।। मंगलाचरण ।।
जिन सूर्य भगवान के पीले कॉडरॉय के अंगरीय अर्थात्
जीन्स के समान परिधान से निकलती पीली किरणें आठ बजे तक सोने वाले कलियुगी प्राणियों
को सुबह–सुबह जगा कर 'बोर' करती हैं, जिनके लाल रंग के उत्तरीय अर्थात जैकेट के समान
परिधान से बिखरने वाली सम्मोहक लाल किरणें खूबसूरत प्राणियों को गॉगल्स और छाता
लगाने को मजबूर करती है, इस प्रकार के लाल–पीली किरणों के स्वामी, ग्रीष्म ऋतु के
पिता, राजनीति रूपी आकाश में तानाशाह के पुत्र की भाँति चमकने वाले सूर्य भगवान को
नमस्कार है, जिनके प्रताप से हे सजनी, गर्मी फिर आ गई है।
।। अथ ऋतु संदर्भ ।।
घर में हर ओर कामिक्स के पन्ने इधर उधर उड़ने लगे।
साल भर से 'लिविंग रूम' में सजे बैटरी के खिलौने फ़र्श पर सर्वत्र दिखाई देने लगे।
कैरम की गोटियों के खड़खड़ाने की आवाज़ें नियमित रूप से सुनाई देने लगीं। बैगाटेल की
गोलियाँ बिस्तरों और कालीनों पर लुढ़कने लगीं। रसोईघर के 'ब्लेंडर' नामक यंत्र से
'मिल्कशेक' नामक व्यंजन बनाने की मधुर ध्वनि कानों को भँवरों के गुँजन के समान
आह्लादित करने लगी। दोपहर भर दंगा करने वाले बच्चे 'ए सी' नामक यंत्र की ऐसी की
तैसी कर के लंबी–लंबी नींद काटने लगे। बारामदे में लगा तापमापक यंत्र 45 डिग्री
सेल्सियस की रेखा को पार कर गया। प्रात:काल स्कूल जानेवाले बच्चों के स्थान पर पीले
अमलतास के फूल चारदीवारी के पार से हाथ हिला–हिला कर टाटा कहने लगे। छोटे बच्चे
स्कूल बंद होने के कारण घर में ऊधम करने लगे। इन सभी दृष्यों को देखकर ऐसा प्रतीत
होता है कि हे सजनी गर्मी फिर आ गई।
हे सजनी गर्मी क्या आई पसीने का कूलर चालू हो कर तन
बदन को शीतल करने लगा। भागती हुई लू ने अगले ओलंपिक दौड़ का पूर्वाभ्यास नियमित रूप
से शुरू कर दिया। दाद देते हुए सूखे पत्तों के ढेर ने भी उसको उत्साहित करते हुए
खड़खड़ाना शुरू कर दिया। हे सजनी बाह्य वातावरण पर्णरूपेण यह विदित कराने लगा कि गरमी
फिर आ गई।
।। अथ प्रयाग वर्णन ।।
हे सजनी, शीतल पेय यत्र–तत्र सर्वत्र दिखाई देने
लगे। सिविल लाइन्स की 'सोफेस्टिकेटेड' महिलाएँ फव्वारे वाले चौराहे पर खड़ी हो
आइसक्रीम के कोन को जीभ निकाल कर चाटने लगी। उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि उनके ओठों
पर पुती महँगी लिपस्टिक इस क्रिया द्वारा लुप्त हो रही है। हे सजनी, किशोर
युवक–युवतियाँ अपने–अपने गर्ल फ्रेंड और ब्वाय फ्रेंड के साथ सोडावाटर की बोतलों पर
माँ–बाप का पैसा फूँकने लगे। आइसक्रीम और सोडावाटर ख़रीद सकने की सामर्थ्य न
रखनेवाले ग़रीब प्राणी दस पैसे गिलास वाले ठंडे पानी से अपनी–अपनी महबूबाओं को
