार्डेन साहब से हाथ मिलाया और अपनी जेब 
                      से सिगरेट का पैकेट निकालकर उनको जब सिगरेट ऑफर की तब 
                      प्रशांत और सभी लड़के घबराए कि वार्डेन साहब नाराज होंगे¸ 
                      परंतु प्रीतम ने अपनी सिगरेट–लाइटर से उनकी सिगरेट भी जलाई। 
                      इसे मेरे भाई वेनिस से लाए थे¸ प्रीतम ने कहा।
 
 दूसरे दिन प्रीतम और प्रशांत मोती को लेकर डॉक्टर बागड़ी के 
                      घर पर पहूँचे। डॉक्टर साहब सो रहे थे¸ पर प्रीतम ने 
                      चिल्ला–चिल्लाकर और मोती ने किकियाकर डॉक्टर बागड़ी को जगा 
                      दिया। जब डॉक्टर साहब बड़बड़ाते हुए आए तो प्रीतम ने उनका हाथ 
                      जबरदस्ती पकड़कर उसे कसकर और देर तक हिला–हिलाकर 'गुड 
                      मॉर्निंग' किया। डॉक्टर साहब की नींद इस हाथ मिलाने की 
                      प्रक्रिया से समाप्त हो चुकी थी¸ पर नींद का स्थान एक 
                      झूँझलाहट ने ले लिया था। तभी उन्होंने मोती को देखा और देखते 
                      ही वे बौखला गए¸ यहाँ यह कैसे आया? किसकी शामत आई है कि इस 
                      कुत्ते के बच्चे को ले आया है? अभी निकालो¸ वरना मैं बंद 
                      करवा दूँगा।
 डॉक्टर साहब¸ गरम मत होइए। यह आपका ग्राहक – मेरा मतलब है 
                      मरीज है¸ प्रीतम बोले। निकल जाओ¸ अभी निकल जाओ। सुबह–सुबह 
                      इस चिमिरपिलिए की शक्ल देखी है। दिन भर न जाने क्या होगा। 
                      घोड़ा–डाक्टर समझ रखा है? डॉक्टर बागड़ी आपे से बाहर हो रहे 
                      थे। देखिए¸ डॉक्टर बागड़ी¸ प्रीतम ने कहा¸ मैं जानता हूँ 
                      कि आप घोड़ा डाक्टर नहीं हैं और शहर के सबसे बड़े कान के 
                      डाक्टर है। यह कुत्ता भी कोई मामूली नहीं हैं¸ यह तो कहिए 
                      बहरा हो गया है और इसे मालूम नहीं है कि आप क्या कह रहे हैं¸ 
                      वरना अभी तक आपकी खैरियत न रहतीं। खैर¸ इसके कान के लिए एक 
                      हियरिंग–एड का प्रबंध करना है।
 यह क्या मजाक है¸  डॉक्टर बोले¸ कुत्ते के लिए 
                      हियरिंग–एड? तुम्हें मालूम है मेरी फीस कितनी है?
 जी हाँ¸ तीस रूपए। कुत्ते के लिए मैं आपको मुआवजे के रूप 
                      में पंद्रह रूपये और दे दूँगा। और कुछ? प्रीतम ने पूछा।
 बस और कुछ नहीं¸ पर¸ पर इसके कान के बहरेपन को मैं जानूँगा 
                      कैसे? यह तो पहला केस है। डाक्टर की बात पर प्रीतम मुसकराए¸ 
                       वह मैं आपको बता दूँगा। अंदर चलिए।
 पर इस मामले में मुझे एडवांस चाहिए¸ डॉक्टर को अभी भी फीस 
                      के पाने का विश्वास नहीं था।
 
 प्रीतम ने अग्रिम फीस दी और मोती तथा प्रशांत के साथ डॉक्टर 
                      के प्रयोगकक्ष में दाखिल हुए। देखिए¸ प्रीतम ने कहा¸ मोती 
                      के कान में पहले शू: करके देखा जाए। जितनी आवाज की तेजी होगी 
                      उतना ही उसका कान खराब होगा। डॉक्टर मान गए। पहले प्रीतम ने 
                      धीरे से कहा¸ पर मोती चुपचाप बैठा रहा। फिर जोर से चिल्लाए¸ 
                      पर मोती तो जैसे कुछ सोच रहा था। जब प्रीतम उसके कान में जोर 
                      से चीखे तब भी वह मौन रहा।
 तो प्रीतम बोले कि कान ज्यादा खराब है। क्या आपके पास 
                      रेडियो है? डॉक्टर का रेडियो जब पूरी तेजी से बजा तब मोती 
                      ने दुम हिलाई और रेडियो को सूँघने लगा।
 बस¸ प्रीतम चिल्लाए¸ अब सुन रहा है। इतनी ही तेजी मशीन 
                      में होनी चाहिए।
 डाक्टर बागड़ी ने बड़ी मुश्किल से मोती को हियरिंग–एड पहनाया 
                      और प्रीतम तथा प्रशांत वहाँ से निकले।
 
 अब डॉक्टर छाबड़ा के यहाँ आँखें दिखाएँगे इसकी¸ प्रीतम ने 
                      कहा।
 अब मुझे और फजीहत नहीं करानी है¸ प्रशांत ने कहा।
 घबराओ मत प्रीतम बोले डॉक्टर छाबड़ा मेरे मित्र हैं।
 दोनों मित्र डॉक्टर छाबड़ा के यहाँ गए।
 कहो डॉक्टर¸ क्या हाल है? प्रीतम बोले।
 डॉक्टर छाबड़ा ने प्रीतम को गौर से देखा¸ क्या आँखें फिर 
                      कमजोर हो गई हैं?
 डाक्टर ने पूछा¸ क्या नंबर और बढ़वाना है ऐनक का?
 नहीं डाक्टर¸ अभी तो यह ऐनक काम कर रही हैं। आज एक नया मरीज 
                      लाया हूँ – मोती¸ प्रीतम बोले।
 हैय¸ डॉक्टर चौंके¸ यह कुत्ता? मेरा मरीज?
 जी हाँ¸ प्रीतम ने कहा¸ इसकी आँखें टेस्ट करनी हैं।  
                      फीस और ऐनक का खर्चा पूरा मिलेगा आपको।
 पर टेस्ट कैसे करूँगा? इसका साधन तो अभी तक जानवरों के 
                      डॉक्टरों के पास भी नहीं हैं। डाक्टर छाबड़ा ने कुछ सोचते 
                      हुए कहा।
 यह आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिए¸ प्रीतम बोले।
 
 एक बिल्ली लाई गई। उसे एक पटरे पर बाँधकर बैठा दिया गया। 
                      पहले बिल्ली को काफी दूर रखा गया¸ करीब बीस फीट की दूरी पर¸ 
                      परंतु मोती बैठा रहा।  प्रीतम की हिदायतों के अनुसार 
                      बिल्ली दस फीट निकट आई तो माती ने धीरे–धीरे गुर्राना आरंभ 
                      किया।
 नोट कीजिए डॉक्टर दस फीट से दिखना आरंभ हुआ।  प्रीतम 
                      बोले। डॉक्टर ने नोट किया। जब बिल्ली करीब सात फीट रह गई तभी 
                      मोती झपटा और प्रीतम चिल्लाए¸
 सात फीट पर स्पष्ट दीखता है इसे। डॉक्टर ने नोट किया।
 डॉक्टर छाबड़ा ने बड़ी तत्परता से मोती के लिए चश्मा तैयार 
                      किया तथा उसमें विशेष प्रकार की कमानी लगाई जो मोती की गर्दन 
                      में बाँध दी गई। अब मोती एक बुजुर्ग कुत्ता मालूम हो रहा था 
                      और चारों ओर बड़ी उत्सुकता से देख रहा था तथा साथ ही उसके कान 
                      भी खड़े थे।
 
 वार्डेन साहब के घर जब मोती पहुँचा तो उसे देखकर वे प्रसन्न 
                      हुए।
 ऐं? वे एकाएक चौंक पड़े¸ दुम? इसकी दुम कहाँ गई? वे 
                      बौखलाए हुए चिल्लाए।
 प्रीतम मुसकराए¸ बात यह है कि डॉक्टर घोड़े–पड़े मशहूर 
                      जानवरों के डॉक्टर की सलाह से मैंने दुम जड़ से कटवा दी है। 
                      यह काम बिलकुल फ्री यानी फोकट में हो गया है।
 निकल जाओ यहाँ से¸ वार्डेन चिल्लाए¸ गेट आऊट – मेरे 
                      कुत्ते की ब्यूटी जाती रही। मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना 
                      चाहता। हाय मोती¸ तू अब दुमकटा कुत्ता कहलाएगा। तू अब दुम 
                      कभी नहीं हिलाएगा।
 आप घबराइए नहीं¸ प्रीतम इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थे¸ 
                      कहिए तो अभी इसे ले जाऊँ और दुम लगवा लाऊँ। वैसे मेरे ख्याल 
                      से जख्म भरते ही दुम फिर से उग आएगी¸ प्रीतम घबराहट में कह 
                      गए।
 व्हाट नानसेंस¸ वार्डेन साहब गुस्से में चिल्लाए¸ निकलते 
                      हो या चपरासी को बुलाऊँ।
 