संतुष्ट करने लगे। हे सजनी अमीर–ग़रीब हर प्रकार के प्राणी को शीतल पेय का आनंद
प्रदान करनेवाली गर्मी की ऋतु का आगमन निश्चय ही फिर हो गया।
पुदीने से सजे लाल मटकों में आम के पने वाले चौक
बाज़ार में अपने–अपने ठेलों सहित सुशोभित होने लगे। ताज़ा–ताज़ा ठंडा–मीठा बर्फ़ की
चुस्की वाले बर्फ़ की नन्हीं सिल्लियों और शर्बत की लाल–पीली बोतलों के साथ चौक से
अतरसुइया तक के फेरे लगाने लगे। लोकनाथ के शुद्ध घी वाले गर्मागरम समोंसों की सुगंध
अब कुछ मंद पड़ गई। जगमग करती बड़े–बड़े शीशों की शोविंडो वाली बृहदाकार दूकानों के
सामने, अफ्रीकी हाथी के बड़े–बड़े कानों के सदृश तिरपाल के पर्दे लहराने लगे। हे
सजनी, जनगण का रंग परिवर्तित करने वाली गर्मी फिर आ गई।
।। अथ वाराणसी वर्णन ।।
वर्षा के विरह में गंगा घट कर आधी रह गई। वे सभी
लोग जो जाड़ों में मनों मैल लादे रहने का गौरव धारण किए थे, प्रात:काल निद्रा त्याग
कर तट पर भीड़ बनाने लगे। डुबकियाँ लेने और नहाने लगे। इसी बहाने कुछ मनचले और
मनचलियाँ नैन और सैन लड़ाने लगे। किनारों पर छिपे हुए चोर चेन, घड़ियाँ और
ट्रांज़िस्टर चुराने लगे। भैसें ग्वालों के खूँटे त्याग कर तालाबों की शोभा बढ़ाने
लगीं। उनकी रखवाली करते किशोर लड़के धूप में घूमते खेलते विदेशी मेमों की तरह अपने
शरीर को 'टैन' करते नगर परिसर की शोभा बढ़ाने लगे। विदेशी फ़कीर अर्थात हिप्पी छोकरे
छोकरियाँ मंदिरों की आड़ में यत्र-तत्र सुस्ताने लगे। भदैनी से दशाश्वमेध घाट तक
लगने वाले लंबे-लंबे ट्रैफ़िक जाम अब दिखाई नहीं देते।
पति बच्चों और रिश्तेदारों को व्यस्त रखने वाली
जाड़े की दोपहर अब गर्मी के दिनों में चहल पहल से भर उठी। ठंडाई और पान के दौर जमने
लगे। मिर्ज़ापुरी कालीनों पर चादर बिछाकर मामा मामी बच्चों सहित ताश के पत्तों पर
ट्वैंटी टू खेलने लगे। खेलते–खेलते खरबूज़ों के बीज छिलकों के बड़े ढेर में परिवर्तित
होने लगे। हर शाम उनको झाड़ू से बुहारती महरी ज़ोर–ज़ोर से बड़बड़ाने लगी। इस प्रकार
मौसम में गरमागरम बड़बड़ाहट भरने वाली गर्मी फिर आ गई।
।। अथ दिल्ली वर्णन ।।
हे सजनी, गर्मी की प्रचंड तपन से व्याकुल होकर
बिजली की सप्लाई आँख–मिचौली करने लगी। जब–तब 'पावर–कट' होने लगे। इस प्रकार देश में
स्वयं ही समाजवाद आने लगा। जिन धनिकों के वातानुकूलित कमरे एयरकंडीशनर की कृपा से
ठंडे शिमला बने रहते थे, उन्हें काले धन की कमाई के फलस्वरूप 'पावर–कट' का कष्ट
भोगने का दंड मिला। इस प्रकार पूँजीपतियों को उनकी काला–बाज़ारी का दंड पाते देख
ग़रीब प्राणी प्रसन्न होकर समान जीवन–स्तर के गुण गाने लगे। हे सजनी, गर्मी एक बार
फिर प्रत्येक प्राणी को समान अधिकार का सुख देने लगी। जवान युवक–युवतियाँ अपने–अपने