 प्रीतम और प्रशांत वार्डेन साहब के यहाँ से लौट आए। प्रशांत 
                      लगातार प्रीतम को डाँटता रहा और प्रीतम चुपचाप प्रशांत की 
                      बातें उदास भाव से सुनते रहे। कमरे में आकर प्रीतम सो गए और 
                      प्रशांत अपना मूड ठीक करने के लिए पिक्चर चला गया। जब प्रीतम 
                      की आँख खुली तो अँधेरा हो गया था और कोई उनका दरवाजा जोर–जोर 
                      से पीट रहा था। प्रीतम समझ गए कि कैंटीनवालों का बदतमीज नौकर 
                      होगा जो बाकी पैसे माँगने रात को ही आता है। नींद टूटने का 
                      गुस्सा भी प्रीतम को था।
 लेटे लेटे ही लेटे प्रीतम ने पूछा¸ अरे कौन उल्लू का पठ्ठा 
                      है जो जाहिलों की तरह दरवाजा पीट रहा है?
 उत्तर में प्रीतम को अपने पूज्य चाचा जी पंडित परमसुख पांडे 
                      का चिर–परिचित स्वर सुनाई पड़ा : हरामजादे¸ इसीलिए तुझे 
                      कॉलेज में पढ़ने भेजा था? खोल दरवाजा¸ नहीं तो तोड़ता हूँ।
 
 प्रीतम की जान सूख गई।  इस पूरी धरती पर अगर प्रीतम 
                      किसी से डरते थे तो वह थे पंडित परमसुख जो कानपुर में तंबाकू 
                      का व्यापार करते थे और प्रीतम की पढ़ाई का पूरा खर्चा देते 
                      थे।
 
 प्रीतम ने दरवाजा खोला और खोलते ही वे चाचा जी के पैरों पर 
                      गिर पड़े¸ चाचा जी¸ क्षमा कीजिए। मैं समझा कि यहाँ का कोई 
                      लड़का है जो पढ़ाई में बाधा डालने के लिए आया है¸ प्रीतम ने 
                      कहा पर उनकी सफाई का असर चाचा जी पर कम पड़ा और उनका क्रोध 
                      सातवें आसमान पर पहुँच रहा था।
 मैं भइया से कह दूँगा कि लड़का शोहदा निकल गया है। तुम्हारी 
                      यह मजाल? मुझे उल्लू का पठ्ठा कहा?
 प्रीतम घिघियाकर बोले¸ मैं भला आपको कभी ऐसा कह सकता हँू।
 अच्छा¸ अच्छा रहने दो¸ एक सिगरेट का टुकड़ा देखकर चाचा जी 
                      फिर उखड़ गए। यह सिगरेट कौन पीता हैं यहाँ? उन्होंने क्रोध 
                      से पूछा।
 यह तो प्रशांत पीते हैं¸ प्रीतम बोले¸ वह आज अपनी मौसी 
                      के यहाँ गया होगा। सोमवार को लौटेगा।
 
 चाचा जी ने अब तक अपना बिस्तर और झोला कमरे में ठीक स्थिति 
                      में रख दिया था और प्रशांत की चारपाई को देखकर बोले¸ यह तो 
                      ढीली मालूम पड़ती है¸ अभी कसे देता हँू।
 प्रीतम ने सिर खुजलाते हुए पूछा¸ क्या आप यहीं ठहरेंगे?
 और क्या धर्मशाला में जाऊँगा इतनी रात को¸ चाचा जी ने 
                      उलाहने के स्वर में कहा।
 पर यहाँ का कायदा है कि बाहरी रिश्तेदार या दोस्त यहाँ नहीं 
                      ठहर सकते हैं। अक्सर रात को वार्डेन साहब राउंड लगाते हैं और 
                      सौ–डेढ़ सौ रूपया जुर्माना के अलावा मुझे होस्टल से निकाल भी 
                      सकते हैं।
 प्रीतम की इस बात को सुनकर चाचा जी चिंता में पड़ गए¸ कल 
                      सुबह तक रूकँूगा मैं। अब तो भगवान ही मालिक है। इतनी रात में 
                      अब कहाँ जाऊँगा बेटा? चाचा जी का क्रोध शांत हो चुका था¸ 
                      प्रीतम को इस बात की खुशी हुई।
 