कमरे बंद कर डिस्को संगीत की ब्लां–ब्लां पर तन–बदन को हिचकोले देने लगे। हे सजनी,
दिशाओं में डिस्को की धुन भर देने वाली गर्मी सचमुच ही आ गईं।
बाज़ारों में मोटी भारी सिल्क की साड़ियाँ पीछे वाले
स्टोर में रख दी गई। कोटा, वायल और आरगेंडी के हरे, गुलाबी छोटे–छोटे आकर्षक छापे
शो विंडो में अपनी छवि बिखरने लगे। अद्दी और मलमल की आकस्मिक यानी 'सीजनल' दुकानों
में आठ रुपए पीस के कपड़े धड़ल्ले से बिकने लगे। ठेलों पर सजे फुलपैंट अब नहीं दिखते
और रंग–बिरंगे निक्कर पुन: धूम मचाने लगे। चिकन के कुर्ते की दूकानों में ठेलमेल और
भीड़भाड़ दिखाई देने लगी। मोजे और दस्तानों की दूकानों में जन–सामान्य की आवाजाही
बहुत कम हो गई। हर दूसरी–तीसरी दुकान पर लटकती, दस रुपए की लच्छी वाली रंग–बिरंगी
ऊन की मालाओं के इंद्रधनुष, शरदकालीन बादलों की तरह लुप्त हो गए। गर्मी फिर आ ही
गई।
।। अथ मीरजापुर वर्णन ।।
सालभर से सूने पड़े दूसरे और तीसरे पहर अब रंगीन हो
उठे। ग्रामीण बूढ़ों के झुंड पीपल के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर नाती–पोतों की
बुराई–भलाई करने में व्यस्त हो गए। घर की औरतें दोपहर भर बैठी बहू–बेटियों और नए
ज़माने को कोसने लगी। छोटे शहरों में बड़े भैया यूनिवर्सिटी बंद हो जाने पर
यार–दोस्तों सहित अड्डा जमाकर 'वीडियो पर नई फ़िल्में देखने लगे। संतरे और गन्ने
के रस के ठेले अपनी कांति बिखेरने लगे। फलों की सुगंध से आकर्षित होकर मक्खियों के
माता–पिता अपने संपूर्ण अनियोजित, असुखी, मरभुक्खे परिवार के साथ ठेलों पर छा गए।
स्वास्थ्य और सफ़ाई के सारे कार्यक्रम पर पानी फेरते मक्खियों के झुंड हैजे का
प्रकोप फैलाते हुए, डाक्टरों के बीच फैली बेरोज़गारी दूर करने का प्रयास करने लगे।
जन साधारण में फैलते अतिसार और पेट की ख़राबी के रोगों के कारण हर नुक्कड़ पर बैठने
वाले हर छोटे–बड़े डाक्टर की आमदनी के रास्ते खुलने लगे। हे सजनी, इस प्रकार
डाक्टरों का भला करनेवाली गर्मी फिर आ गई।
शालीमार आइसक्रीम की आवाज़ें दोपहर के घोर सन्नाटे
को वेधने लगीं। सफ़ेद खरबूजे के ढेर बड़े–बड़े हीरों के पहाड़ की तरह मंडी में चमकने
लगे। इसके साथ ही रखे हरे तरबूज, पन्ने के भीमकाय गोल आकारों की तरह दृष्टि को
चकाचौंध करने लगे। लैला की उँगलियाँ– मजनू की पसलियाँ– ककड़ियाँ अपने नाजुक कलेवर के
साथ भोजन–प्रेमियों का हृदय जीतने लगीं। सोने के चंद्रहार की तरह आकर्षक कटहल, भगवान
विष्णु के मुकुट में टँके बड़े–से पन्ने के आकार के परवल और नवदूर्वादल के समान
हरी–हरी भिंडियों ने मटर और गोभी की छुट्टी कर दी। हे सजनी, यत्र–तत्र छा जानेवाली