 कुछ खाने को है? चाचा जी ने कुछ स्वस्थ होकर पूछा।
 खाने को इतनी रात में क्या मिलेगा? सब दुकानें¸ होटल भी बंद 
                      हो गए होंगे¸ प्रीतम बोले¸ अगर आप बिस्कुट खाना चाहें तो 
                      बगल के कमरे से लाकर खिला सकता हँू।
 अगर उसमें अंडा न पड़ा हो तो खा सकता हूँ चाचा जी ने मजबूरी 
                      में कहा। चाचा जी एक पैकेट बिस्कुट डकार गए और एक लोटा पानी 
                      पीने के बाद उन्होंने संतोष की साँस ली। चाचा जी ने तंबाकू 
                      मीसी और झाड़ने–पीटने के बाद वे प्रशांत के बिस्तर पर लेटने 
                      ही जा रहे थे कि बाहर बरामदे में खट–खट की आवाज सुनाई पड़ी।
 आ गया चाचा जी¸ वह वार्डेन का बच्चा इधर ही आ रहा है। अब 
                      क्या होगा?  प्रीतम घबड़ाए क्योंकि सुबह की डाँट की याद 
                      अभी ताजा थी।
 यह तो मुसीबत आ गई¸ अब क्या होगा बेटा? चाचा जी ने पूछा।
 जुर्माना और निकाला जाना निश्चित है¸ प्रीतम बोले।
 चाचा जी बोले¸ कोई तरकीब निकालो¸ क्योंकि जुर्माना भरने और 
                      प्रीतम के अलग रहने का प्रबंध उन्हीं को करना पड़ता।
 एक तरकीब है¸ प्रीतम ने कुछ सोचते हुए कहा¸ मैं जैसा 
                      कहँू¸ वैसा ही कीजिएगा।
 मैं सबकुछ करने को तैयार हूँ। बस इस जुर्माने से बचत हो 
                      जाए¸ पंडित परमसुख बोले।
 
 प्रीतम पाँडे¸ तुम अभी जाग रहे हो? वार्डेन साहब ने बाहर 
                      से दरवाजा खटखटाते हुए कहा। जी सर¸ पढ़ रहा हूँ कहते हुए 
                      प्रीतम ने दरवाजा खोला।
 वार्डेन साहब अंदर आए ही थे कि पंडित परमसुख ने नमस्ते की।
 यह कौन है जी? वार्डेन साहब ने प्रीतम से पूछा¸ किसने आने 
                      दिया इसे?
 जी बात यह है सर¸ कि यह घसीटा है¸ मेरे गाँव का नौकर! 
                      प्रीतम ने खिसियाते हुए कहा।
 जी सरकार¸ मैं घसीटा हँू चाचा जी ने खीसें निपोरकर समर्थन 
                      करते हुए कहा।
 व्हॉट नानसेंस¸ वार्डेन साहब नाराज थे¸ इस घसीटे के बच्चे 
                      को किसने घुसने दिया यहाँ? तुम्हें मालूम है प्रीतम¸ कि 
                      प्राइवेट नोकर यहाँ नहीं रख सकते हो। कब से है यह यहाँ¸ खाना 
                      कहाँ खाता है? तुम इसे भी कैंटीन में खिलाते होंगे। कैंटीन 
                      में खाना रोज कम हो जाता है।
 नहीं साहब¸ यह तो हलवाई के यहाँ खाता है¸ और दो रोज रूककर 
                      चला जाएगा¸ प्रीतम ने कहा।
 कुछ नहीं¸ वार्डेन साहब बोले¸ ही कैन नाट स्टे हियर। वह 
                      जाएगा¸ और अभी जाएगा। क्यों घसीटै¸ तुम्हें किसने बुलाया था 
                      यहाँ?
 हम अपने मन से आ गए सरकार! प्रीतम भैया को बहुत दिन से देखा 
                      नहीं था¸ बस इसी मारे आ गए सरकार¸ पंडित परमसुख ने कहा।
 
 प्रीतम की समझ में नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होनेवाला 
                      है।
 आप बैठ तो जाइए प्रोफेसर साहब¸ चाय पीजिएगा? प्रीतम ने 
                      कहा।
 वार्डेन साहब कुछ सोच रहे थे¸ चाय कैसे बनाओगे? क्या हीटर 
                      भी रखते हो?
 जी नहीं सर¸ स्टोव है¸ बस मिनटों में बन जाएगी¸ प्रीतम 
                      बोले।
 जी हाँ सरकार¸ आप बैठ जाइए¸ चाचा जी ने प्रीतम की बात का 
                      समर्थन किया। वार्डेन साहब बैठ गए और प्रीतम ने उठकर स्टोव 
                      निकाला।
 तुम रहने दो जी¸ वार्डेन साहब ने कहा¸
 वह घसीटा किसलिए है? इसे बनाने दो।
 हाँ¸ हाँ¸ घसीटे¸ मेरा मतलब है कि तुम ही बनाओ चाय¸  
                      प्रीतम बोले।
 चाचा जी ने कसकर प्रीतम को घूरा¸ पर मजबूरी समझकर स्टोव 
                      जलाने लगे और प्याले धोकर चाय का इंतजाम करने लगे। घसीटे 
                      बनना उन्हें जँच नहीं रहा था¸ पर जुर्माने की रकम से बचने की 
                      आशा से उन्होंने अपना अभिनय जारी रखा।
 
 वार्डेन साहब बैठ गए थे पर वे कुछ विचारमग्न। प्रीतम को उनकी 
                      गंभीर मुद्रा देखकर चिंता हो रही थी।
 क्या बात है सर¸ आज आप कुछ परेशान लगते हैं? प्रीतम ने 
                      पूछा।
 एक बात बताओ¸ क्या ये घसीटा खाना बना लेता है? वार्डेन 
                      साहब ने पूछा।
 प्रीतम इस सवाल का उद्देश्य तो नहीं समझे¸ पर यह समझ गए कि 
                      जरूर कोई मुसीबत आनेवाली है।
 पता नहीं साहब¸ वैसे तो यह घर पर खेतों की देखभाल करता है¸ 
                      प्रीतम ने कहा।
 क्यों बे घसीटे¸ वार्डेन साहब ने कड़ककर पंडित परमसुख से 
                      पूछा¸ खाना बना लेता है? चाचा जी उर्फ घसीटे अब तक चाय 
                      बनाकर छान चुके थे। वार्डेन साहब की आवाज से चौंक गए और 
                      घबड़ाहट में बोले¸ जी सरकार¸ थोड़ा–बहुत बना लेता हूँ।
 तो बस ठीक है। वार्डेन साहब बोले¸ ऐसा है प्रीतम¸ कल 
                      हमारे यहाँ दावत है और खाना बनानेवाला महाराज छुट्टी पर गया 
                      है। तुम कल तड़के ही घसीटे को भेज देना! यह मेम साहब की मदद 
                      कर देगा।
 जी सर¸ इस बार प्रीतम के चौंकने की बारी थी¸ लेकिन वह तो 
                      कल जा रहे हैं।
 अभी तो तुमने कहा कि दो रोज रूकेगा¸ वार्डेन साहब बोले।
 लेकिन सर¸ हकलाते हुए प्रीतम बोले¸ बात यह है कि इसने कभी 
                      खाना बनाया नहीं है।
 हाँ सरकार¸ घसीटे उर्फ चाचा जी ने समर्थन किया¸ हम तो 
                      अपने खातिर रोटी पोग लेइत है¸ बस!
 कोई बात नहीं वार्डेन साहब बोले¸ तुम्हें पूरा खाना नहीं 
                      बनाना है। वह तो मेम साहब खुद बनाएगी¸ बस तरकारी काटने¸ 
                      मसाला पीसने¸ आटा माड़ने¸ पूरी वगैरह तलने व बेलने में 
                      तुम्हारा काम रहेगा। यह मेरी इज्जत का सवाल है। वार्डेन 
                      साहब यह कहकर चल दिए और प्रीतम के लिए सिवाय 'हाँ' करने के 
                      और कोई रास्ता नहीं था।
 
 जब प्रोफेसर साहब चले गए तो चाचा जी ने प्रीतम को आड़े हाथों 
                      लिया¸ क्यों बे कपूत! मेरी यह दुर्दशा करवाई तूने? मैं 
                      घसीटा हूँ? तेरे कलमूँहे प्रोफेसर के यहाँ खाना बनाऊँगा? वे 
                      एक साँस में कह गए। लेकिन इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी तो 
                      नहीं था। अब तो खैरियत इसी में हैं कि आप सुबह जाकर उनके 
                      यहाँ खाने में मदद कर दें। डेढ़ सौ रूपए जुर्माना और होस्टल 
                      से निकाले जाने से तो यही अच्छा है¸ प्रीतम ने कहा। चाचा जी 
                      बड़बड़ाते हुए सो गए।
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