गर्मी फिर आ गई।
।। अथ दुबई नगर वर्णन ।।
बच्चों ने देर रात तक सड़कों पर खेलना बंद कर दिया।
इसके कारण अरबी भाषा में बिखरते हुए मनोरंजक शब्दों की ध्वनि अब सुनाई नहीं देती।
विदेशी अपने अपने देशों को छुट्टी मनाने चले गए। हमेशा भरी रहने वाली सड़कें सुनसान
हो गईं। दूकानों और बाज़ारों में अब भीड़ नहीं दिखाई देती। फिर भी सड़कें "समर
फ़ेस्टिवल" नामक उत्सव के बड़े-बड़े 'होर्डिंग' नामक चित्रों से सज गईं। भारी भरकम
"मेगा–माल" कही जाने वाली बाज़ारनुमा इमारतें अपने यहाँ प्रतियोगिताएँ और नाच गाने
आयोजित करने लगीं। इस प्रकार वे विदेशी कलाकारों को बुलाकर उनके नाम से स्थानीय
लोगों को आकर्षित करने लगीं। सूर्य भगवान की तेज़ किरनें नगर के चार दीर्घाओं वाले
विस्तृत राजमार्गों पर तीव्र गति से दौड़ने वाली वातानुकूलित कारों के भीतर भी
किरणावरोधी नयन कवच अर्थात पोलरायड ऐनक पहनने को बाध्य करने लगीं। ओपेन एअर
रेस्ट्रां अपना बोरिया बिस्तर उठा कर अंदर 'ए सी' में पैक हो गए।
जन सामान्य का सारा ध्यान और मनोरंजन रेडियो, टी वी, कंप्यूटर और वीडियो गेम पर
सिमट आया। रेडियो पर गर्मी के गाने बजने लगे, गर्मी के नाटक होने लगे। यहाँ तक कि
कविताएँ और लेख भी गर्मी के विषय में ही प्रसारित होने लगे। यही हाल पत्र–पत्रिकाओं
का भी हुआ। कहीं कटहल के कोफ्ते छपने लगे, कहीं शर्बतों के सौ व्यंजन प्रकाशित होने
लगे। गर्मियों में 'रूप की रक्षा कैसे' इस विषय पर सिने अभिनेत्रियाँ अपने-अपने
व्याख्यान देने लगीं। यूरोप और अमरीका में छुट्टियाँ कहाँ और कैसे मनायी जाएँ इस
विषय पर बड़ी–बड़ी यात्रा कंपनियाँ अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगीं। रात में 'वाटर
किगडम' नामक मनोरंजन स्थलों पर भीड़ जमा होने लगी। हे सजनी जो लोग साल भर काम में
अपना भेजा खपाए रहते थे उनको आराम देने की यह ऋतु अब आ ही गई।
।। अथ उपसंहार ।।
इस प्रकार हर ओर ग्रीष्म ऋतु का सौंदर्य देख कर हे
सजनी मेरा मन भी विचलित हो उठा है। मैं यहाँ अपने बगीचे में अंतिम साँसें लेती हुई
पैंज़ी की क्यारियों के दु:ख में दुखी हूँ और उधर बर्मिंघम से शैल जीजी अपने बगीचे
में डैफोडिल खिला रही हैं। लानत है मुझ पर इस दुख को दूर करने की बजाय मैं फ़ालतू
बैठी अपना की-बोर्ड टिपटिपा रही हूँ। मित्रों ये क्यारियाँ अब साफ़ करनी हैं। गरमी
भर यहाँ कोचिया और पोर्टूलका के सिवा और कुछ नहीं उगेगा। तो फिर, कही डैफोडिल
खिलाने और कहीं पैंजी का समूल नाश करने वाली इस ग्रीष्म ऋतु का वर्णन यहीं संपूर्ण
करते हैं। विश्व में कहीं सुख और कहीं दु:ख का वितरण करने वाली यह ऋतु हमारे सभी
पाठकों का कल्याण करे। |